बिहार चुनाव की पूरी चुनावी प्रक्रिया में कहीं भी कोरोना का कहर देखने को नहीं मिला। हर जगह भीड़ दिखी, वह भी बिना मास्क लागए। कोरोना होने का सबूत हमें तब देखने को मिला जब परिणामों की घोषणा में हुई देरी। बिहार के 243 विधानसभा सीटों की गिनती देर रात तक होती रही।
लोगों को याद आए अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव के परिणाम। चुनाव आयोग ने देरी होने का कारण कोरोना बताया। कोरोना को देखते हुए इस बार सामान्य चुनावों से अधिक ई.वी.एम के साथ-साथ मतदान केंद्र एवं मतगणना केन्द्रों के इंतज़ाम किए गए थे, जो ज़रूरी थे। मतगणना प्रक्रिया के दौरान चुनाव आयोग ने कई बार प्रेस वार्ता कर दी वास्तविक जानकारी।
कड़े मुकाबले और उथल पुथल के बीच बिहार में 125 सीटों के साथ एन.डी.ए. को पूर्ण बहुमत मिला। भाजपा ने 74 सीटें जीतीं जबकी नीतीश की पार्टी को 43 सीटों पर ही करना पड़ा संतोष। वहीं घटक दलों को 8 सीटों पर मिली सफलता, जिसमें बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की पार्टी को 4 सीट व मुकेश साहनी की पार्टी को 4 सीट मिलीं। बिहार की जनता ने एन.डी.ए. पर किया भरोसा और नीतीश कुमार को एक बार फिर मिला ताज। अगले पांच साल और बिहार का भविष्य नीतीश के नाम।
रेस में पीछे रह गए तेजस्वी
कड़ी टक्कर के बीच महागठबंधन को 110 सीटों के साथ करना पड़ा संतोष। बिहार की जनता ने तेजस्वी को नहीं पहनने दिया ताज, 75 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी राजद जबकि कांग्रेस को हुआ भारी नुकसान। 70 में से 19 सीटों पर ही मिल सकी सफलता।
महागठबंधन में सबसे अच्छा प्रदर्शन वामदलों ने दिखाया। वामदलों को मिलीं 16 सीट जिसमें 12 अकेले माले को। तेजस्वी की चुनावी सभाओं में आने वाली भीड़ वोटों में नहीं बदल सकी। 10 लाख सरकारी नौकरी के वादों का नहीं दिखा असर। सिर्फ शोर भर ही रह गया। हालांकि तेजस्वी एक मज़बूत नेता के रूप में उभरे।
‘प्लुरल्स’ सिंगल सीट भी हासिल नहीं कर सकी
पुष्पम प्रिय चौधरी की प्लुरल्स पार्टी को कुछ नहीं मिला। बांकीपुर से चुनावी मैदान में खुद उतरी पुष्पम प्रिया को महज़ 5189 वोट ही हासिल हुए। बिहार को नया बिहार तथा पटना को लंदन जैसा बनाने का दिखाया गया सपना भी काम नहीं आया।
अपनी हार को देखते हुए उन्होंने ट्विट करके ई.वी.एम. हैक होने का आरोप लगा दिया। उनका कहना था कि जिस बूथ पर हमारे कार्यकर्ताओं ने अपने मत दिए वहां हमें एक भी मत नहीं मिले।
ओवैसी को फायेदा
बिहार के सिमांचल में रहने वाले लोगों ने असदुद्दीन ओवैसी पर भरोसा जताया। 20 सीटों पर लड़ी उनकी पार्टी के पांच उम्मीदवारों को सफलता मिली। बिहार में अब उनकी पार्टी का मनोबल बढ़ेगा। वैसे भी ओवैसी की पार्टी पर भाजपा को फायेदा पहुंचाने वाली पार्टी का आरोप लगता रहता है।
जबकी ओवैसी को इस चुनाव में बड़ी जीत हासिल हुई है। इससे उनकी पार्टी और वह खुद भी बहुत उत्साहित हैं। उनके उम्मीदवारों पर भरोसा जताने और उनको विधानसभा पहुंचाने के लिए सिमांचल की जनता को धन्यवाद दिया। उन्होंने वादा किया कि हम हमेशा सीमांचल के विकास के लिए काम करेंगें। उन्होंने यह भी कहा कि आने वाले चुनाव में मेरी पार्टी बंगाल और उत्तर प्रदेश में भी अपने उम्मीदवार उतारेगी।
वैसे ओवैसी की पार्टी का जनाधार सिर्फ मुस्लिम बहुल इलाकों तक ही सिमित रहता है। जबकि इनकी पार्टी का एजेंडा मुस्लिम और दलित दोनों को साथ लेकर चलना है। इनका मानना है कि इन दोनों वर्गों को समाजिक न्याय की ज़रूरत है। इसके लिए हमें अपनी आवाज़ खुद बननी होगी। इस बार के बिहार चुनाव में अलग अलग पार्टियों से कुल 18 मुस्लिम उम्मीदवारों को सफलता मिली है।
चिराग का सपना अधूरा रह गया
चिराग पासवान को 2015 के विधानसभा चुनाव में 2 सीटों पर सफलता मिली थी। इस बार उनको कुछ ज़्यादा सीटों का अनुमान था। लेकिन इस बार सिर्फ 1 सीट पर ही सफलता मिली। राजनीतिज्ञ विश्लेषकों का अनुमान था कि चिराग पासवान को उनके पिता के निधन का सहानुभूति वोटों के शक्ल में मिल सकता है। हालांकि ऐसा नहीं हो सका।
इस चुनाव में चिराग पासवास का एक ही मुख्य लक्ष्य था कि नीतीश कुमार को फिर मुख्यमंत्री नहीं बनने दूंगा। नीतीश कुमार की पार्टी इतनी कम सीटों पर सिमट गयी, इसमें कहीं ना कहीं चिराग की लोक जनशक्ति पार्टी की अहम भूमिका दिखाई पड़ती है। सिर्फ जदयू के खिलाफ अपना उम्मीदवार खड़ा कर चिराग ने जदयू को नुकसान और राजद को फायेदा पहुंचाया, नहीं तो हो सकता था कि महागठबंधन की सीटें और कम होतीं।
राजद का आरोप
सुबह गिनती शुरू होते ही महागठबंधन की बढ़त दर्ज की गयी थी। जैसा की सारे एग्ज़िट पोल्स में भी बताया गया था लेकिन 12 बजते-बजते महागठबंधन पिछड़ने लगा। उसके बाद कांटे की टक्कर के बीच आखिरकार 110 सीटों पर ही भरोसा करना पड़ा। राजद के नेताओं को उम्मीद थी कि शाम होते ही उनकी बढ़त हो जाएगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसी बीच कुछ आरोपों का दौर भी शुरू हुआ।
मतों की गिनती के बीच शाम को राजद ने नीतीश कुमार पर सरकारी तंत्रों का दुरूपयोग करने का आरोप लगाया। राजद ने अपने अधिकारिक ट्विटर हैंडल से 119 उम्मीदवारों की एक सूची साझा करते हुए आरोप लगाया कि इन सारे उम्मीदवारों की जीत की घोषणा के बाद भी प्रमाणपत्र नहीं दिए जा रहे हैं। इसकी शिकायत चुनाव आयोग से की गई। हालांकि चुनाव आयोग ने आश्वासन दिया और बाद में इनके आरोपों को गलत ठहरा।