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तम्बाकू प्रतिबंध से क्या बिहार में कैंसर थमेगा?

तम्बाकू सेवन देश की सबसे तेज़ी से बढ़ती स्वास्थ्य समस्या है। हर साल भारत में तम्बाकू सेवन से होने वाली बीमारियों से 13 लाख लोगों की मौत हो रही है। यह देश की उत्पादकता और अर्थव्यवस्था के लिए भी उतनीे ही बड़ी चुनौती है।

भारत में कैंसर से मरने वाले 100 रोगियों में से 40 रोगी तम्बाकू सेवन के कारण मरते हैं। लगभग 90% मुंह का कैंसर तम्बाकू सेवन करने वाले व्यक्तियों में होता है।

तम्बाकू का कारोबार विकसित देशों की तुलना में विकासशील देशों में ज़्यादा 

यूं तो तम्बाकू का उपयोग पूरी दुनियां के लिए चिंता का विषय है लेकिन आपको यह जान कर हैरानी होगी कि इसका कारोबार और उपयोग विकसित देशों की तुलना में विकासशील देशों में ज़्यादा तेज़ी से बढ रहा है। इस जानलेवा कारोबार में लगी कंपनियां बहुत शातिर हैं।

उन्हें पता चल चुका है कि विकसित देशों में ज़्यादा समय तक उनकी दाल गलने वाली नहीं है। इसलिए अब उनका पूरा ज़ोर भारत जैसे विकासशील देशों में है। इसके लिए वह तरह-तरह के हथकंडे अपना रहे हैं। इसे जनता को भी समझने की ज़रुरत है और सरकार को भी।

तम्बाकू सेवन से सिर, गर्दन, गले और फेफड़ों में कैंसर के मामले सर्वाधिक हैं। सभी प्रकार के कैंसरों में तम्बाकू के सेवन से जुड़े कैंसरों का हिस्सा 10 प्रतिशत है एवं 90 प्रतिशत ओरल कैंसर तम्बाकू के प्रयोग से होते हैं।

तम्बाकू कैंसर मुख, गला, फेफड़े, कंठ, खाद्यनली, मूत्राशय, गुर्दा आदि स्थानों में कैंसर पैदा कर सकता है। इसके सेवन से हृदय और रक्त संबंधी बीमारियां पुरुषों में नपुंसकता और महिलाओं में प्रजनन क्षमता में कमी आना, बांझपन जैसी समस्याएं पैदा होती हैं।

अप्रत्यक्ष या परोक्ष धूम्रपान भी हानिकारक है जिसके कारण बच्चों में श्वास की बीमारी के लक्षण पाये गये हैं। धूम्रपान करने वाले व्यक्ति की आयु धूम्रपान न करने वाले व्यक्ति की तुलना में 22 से 28 प्रतिशत घट जाती है। फेफड़े का कैंसर होने का खतरा 20 से 25 गुना अधिक रहता है। जबकि अचानक मौत होने का खतरा 3 गुना अधिक रहता है।

तम्बाकू से होने वाली खतरनाक बीमारी से बिहार भी अछुता नहीं है। एक अनुमान के अनुसार बिहार में वर्ष 2011 में 35 से 69 वर्षों के बीच के लोंगों के लिए तम्बाकू के उपयोग की वजह से होने वाले कुल आर्थिक बोझ 1341 करोड़ रूपये था। जिसमें 47% खर्च प्रत्यक्ष चिकित्सा के मद में और 53% अप्रत्यक्ष रूग्नता की वजह से हुआ था।

बिहार में तम्बाकू नियंत्रण कार्यक्रम की शुरूआत

बिहार में तम्बाकू नियंत्रण कार्यक्रम की शुरूआत वर्ष 2010 में दो ज़िलों पटना और मुंगेर से हुई थी। वर्तमान में यह कार्यक्रम बिहार के सभी 38 जिले में चल रहा है।

2009-10 के ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे के मुताबिक बिहार में 53.5% लोग किसी न किसी रूप मेें तम्बाकू का सेवन करते थे। ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे 2018 के मुताबिक बिहार में तम्बाकू सेवन करने वालों की संख्या म़ भारी गिरावट आई है।

अब बुहार राज्य में 25.9 प्रतिशत वयस्क किसी ना किसी रूप मे तम्बाकू का सेवन करते हैं

धूम्रपान सेवन करने वालों में 6.6% पुरूष, 3.4% महिलाएं है। वहीं चबाने वाले तम्बाकू का सेवन करने वालो में 41.9% पुरूष एवं 3.6% महिलाओं का प्रतिशत है। बिहार सरकार एवं सहयोगी संस्था के निरंतर प्रयास एवं प्रतिबद्वता के कारण राज्य में अबतक 38 ज़िलों में से 19 ज़िले स्मोक फ्री घोषित किये जा चुके हैं।

बिहार राज्य में टोबैको एनफोर्समेंब एंड करपोर्टिंग मूवमेंट  के तहत स्वयंसेवी संस्थाओं की क्षमता वर्धन किया गया। उनके द्वारा तम्बाकू उत्पादों के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रचार की तस्वीर को सोशल मीडिया के माध्यम से ज़िला एवं राज्य तम्बाकू नियंत्रण कोषांग के पदाधिकारियों तक पहुंचाया जा रहा है। ताकि इस तरह के उत्पादों के गुमराह करने वाले विज्ञापनों से सूबे की जनता को बचाया जा सके।

बिहार सरकार द्वारा तम्बाकू नियंत्रण हेतु उठाए गए कदम


लेखक – Deepak Mishra, Socio-Economic and Educational Development Society (SEEDS)

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