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कैसे आपदा को अवसर में बदल रही हैं छत्तीसगढ़ की महिलाएं

कोरोना महामारी ने देश-दुनिया की अर्थव्यवस्था के साथ-साथ आम जनता की आर्थिक स्थिति को भी भारी नुकसान पहुंचाया है। एक तरफ जहां लाॅक डाउन में लोगों का रोज़गार छिन गया तो अनलाॅक होने के बाद भी लोगों को आसानी से काम नहीं मिल रहा है। शहरी क्षेत्रों में मजदूरों की आवश्यकता होने के कारण जैसे-तैसे उन्हें काम मिल भी जा रहा है लेकिन ग्रामीण इलाकों में रोज़गार की समस्या अब भी गंभीर बनी हुई है। 

बड़ी संख्या में लोग अभी भी रोज़गार की तलाश में भटक रहे हैं। हालांकि इस चिंता के बीच सकारात्मक बात यह रही है कि शहरों के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्र के लोगों ने भी स्वयं का रोज़गार शुरू करने की दिशा में कदम बढ़ाया है और इसमें उन्हें काफी सफलता भी मिली है।

 इसका प्रत्यक्ष उदाहरण एकता स्व-सहायता समूह और जागृति स्व-सहायता समूह की महिलाएं हैं। जिन्होंने लाॅक डाउन में रोज़ी-रोटी की समस्या उत्पन्न होने पर भी हार नहीं मानीं और अपने मज़बूत इरादों तथा दृढ़ इच्छाशक्ति की बदौलत घर की खाली पड़ी बाड़ी और खेत में सब्ज़ी उत्पादन करके न केवल अपने परिवार का भरण पोषण कर रही हैं बल्कि उन्हें बेच कर लाभ भी कमा रही हैं।

आत्मनिर्भर बनती महिलाएं

छत्तीसगढ़ में कांकेर ज़िला स्थित भानुप्रतापपुर ब्लाॅक के ग्राम मुंगवाल की दस ग्रामीण महिलाएं आसपास के गांव क्षेत्रों के लिए इन दिनों मिसाल बन गई हैं। कोरोना संक्रमण काल की विषम परिस्थितियों से लेकर बारिश के मौसम में भी महिलाएं अपने-अपने खेतों और बाड़ियो में कृषि सखी के माध्यम से सब्ज़ी उत्पादन करके कोरोना दौर के बीते आठ महीनों में प्रतिमाह 2500 से 3000 रुपए की कमाई कर रही हैं। 

गांव की महिलाएं समूह के माध्यम से हरी सब्ज़ियां जैसे तरोई, बरबट्टी, करेला, टमाटर और भिंडी का उत्पादन करके उन्हें आस-पास के स्थानीय बाज़ार में बेचने का कार्य करती हैं। बाज़ारों में इन महिलाओं की सब्ज़ियों की मांग भी बहुत है। इसके पीछे की एक वजह लाॅकडाउन के बाद से सब्ज़ियों की कम आवक है तो दूसरी वजह उनके द्वारा की जा रही जैविक विधि से उत्पादन है। 

बगैर रासायनिक खाद का उपयोग कर जैविक खेती करती महिलाएं

दरअसल भाग-दौड़ भरी ज़िंदगी में लोगों की सेहत को ताक पर रख कर फल-सब्ज़ियों का उत्पादन रासायनिक तरीके से हो रहा है। वह न केवल स्वास्थ्य के लिए बल्कि ज़मीन की उर्वरक शक्ति के लिए भी हानिकारक हो गया है। यही वजह है कि महिला स्व-सहायता समूह की इस जैविक खाद से खेती करने के प्रयास को आमजन की सराहना भी मिल रही है। महिलाओं ने बताया जैविक खाद के लिए गोबर, पेड़ के पत्ते, सब्ज़ियों के अवशेष को कुछ दिन तक एक जगह इकट्ठा करके रखते हैं। 

तब जाकर यह खाद तैयार होता है और फिर इसका उपयोग खेतों में किया जाता है। इस योजना को अमल में लाने के मुख्य कारणों का खुलासा करते हुए एकता स्व-सहायता समूह की सदस्या कांति गोटा कहती हैं कि “लाॅक डाउन में सब काम बंद हो गया था, जिसके बाद खाली पडे़ खेत और बाड़ी को देखकर ध्यान आया कि इसमें हम सब्ज़ी उगाकर रोज़गार प्राप्त कर सकते हैं। फिर उन्हीं खेतों में हमने सब्ज़ी उगाने का प्रयास किया जो अब हमारे रोज़गार का मुख्य आधार बन गया है।”

वह आगे कहती हैं कि कोरोनाकाल की शुरूआत में हमारे गांव क्षेत्र के साप्ताहिक बाज़ारों में रोक होने के कारण सब्ज़ियों के दाम लगातार बढ़ रहे थे। ऐसे में गांव के गरीब लोगों को सब्ज़ियां खरीदने में काफी दिक्कत हो रही थी। हमारे उत्पादन से गांव के लोगों को बहुत राहत मिली और सभी लोग हमारी सब्ज़ियों को अब आसानी से खरीद लेते हैं। तो सामान्य दिनों की अपेक्षा बाज़ार में सब्ज़ियों के दाम ज़्यादा होने के कारण हमें अच्छी कमाई भी हो रही है।

महिला कृषि मित्रों ने प्रशिक्षण के बाद की सब्ज़ी की खेती

समूह की दूसरी महिला सरिता कोर्राम ने बताया कि हम सभी महिलाओं को पांच सौ रुपए में बीज और रस्सी दिया गया है। साथ ही बिहान की ओर से सब्ज़ी उत्पादन के लिए सबसे पहले महिला कृषि मित्रों को प्रशिक्षण दिया गया। जिसके बाद वह हमारे गांव में आकर हमें प्रशिक्षित कर हमारी बाड़ी में ही तरोई, बरबट्टी, लौकी सहित अन्य हरी सब्ज़ियों का उत्पादन करने के तरीके बताए। 

जागृति स्व-सहायता समूह की सदस्या हेमना जुर्री ने बताया कि मुंगवाल गांव में मैं ही सबसे ज़्यादा क्षेत्र में तरोई, बरबट्टी, करेला, टमाटर और भिंडी की खेती कर रही हूं। साथ ही भविष्य में प्रशासन की और मदद मिलती है तो मछली पालन व मुर्गी पालन करके भी अपने व्यवसाय को आगे बढ़ाना चाहूंगी।

इस संबंध में मुंगवाल की कृषि मित्र जयंती परडोटी कहती हैं कि आज ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं पहले की अपेक्षा अधिक जागरूक हो गई हैं। सब्ज़ी उगाने के संबंध में उनसे जब बात की गई तो चार समूह की महिलाएं तुरंत तैयार हो गईं। कोरोना जैसे आपतकाल में मुंगवाल जैसे आसपास के अन्य गांव बनौली, बुदेली, कनेचुर की महिलाएं भी अलग-अलग तरह से सब्ज़ियों व अन्य चीज़ी का उत्पादन कर लाभ प्राप्त कर रही हैं।

बिहान योजना से जुड़े फिल्ड ऑफिसर नवज्योति ने बताया कि मुंगवाल गांव में 10 महिला स्व-सहायता समूह है। जिसमें से 4 समूह सब्ज़ी/ उगाने का कार्य कर रही हैं। जिन्हें बिहान योजना के माध्यम से सहायता दी जा रही है।

उन्होंने बताया कि भानुप्रतापपुर ब्लॉक में बिहान के माध्यम से 524 किसान सब्जी उत्पादन से जुड़े हैं और यहां 4 कलस्टर के 95 ग्रामसभा में कुल मिलाकर 1000 स्व-सहायता समूह हैं। इन सबको मिलाकर ब्लॉक लेवल पर महिला शक्ति फेडरेशन भी बनाया गया है जो महिलाओ को स्वरोज़गार के लिए प्रोत्साहन और मार्गदर्शन  करती है।

राज्य सरकार की सहायता से ही सही कांकेर ज़िले में ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं अपनी मेहनत से स्व-रोजगार की नई शुरुआत कर रही हैं। वैसे तो छत्तीसगढ़ का यह क्षेत्र अपनी कला संस्कृति और खूबसूरत वादियों के लिए पहचाना जाता है लेकिन विकास में पिछड़ापन और नक्सलियों का प्रभाव इसके माथे पर दाग की तरह है।

बावजूद इसके ग्रामीण महिलाओ का यह छोटा सा प्रयास स्वयं के साथ साथ क्षेत्र के विकास में भी सराहनीय कदम है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आपदा को अवसर में बदलने का दिया गया मंत्र का ज़मीनी स्तर पर इससे अच्छा उदाहरण और नहीं हो सकता है।


नोट: यह आलेख भानुप्रतापपुर, छत्तीसगढ़ से लीलाधर निर्मलकर ने चरखा फीचर के लिए लिखा है।

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