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नोबेल विजेता श्री कैलाश सत्यार्थी ने बाल मजदूरी को बनाया अंतर्राष्‍ट्रीय मुद्दा

अपने शुरुआती संघर्ष के दिनों में सत्यार्थी जी बच्चों से मिलते हुये। फोटो साभार; कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फ़ाउंडेशन

श्री कैलाश सत्यार्थी को नोबेल शांति पुरस्कार प्राप्ति की छठवीं वर्षगांठ पर विशेष

लेख- शिव कुमार शर्मा

छह साल पहले आज ही के श्री कैलाश सत्यार्थी को विश्व के सर्वोच्च सम्मान नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजा गया था। श्री कैलाश सत्यार्थी का नाम सामने आते ही सहसा असहाय बाल मजदूरों की तस्वीर जेहन में उभर आती है। यदि यह कहा जाए कि बच्चे और श्री सत्यार्थी एक दूसरे के पूरक हैं तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। 1980 से पहले बाल मज़दूरी कोई मुद्दा नहीं था। ज़्यादातर संभ्रांत परिवारों में गरीब बच्चे काम करते थे। इन बाल मजदूरों को नाममात्र का मेहनताना दिया जाता था। कई हिंदी फिल्मों में इसकी झलक देखी जा सकती है। तब होटलों, ढ़ाबों, फैक्‍ट्रीरियों, घरों आदि में बच्चों के काम करने को बुरा नहीं समझा जाता था। श्री सत्‍यार्थी ने इंजीनियरिंग का अपना बेहतरीन करियर छोड़ कर 1980 में बचपन बचाओ आंदोलन (बीबीए) की स्थापना की। इसके बाद इन चार दशकों से युद्धस्‍तर पर अपनी छापामार कार्रवाईयों, अभियानों, यात्राओं के जरिए बाल अधिकारों के लिए राष्‍ट्रीय और अंतर्राष्‍ट्रीय कानूनों को बनवाकर बाल मजदूरी को एक वैश्विक मुद्दा बना दिया है।

वर्ष 1949-50 के यूएनओ घोषणापत्र में बाल अधिकारों की बात तो कही गई है, लेकिन इसका संदर्भ बहुत संक्षिप्‍त था। 1989 में संयुक्त राष्ट्र में कन्वेन्शन ऑफ चाइल्ड राइट बना और 1999 में यूएनओ की जनरल असेंबली ने इसे अंगीकार कर लिया। इस तरह से बाल अधिकारों पर चर्चा शुरू हुई। श्री सत्यार्थी 1980 से ही बाल अधिकारों की न केवल बात कर रहे थे, बल्कि उसके लिए काम भी कर रहे थे। उन्‍होंने देखा कि बड़ी संख्या में बच्चे गुलामों की तरह बंधुआ मजदूरी कर रहे हैं। इन बच्चों की स्थिति बहुत ही शोचनीय और दयनीय थी। श्री सत्यार्थी ने निश्चय किया कि वे इन बच्चों को आज़ाद कराएंगे। इसी उद्देश्य हेतु उन्‍होंने 1980 में बीबीए की स्थापना की। श्री सत्यार्थी ने संगठन और पुलिस-प्रशासन के सहयोग से बच्चों को मुक्त कराने हेतु छापामार कार्रवाई शुरू कर दी। श्री सत्यार्थी ने उनके सहयोग से हजारों बाल मज़दूर मुक्त कराए। यह छापामार कार्रवाई आज भी लगातार जारी है। श्री सत्यार्थी के नाम सबसे ज्‍यादा बाल मजदूरों को मुक्‍त कराने का विश्‍व रिकॉर्ड है। अब तक वे 90 हजार से अधिक बच्चों को गुलामी से मुक्त करा चुके हैं।

1980 के दशक में सत्यार्थी जी अपने साथियों के साथ भदोही-मिर्ज़ापुर के क्षेत्र में, एक रेसक्यू ऑपरेशन के लिए जाते हुये। फोटो साभार; कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फ़ाउंडेशन।

श्री सत्यार्थी मालिकों द्वारा बाल मजदूरों पर किए जाने वाले अमानवीय अत्याचारों को समाज के सम्मुख लाए। उत्तर-प्रदेश के भदोही-मिर्ज़ापुर के कालीन उद्योगों में बाल मजदूर बड़ी संख्या में काम करते थे। मालिक इन बाल मजदूरों से जबरिया सुबह 8 बजे से रात्रि 10-11 बजे तक काम कराते थे। अगर किसी को कालीन बनाते-बनाते नींद आ जाती तो मालिक उसे बुरी तरह पीट देता। कई बार तो उनका यौन उत्पीड़न भी किया जाता। जब किसी बच्चे का कालीन बनाते हुए हाथ कट जाता तो मालिक उस घाव की मरहम पट्टी करने की बजाय, उस घाव में माचिस की तीलियों का मसाला भरकर, उसमें आग लगा देता। इस प्रकार घाव के ऊपर त्वचा बुरी तरह चिपक जाती और बच्चे को असहनीय पीड़ा से गुजरना पड़ता। उपरोक्त तथ्यों को श्री सत्यार्थी ने राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर मज़बूती से उठाया जिससे बाल-मजदूरों के प्रति लोगों में करुणा का भाव पैदा हुआ और बाल मजदूरी पर एक नई बहस शुरू हुई।

श्री सत्यार्थी का दृढ़ विश्वास है कि जब तक जनता में बाल मजदूरी के खिलाफ जागरुकता नहीं आएगी तब तक देश और दुनिया से बाल मजदूरी खत्म नहीं की जा सकती है। उन्‍होंने ‘‘रगमार्क’’ की स्थापना करके एक नया अध्याय प्रारम्भ किया। यह मार्क इस बात की तस्‍दीक करता है कि कारपेट तथा कपड़े बच्चों द्वारा नहीं बनाए गए हैं। श्री सत्यार्थी की इस अभिनव पहल से राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बाल मजदूरी को मुद्दा बनाने में मदद मिली। श्री सत्यार्थी द्वारा बच्चों के प्रति किए गए अपराधों के विरुद्ध शांतिपूर्ण विरोध-प्रदर्शनों से भी लोगों का ध्यान बाल मजदूरी के मुद्दे की ओर गया। उन्‍होंने दुनियाभर के सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों, शिक्षक यूनियनों, बच्चों के लिए काम करने वाले संगठनों तथा ट्रेड यूनियनों को भी अपने साथ जोड़ कर एक बड़ा नेटवर्क तैयार किया। जिससे उनकी पहुंच हर बाल मजदूर तक हो सके।  श्री सत्यार्थी शिक्षा के लिए काम करने वाले दुनिया के सबसे बड़े संगठन  ग्लोबल कैम्पेन फॉर एजूकेशन के भी अध्यक्ष रहे हैं। इस पद पर वे लंबे समय तक रहे और बाल मजदूरी को समाप्त करने तथा हर बच्चे की शिक्षा हेतु उल्लेखनीय कार्य किया।

शुरुआती संघर्ष के दिनों में सत्यार्थी जी अशरफ नामक बालक को मुक्त कराते हुये। दोषी IAS अफसर को सज़ा दिलाने हेतु, सत्यार्थी जी ने NHRC का दरबाज़ा खटखटाया था। फोटो साभार; कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फ़ाउंडेशन।

श्री सत्यार्थी ने राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जन-जागरुकता के लिए विभिन्‍न यात्राओं का आयोजन किया है। इन यात्राओं से दुनियाभर में बाल मजदूरी के विरुद्ध माहौल बनाने में मदद मिली। उन्‍होंने बाल दासता के विरुद्ध पहली यात्रा झारखंड के नगर उटारी (तब के बिहार) से 01 फरवरी से 15 फरवरी 1993 को निकाली। इस यात्रा में उनको अपार जनसमर्थन मिला और बाल मजदूरी बिहार में एक प्रमुख मुद्दा बना। तब बिहार का यह इलाका बाल श्रम और ट्रैफिकिंग का स्रोत था। श्री सत्यार्थी ने 1994 में दूसरी यात्रा कन्याकुमारी से दिल्ली तक आयोजित की। इसका समापन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की समाधि राजघाट पर हुआ। इसमें हजारों सामाजिक कार्यकर्ता और बच्चे शामिल हुए। भारत में इस यात्रा से जन-जागृति पैदा हुई तथा आम लोगों ने बाल मजदूरी को एक सामाजिक बुराई मानना शुरू किया। इस यात्रा से बाल मजदूरी को देशव्‍यापी मुद्दा बनाने में बड़ी मदद मिली।

श्री सत्यार्थी ने महसूस किया कि जब तक बड़े स्तर पर एक जन-जागरुकता यात्रा नहीं निकाली जाएगी, तबतक विश्वस्तर पर जनता बाल मजदूरी के विरुद्ध खड़ी नहीं होगी। सरकारों पर दबाव बनाने के लिए लोगों को जगाना होगा। इसलिए उन्‍होंने 17 जनवरी 1998 में ग्लोबल मार्च अगेंस्ट चाइल्ड लेबर का आयोजन किया। इस मार्च में सैकड़ों की संख्या में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राजा-रानी, राजनयिक आदि शामिल हुए। करीब पांच महीने तक चली यह ग्लोबल मार्च अगेंस्ट चाइल्ड लेबर 103 देशों से होकर गुजरी और बाल श्रम के खिलाफ एक अंतरराष्ट्रीय कानून बनवाने के लिए इसने माहौल तैयार किया। इस ग्लोबल मार्च का समापन अंतर्राष्‍ट्रीय श्रम संगठन के जिनेवा स्थित मुख्यालय पर 6 जून 1998 को हुआ। इस मार्च के परिणामस्वरूप 1999 में आईएलओ ने कनवेंशन-182 पारित किया। यह एक अंतरराष्ट्रीय कानून है जो बाल मजदूरी पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाता है। इस यात्रा से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बाल मजदूरी पर एक ज़ोरदार बहस छिड़ी। इसी यात्रा के फलस्‍वरूप दुनियाभर में बाल श्रम एक ज्वलंत मुद्दा बना। अब आईएलओ के सभी 187 देश कनवेंशन-182 पर हस्ताक्षर कर चुके हैं।

श्री सत्यार्थी ने सन 2001 में शिक्षा यात्रा का आयोजन किया। यात्रा शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाने के उद्देश्‍य से निकाली गई ती। शिक्षा-यात्रा का समापन दिल्ली स्थित रामलीला मैदान में हुआ, जिसमें देशभर से पचास हज़ार लोग शामिल हुए थे। इस यात्रा का परिणाम यह हुआ कि लोगों की समझ में आ गया कि बाल मजदूरी के रहते सभी बच्चों को शिक्षित करना नामुमकिन है। इस यात्रा का ही परिणाम था शिक्षा का अधिकार कानून।

श्री सत्यार्थी ने 2007 में साउथ एशियन मार्च अगेंस्ट चाइल्ड ट्रैफिकिंग का आयोजन किया। इस मार्च ने 5000 किलोमीटर की दूरी तय की। मार्च कोलकाता से प्रारंभ होकर काठमांडू पहुंचा व काठमांडू से दिल्ली आया। यह मार्च जबरिया बाल मजदूरी के खिलाफ निकाला गया था। इसी तरह नेपाल यात्रा 2009 में आयोजित हुई। इस यात्रा का आयोजन नेपाल में किया गया था। यात्रा का उद्देश्य शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाना था। श्री सत्यार्थी ने 2012 में असम चाइल्ड लेबर एंड ट्रैफ़िकिंग मार्च का आयोजन किया। इसका आयोजन असम से किया गया। इस मार्च का उद्देश्य बाल मजदूरी और बाल दुर्व्‍यापार को समाप्त करना था। इसमें राष्‍ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नालसा) ने साझेदारी की। भारत के तत्कालीन मुख्य न्‍यायाधीश श्री अल्तमस कबीर ने इस मार्च को गुवाहाटी से झंडी दिखाकर रवाना किया था।

श्री सत्यार्थी वह शख्सियत हैं, जिन्‍होंने बच्चों को उनके अधिकार दिलाए हैं। श्री सत्यार्थी के नेतृत्‍व में 2016 के 10 व 11 दिसंबर को भारत के राष्ट्रपति भवन में दुनिया के पहले लॉरियेट्स एंड लीडर्स फॉर चिल्ड्रेन समिट का आयोजन किया गया। तत्कालीन राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी ने इसका उदघाटन किया। इस आयोजन को राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी, तिब्बत के आध्‍यात्मिक नेता एवं नोबल शांति पुरस्‍कार से सम्‍मानित दलाई लामा, मोनाको की राजकुमारी चार्लिन, जॉर्डन के राजकुमार अली बिन अल हुसैन, नीदरलैंड की राजकुमारी लौरेंटीएन तथा ईस्ट तिमूर के पूर्व राष्ट्रपति रामोस होर्ता आदि ने संबोधित किया। अपने सम्बोधन में सभी नेताओं ने बाल मित्र दुनिया बनाने, करुणा का वैश्वीकरण करने तथा बाल दुर्व्यापार रोकने का आह्वान किया।

इसी क्रम में दूसरा लॉरियेट्स एंड लीडर्स फॉर चिल्ड्रेन समिट, जॉर्डन में किंग अब्दुल्लाह इब्न अल हुसैन की सरपरस्ती में आयोजित किया गया। तीसरा लॉरियेट्स एंड लीडर्स फॉर चिल्ड्रेन समिट 09 व 10 सितम्बर 2020 को ऑनलाइन आयोजित किया गया, जिसमें लगभग 88 नोबेल लॉरियेट्स और विश्वनेताओं ने भाग लिया। इन सभी नेताओं ने दुनिया की सरकारों से एकजुट होकर कोविड महामारी व लॉक-डाउन के कारण प्रभावित बच्चों की मदद के संयुक्त प्रयास करने का आह्वान किया है।

श्री सत्‍यार्थी ने 2016 में बाल शोषण के खिलाफ दुनिया के सबसे बड़े युवा आंदोलन “100 मिलियन फॉर 100 मिलियन” अभियान की शुरुआत की। इस अभियान के तहत 100 मिलियन शोषित बच्चों के अधिकारों के लिए 100 मिलियन नौजवान काम करेंगे। 2017 में श्री सत्यार्थी ने भारत यात्रा का आयोजन किया। इस यात्रा में कुल 12000 किलोमीटर की दूरी तय की गई। इसमें 5000 सिविल सोसाइटी संगठनों, 500 राजनीतिक लोगों, 600 स्थानीय, राज्यस्तरीय, केंद्रीय अधिकारियों, 60 धर्मगुरुओं, 300 जजों और 25000 से अधिक शिक्षण संस्थानों ने भाग लिया। इन सभी ने सभाएं करके बाल दुर्व्‍यापार तथा बाल यौन शोषण के खिलाफ जन-जागरुकता पैदा की।

श्री सत्यार्थी ने बाल मजदूरी को न केवल एक मुद्दा बनाया बल्कि इस मुद्दे का अंतर्राष्ट्रीयकरण भी किया। जिससे बाल मजदूरी के विरुद्ध कई राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय कानून बने और करोड़ो बच्चे गुलामी की जिंदगी से मुक्त हुए। उनका बचपन आजाद हुआ और जीवन खुशहाल बना। करीब दो दशक पहले दुनिया में बाल मजदूरों की संख्या तकरीबन 26 करोड़ थी। जो अब घट कर करीब 15 करोड़ रह गई है।

(लेखक सामाजिक कार्यकर्ता और प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक पार्टी के अध्यक्ष हैं)  

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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