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“मेरा बचपन बस्ते से नहीं बोझे से”

बाल मज़दूरी

बाल मज़दूरी

कामगार हाथों को बढ़ाने के लिए

वंश नहीं परिवार को चलाने के लिए

जन्म हुआ है मेरा इन्हीं उद्देश्यों के लिए।

 

हां, सुना तो है मैंने किसी पढ़ाई के बारे में

बेटा स्कूल जाते हो? यह प्रश्न सुनकर

मन पड़ जाता उलझन में।

 

हां, देखा तो है कुछ बच्चों को

हंसते और खिलखिलाते हुए,

मगर कभी उनकी खुशी का राज़ ना जान पाया मैं

खिलौने बेचने में इतना मन लगा मेरा,

कि उनसे कभी खेल ना पाया मैं।

 

चाय की टपरी, बीड़ी का कारखाना

या ठिकाना होता कभी सड़क का किनारा,

छोटू जैसे नामों की ही पहचान पाया मैं

मेरे लिए तो यही बचपन है

इससे आगे कभी कुछ सोच ना पाया मैं।

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