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कविता: “जाने यह नींद क्यों सताती है?”

कभी जल्दी तो कभी बहुत देर से आती है
जब न आए तो बड़ा तड़पाती है
जाने यह नींद क्यों सताती है?

किसी को चैन की आती है
तो किसी को बेचैन कर जाती है
जाने यह नींद क्यों सताती है?

महंगे गद्दे और चटाई मे फर्क नही कर पाती है
जब आनी होती है तो किसी पर भी आ जाती है,
कानून की किताबों से भी अच्छी
समानता का पाठ पढ़ाती है
जाने यह नींद क्यों सताती है?

अपने आने से पहले भावनाओं का खेल खिलाती है
किसी को उसकी उम्मीदें,
तो किसी को संघर्ष का एहसास दिलाती है
जाने यह नींद क्यों सताती है?

एक नई दुनिया बुनकर सैकड़ों आशाएं पूरा कर जाती हैं
झूठी ही सही मगर सपनों का एक सुंदर संसार तो बनाती है
जाने यह नींद क्यों सताती है?

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