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“क्या बिहार में रितु जायसवाल की हार के लिए हम सब ज़िम्मेदार हैं?”

बेशक सवाल उठना चाहिए कि आखिर बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में रितु जायसवाल की हार समाज को क्या संदेश देती है? क्या लोगों को राजनीति में चेंजमेकर्स, ज़मीनी स्तर पर काम करने वाले नेता नहीं चाहिए?

रितु जायसवाल जैसे नाम पर सवाल इसलिए है कि वो उस जमात का हिस्सा हैं, जिसमें सभी लोग बदलाव लाने के लिए राजनीति में आते हैं, जो लोगों से जुड़े मुद्दों की बात करते हैं, जो विकास की बात तो करते हैं साथ ही ज़मीनी स्तर पर काम भी करते हैं मगर हमारे देश के राजनीतिक माहौल में ये लोग आसानी से विधानसभा या लोकसभा के चुनाव नहीं जीत पाते हैं। ज़्यादातर लोगों को हार का सामना करना पड़ता है।

Youth Ki Awaaz समिट में रितु को सुनने का अवसर मिला था

पिछले साल दिसंबर में मैंने दिल्ली में हुई ‘Youth Ki Awaaz’ समिट में रितु जायसवाल की स्पीच सुना था। उन्होंने लोगों की ज़िन्दगी में ज़मीनी स्तर के बदलाव हेतु लोगों की सोच बदलने की बात की थी। रितु जायसवाल बिहार के राज सिंघवाहिनी पंचायत की मुखिया हैं, जिन्हें 2018 में ‘चैंपियंस ऑफ चेंज’ अवॉर्ड मिला है। उनकी ग्राम पंचायत सिंघवाहिनी को नैशनल पंचायत अवार्ड ‘दीन दयाल उपाध्याय पंचायत सशक्तिकरण पुरस्कार 2019’ भारत सरकार के पंचायत राज मंत्रालय से मिला है।

रितु जायसवाल ने साबित किया है कि बदलाव लाने के लिए आपका पद कितना बढ़ा है। यह महत्वपूर्ण नहीं है आपमें काम करने के लिए दृढ़ इच्छा शक्ति होनी चाहिए और उन्होंने एक पंचायत के मुखिया के पद को भी गरिमा बहाल किया है। उनकी स्पीच सुनते समय मुझे यह लग रहा था कि अगर यह महिला गांव की मुखिया होकर इतना बदलाव ला सकती हैं तो ज़रा सोचिये कि ऐसे लोग विधायक या सांसद बनेंगे तो कितना बदलाव लाएंगे? 

मुझे यकीन है कि ऐसे ही लोग आज की राजनीति को बदल सकते हैं

अच्छी खबर यह थी कि राष्ट्रीय जनता दल ने रितु को विधानसभा चुनाव 2020 लड़ने के लिए पार्टी से परिहार विधानसभा क्षेत्र से टिकट दिया। यह भी अपने आप में बदलाव की शुरुआत ही थी कि रितु जायसवाल के काम पर उन्हें टिकट दिया गया था, जो हमारे देश के राजनीतिक दल आमतौर पर नहीं करते है। आमतौर पर सभी राजनीतिक दल धर्म, जात, पैसा और पावर के आधार पर जो चुनाव को जीत सकता है, उसे ही टिकट देते हैं। 

दरअसल, राजनीतिक दलों को फर्क नहीं पड़ता कि जिसे उन्होंने टिकट दिया है उसका क्रिमिनल बैकग्राउंड है या नहीं। वह उच्च शिक्षित हैं या नहीं, उनमें बदलाव लाने की इच्छा शक्ति है या नहीं, वह ज़मीनी स्तर पर काम कर सकते हैं या नहीं? अभी तो ट्रेंड ये चल रहा है कि धर्म के आधार पर जो लोगों को बांट सकता है, नफरत फैला सकता है, उनको उकसा सकता है, उसे ही टिकट दिया जाता है। यह ट्रेंड हमारे देश और हमारे लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा साबित हो सकता है। आज ज़रूरत है कि चुनाव आयोग को ऐसे दलों और ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए। 

मेरा चुनाव आयोग पर सीधा आरोप है कि आज चुनाव आयोग जान-बूझकर ऐसे लोगों की अनदेखी कर रहा है, जिसका फायदा लेकर राजनीतिक दल चुनाव जीत रहे हैं। 

लोकतंत्र लोगों से होता है 

अगर लोग तय करेंगे कि हमें हमारे विकास के लिए, शिक्षा और हेल्थ में सुधार लाने के लिए, अपनी ज़िन्दगी में बदलाव लाने के लिए, सामाजिक एवं आर्थिक सुधार के लिए वोट करना है तब जाकर सभी राजनितिक दलों के मनसूबे नाकामयाब होंगे। जो लोगों को धर्म, जाति में बांटकर, समाज में नफरत फैलाकर सत्ता हासिल करना चाहते हैं। जो अपना अजेंडा चलाना चाहते हैं परंतु हमारे देश का दुर्भाग्य यह है कि अभी तक ज़्यादातर लोगों को लोकतंत्र की ताकत, अपने वोट की ताकत समझ में नहीं आई है और न ही उनके अधिकार के बारे में उन्हें समझाया गया है।

मैं यह मानता हूं कि हमारा संविधान दुनिया में सबसे बेहतर है और ऐसा संविधान होने के बावजूद भी हमलोग हमारे लोकतंत्र को दुनिया का सबसे बेहतर लोकतंत्र नहीं बना सके। 

इसकी सबसे बड़ी वजह लोगों को संविधान और लोकतंत्र के बारे में जानकारी नहीं है। इसका फायदा सभी राजनीतिक दल उठा कर हमारे लोकतंत्र को कमज़ोर  बना रहे हैं। यही वजह है कि बहुत सारे राजनीतिक दल परिवारवाद को बढ़ावा दे रहे हैं। तो कहीं सबसे बड़ा राजनीतिक दल दो व्यक्तियों द्वारा चल रहे हैं। आज किसी भी दल में आप को लोकतंत्र नहीं दिखाई देगा। इस का नतीजा यह है कि देश की सरकारें भी कुछ दो या तीन व्यक्ति चला रहे होते हैं। चाहे किसी भी राजनितिक दलों की सरकारें क्यों न हों। 

महात्मा गाँधी जी ने लोकतंत्र के बारे में कहा था, “मेरी लोकतंत्र की कल्पना ऐसी है कि उसमें कमज़ोर से कमज़ोर को उतना ही मौका मिलना चाहिए जितना कि समर्थ को।”

आजकल सारे विश्व में कोई भी देश आश्रयदाता की नज़र के बिना निर्बलों को देखता ही नहीं। पश्चिम के लोकतंत्र का जो स्वरुप आज विद्यमान है वह हलका फांसीवाद जैसा है। सच्चा लोकतंत्र केंद्र में बैठकर राज्य चलाने वाले बीस इन्सान नहीं चला सकते। वह तो प्रत्येक गांव के हर  इंसान को चलाना पड़ेगा अब आप ही तय कीजिए कि आज हमारा लोकतंत्र कहां खड़ा है?

मुझे लगता है कि आज के चुनावों में हमारे पास ज़्यादातर दो ही ऑप्शन हैं। जिसमें हमें खराब और कम खराब में से एक व्यक्ति को चुनना है, बुरा या कम बुरा में से एक चुनना है। इसमें आपको तीसरा इनसे बेहतर अच्छा ऑप्शन नहीं है। कहीं पर हो तब भी आप उसको वोट नहीं देते इसलिए रितु जायसवाल जैसे लोग नहीं जीतते। रितु जायसवाल जैसे लोगों को राजनितिक दल बहुत कम मौके देते हैं। उसमें भी ये हारते हैं तो इसके लिए लोग ही ज़िम्मेदार हैं।

लोगों को सही व्यक्ति को चुनाव में जिताना ही नहीं है!

जो बंदा जनता के मुद्दों की बात करे, ज़िंदगी में बदलाव लाने की कोशिश करे। जब बिहार चुनावों के नतीजे आ रहे थे तब मेरी नज़र रितु जायसवाल के विधानसभा क्षेत्र पर थी और मुझे लग रहा था कि वह जीत जाएंगी परंतु वह बहुत ही कम वोटों से हार गईं। फिर भी सिर्फ काम और बदलाव के आधार पर चुनाव लड़ने वाली रितु जायसवाल को बहुत सारे वोट मिले। जिन लोगों ने भी उन्हें वोट किया वह सराहनीय है। ऐसे वोटर से ही बदलाव की उम्मीद है। जो बेहतर समाज, बेहतर देश चाहते हैं और ऐसे ही वोटर हमारे लोकतंत्र को बेहतर लोकतंत्र बना सकते हैं। 

बिहार चुनावों की बात की जाए तो ज़रूर इस चुनाव में लोगों से जुड़े मुद्दों की बात हुई है। जो कि इस चुनाव की सबसे महत्वपूर्ण और सकारात्मक बात है। 

अंत में नतीजों में ज़रूर गैरज़रूरी मुद्दों का असर दिखाई दिया परंतु इस चुनाव ने साबित किया है कि लोगों से जुड़े मुद्दों पर आज भी वोट मिल सकते हैं। आगे जाकर लोगों से जुड़े मुद्दों पर, ज़मीनी स्तर पर काम करके चुनाव जीते भी जा सकते हैं।

मैंने रितु जायसवाल को केस स्टडी के तौर पर देखा है कि बदलाव के लिए राजनीति में आने वाले लोग और क्या ऐसे लोगों से राजनीति में बदलाव लाया जा सकता है? एक ऐसी शिक्षित महिला जो एक आईएएस अफसर की पत्नी हैं और वह दिल्ली जैसे शहर छोड़कर रूरल एरिया में, गाँवों में बदलाव के लिए राजनीति में आती हैं। 

ऐसे लोगों को बड़ी ज़िम्मेदारी देने की ज़रूरत है ताकि जो काम आज वह मुखिया बनकर गाँव में कर रही हैं, उससे कहीं ज़्यादा काम वो एक विधायक, सांसद या एक मंत्री बनकर बहुत सारे गाँवों के लिए कर सकती हैं, जिसकी आज ज़रूरत है और ऐसे लोगों से प्रेरणा लेकर और भी लोग बदलाव के लिए राजनीति में आ सकते हैं।

अगर हम बदलाव लाना चाहते हैं, देश में सामाजिक और आर्थिक सुधार चाहते हैं और ज़मीनी स्तर पर विकास चाहते हैं, तो हमें रितु जायसवाल जैसे लोगों को विधानसभा और संसद में भेजना होगा।

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