Site icon Youth Ki Awaaz

लॉकडाउन के दौरान महिलाओं में बढ़े अनियमित पीरियड्स के मामले

A group of girls looking at the sea

कोरोना वायरस को विश्व में दस्तक दिए करीब एक साल होने वाले हैं। इससे होने वाले प्रभाव से कहीं न कहीं हम सब प्रभावित हैं।

इस बीमारी ने ऐसा विकराल रूप धारण किया कि पूरी दुनिया एकाएक ठप पड़ गयी। किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था। लोगों में डर और दहशत का माहौल बन गया था। इस दौर को हम इतिहास में कोरोना काल के नम से याद करेंगें।

एकाएक लॉकडाउन हो जाने से सब कुछ बंद हो गया। जिसके कारण लगभग सभी लोगों की आर्थिक हालात बिगड़ गई। ज़्यादातर मज़दूर वर्ग बेरोज़गार हो गए। वहीं ज़िंदगी जीने के लिए मूलभूत चीज़ों की किल्लत होने लगी। सभी लोग घरों में कैद होने पर मजबूर हो गए। घरों में बंद रहने से स्ट्रेस और घबराहट की शिकायत आम हो गई।

लॉकडाउन से महिलाओं को होने वाली परेशानी

आमतौर से पीरियड्स के दौरान महिलाओं को दर्द से गुज़रना पड़ता है। तनाव और चिड़चिड़ाहट होने लगती है। समय-समय पर मूड में उतार चढ़ाव आते रहते हैं। अगर किसी को घर में बंद किया जाए तो स्वाभाविक है कि वह आदमी मानसिक तौर से और परेशान हो जाएगा।

अप्रैल महीने में कोलकाता के एम.आर. बांगुर अस्पताल के गाईनाकोलोजी विभाग में कार्यरत डॉक्टर मधुरिमा बताती हैं कि लॉकडाउन में ज़्यादातर महिलाओं को तेज़ दर्द हो रहा है। सर में दर्द और पेट में ऐंठन की भी समस्या आ रही है। डॉक्टर मधुरिमा इसका कारण कोरोना के कारण हुए लॉकडाउन को बताती हैं।

लॉकडाउन ने दिनभर की रूटीन को बुरी तरह से प्रभावित किया है, जिससे महिलाओं में स्ट्रेस और अनियमित पीरियड्स होने की शिकायतें बढ़ गई हैं। उन्होंने यह भी बताया कि स्ट्रेस शरीर में बनने वाले कोर्टिसोलएक जो एक प्रकार का हार्मोन है, को प्रभावित करता है।

स्कूल बंद हो जाने से पैड्स की कमी का सामना करना पड़ा

हमारे देश की बहुत सी राज्य सरकारों ने अपने स्कूलों में लड़कियों को हर महीने पैडस मुहैया कराना और पीरियड्स के बारे में जागरूक करने का काम शुरू कर दिया है। जिससे आर्थिक रूप से कमज़ोर बच्चियों ने भी पैड्स का इस्तेमाल शुरू कर दिया है। भारत में लगभग 23 मिलियन लड़कियां पीरियड्स शुरू होते ही स्कूली शिक्षा से दूर हो जाती हैं। क्योंकि उनके पास पैड्स खरीदने के पैसे नहीं होते। पीरियड्स के दौरान उन्हें शर्मिंदगी का सामना करना पड़ता है। 

लॉकडाउन होने से जो पैड्स लड़कियों को स्कूलों से प्राप्त होते थे, वह मिलने बंद हो गए। जिससे इनको परेशानी उठानी पड़ी। 

शुरुआत में कुछ दिनों तक तो सरकार ने इसे ज़रूरी समान के सूची से ही बाहर कर रखा था। जिससे इसके प्रॉडक्शन पर भी अच्छा खासा असर पड़ा। हालांकि कुछ ही दिनों में इसे ज़रूरी सामानों की सूची में शामिल कर दिया था। बहुत सी ऐसी लड़कियां जो आर्थिक रूप से कमज़ोर हैं वह खुद मार्केट से पैड्स खरीदने में असमर्थ भी थीं। जिसके कारण उन्हें पुराने घरेलू उपाय पर निर्भर होना पड़ा। बहुत लोगों ने फिर से कपड़ों का इस्तेमाल शुरू कर दिया।

मदद को आगे आईं कई सामाजिक संस्थाएं 

Womenite के संस्थापक हर्षित गुप्ता ने बी.बी.सी. को बताया कि हमने लोगों के द्वारा दिए मदद के पैसों का इस्तेमाल किया। दिल्ली और उनके सटे ज़िलों में लगभग एक लाख से भी ज़्यादा पैड्स के पैकेट्स का वितरण किया। जिससे उन गरीब लोगों को बहुत राहत मिली। 

इसी दौरान पैड्स बनानी वाली एक निजी कंपनी “परी” जिसके संस्थापक साहिल धरिया हैं, उन्होंने भी दिल्ली और पंजाब के बहुत से इलाके में 80 हज़ार से भी ज़्यादा महिलाओं को पैड्स दिए। इस काम में दिल्ली और पंजाब की पुलिस ने इनका भरपूर साथ दिया।

सरकारों को अभी बहुत काम करने की ज़रूरत है 

लॉकडाउन हो जाने के बाद हिंदुस्तान की सड़कों पर मानों मज़दूरों का सैलाब आ गया हो। जितने भी मज़दूर अपने गांव से शहर रोज़ी-रोटी के लिए आये थे, वह सब अपने घरों को लौटने लगे बिना किसी इंतेज़ाम के। उसमें महिलाएं, लड़कियां, बच्चे बूढ़े सब एक साथ पैदल सड़कों पर चल रहे थे।

उन्हीं लोगों में से एक लड़की जो 15 साल की थीं, उन्होंने द क्विंट को बताया, “मुझे 5 दिन पहले पीरियड्स आए हैं। मेरे पास राख लपेटे हुए तीन कपड़े हैं। मैं उसी का इस्तेमाल कर रही हूं। जब खून का रिसाव उस कपड़े से बहार होने लगता है, तब मैं उसे निकालकर धो लेती हूं। फिर उसी का इस्तेमाल करती हूं।”

वो आगे कहती हैं, “बारिश होती है तब भी हमलोग बाहर सोते हैं। उसी कपड़े को धोकर पहन रही हूं।” यह तरीका उसके स्वास्थ के लिए कितना खतरनाक है, इसका अंदाज़ा लगाया जा सकता है। उस दौरान ना जाने कितने ऐसे लोग होंगे जिनको इन हालातों से गुज़रना पड़ा होगा।


सन्दर्भ – न्यूज़ 18, बी.बी.सी., द क्विंट

Exit mobile version