जितनी आसान यह ज़िंदगी दिखती है, उतनी है नहीं। लेओनार्दो डीकैप्रिओ ने अपने इंस्टाग्राम पोस्ट में चेन्नई में पानी की समस्या पर प्रकाश डाला है। यह मुद्दा जितना गंभीर है उतना ही सजग करने वाला भी है।
ऐसे में आर्थिक असमानता पानी की समस्या को और विकराल रूप दे देती है। मैंने अपने अनुभव के आधार पर इस मुद्दे पर एक कविता लिखी है, जिसमें एक दादी पैसे की कमी के कारण ट्रेन में रेल नीर की बोतल लेने में असमर्थ है। ये पंक्तियां उस पक्ष को भी दर्शाने में सक्षम हैं, जिसमें पानी की कमी के कारण गरीब और बेबस लोगों के पास इंतज़ार के सिवा कोई विकल्प नहीं बच जाता है। आपसे निवेदन है कि कविता पढ़ते समय अपने दिमाग और दिल के साथ तालमेल ज़रूर बैठाएं वरना ये शब्द फिके नज़र आएंगे।
सुबह जब नींद खुली
स्टेशन था इलाहाबाद,
तभी देखा रात के मुकाबले
ज़्यादा थी लोगों की तादाद।
मैंने भी अपना बिस्तर छोड़ा
बैठ गया बूढ़ी अम्मा के पास,
कुछ समझ नहीं पा रहा था
क्यों बेचैन हो जाती थी वो
किसी स्टेशन के आने के बाद।
पानी नहीं था उसके पास,
वो और उसका नन्हा पोता
जा रहे थे मुरादाबाद।
रेल नीर का दाम पूछा
फिर कुछ सोचकर बोली
आएगा स्टेशन कुछ देर बाद,
मुझसे दबी आवाज़ में बोली
बेटा पसंद नहीं इसका स्वाद।
सब समझ आ रहा था मुझे
जब भूख-प्यास लगी हो ज़ोरों की
फिर नहीं परवाह होती कि कैसा है स्वाद।
हम बात कर ही रहे थे
कि स्टेशन आया थोड़ी देर बाद,
उनसे मांगी उनकी एक बोतल,
लाया दो बोतल नल का पानी,
एक पीने के पहले और एक बाद।
सफर तो कब का खत्म हो गया,
सीख नहीं भुला इतने दिनों बाद,
ख्वाहिशों का पुलिंदा है हमारे पास,
ज़रूरतें रहेंगी कई एक के बाद
पर कोशिश अपनी रहे यही,
ज़रूरतों को बांधना है ज़रूरी,
वरना चाहत रखने वालो की लंबी है तादाद।
आपने पानी के टैंकर पर “जल ही जीवन है” लिखा देखा होगा। यह बात टैंकर के लिए नहीं, हमारे लिए है। लोहे का टैंकर तो पानी के कारण ही जंग लगकर खराब हो जाता है लेकिन फिर भी टैंकर अपने अंतिम उपयोग तक जल ही जीवन है का उपदेश अपने साथ लिए चलता है। एक बात याद रखिए, इतिहास गवाह है कि सभ्यता के उद्भव और पतन के पीछे पानी ही ज़िम्मेदार रहा है। ऐसे में यह बात जितनी जल्दी समझ आए उतनी सही है, वरना कभी-कभी कुछ विलम्ब का परिणाम केवल अंत होता है।