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कोरोना महामारी में पढ़ाई से वंचित हैं छत्तीसगढ़ के बच्चे

कोरोना महामारी की वजह से पूरे देश और दुनिया का नक्शा बदल चुका है। स्कूल और कॉलेज बंद होने के साथ-साथ लोगों का रोज़गार भी बंद या कम हो गया है। लोग महामारी से जूझ रहे हैं। ऐसे समय में बच्चों को बड़ी तकलीफ हो रही है।

मार्च से घर पर पढ़ाई कर रहे बच्चों को शिक्षा में कई दिक्कतें आ रही हैं। गाँव में स्कूलों को क्वॉरंटीन सेंटर बनाया गया है। जबकि उन्हें घर से ही पढ़ाई करनी पड़ रही है। बच्चों की शिक्षा में गिरावट दिख रही है। इसका सबसे बुरा असर गाँव के गरीब बच्चों पर हुआ है।

मोबाइल ना होने से बच्चे हैं पढ़ाई से वंचित 

जिनके पास पढ़ाई करने का साधन है, वे बच्चे तो किसी तरह पढ़ लेंगे लेकिन जो बच्चे गरीब हैं, वे बच्चे शिक्षा से वंचित हो जाएंगे। इस समय बच्चों की पढ़ाई ऐप्स द्वारा की जा रही है। यह शहरों के बच्चों के लिए अच्छा साधन होगा लेकिन गाँव में सबके पास मोबाइल नहीं होता और बच्चे पढ़ाई नहीं कर पा रहे हैं।

क्या आपने पहली और दूसरी कक्षा के बच्चों के बारे में सोचा है? अगर उनकी पढ़ाई जारी नहीं रही, तो वे पढ़ना-लिखना भी भूल जाएंगे। जब तक बच्चों को पढ़ाई करने के लिए प्रेरित ना किया जाए, तब तक छोटे बच्चे पढ़ाई नहीं करते। एसे में बच्चों का ध्यान खेल में ही लगा रहता है। अब जब उनकी पढ़ाई पर ध्यान देने के लिए कोई नहीं है, सोचिए उनकी पढ़ाई अब कैसे होगी?

छत्तीसगढ़ के ग्राम काऊवा ताल की निवासी है रुकमणी, जिनकी एक 10 साल की बेटी है, जिसकी पढ़ाई में बाधा आ गई है। वो बताती हैं, “मैं अपनी  बेटी की पढ़ाई तो करवाना चाहती हूं लेकिन हमारे पास मोबाइल ही नहीं है। यह खरीदने के लिए भी पैसे नहीं हैं। फिर भी, जितना हो सके मैं बेटी को पढ़ाई करने के लिए प्रेरित करती रहती हूं।”

वो आगे कहती हैं, “मैं उसे पढ़ाई में मदद भी करती हूं। जिनके पास मोबाइल है, वे तो  यूट्यूब या ऑनलाइन एप्स से पढ़ाई कर सकते हैं लेकिन हम क्या करें? मेरा तो सिर्फ यह प्रयास है कि उसकी शिक्षा बनी रहनी चाहिए।”

मोबाइल होते हुए भी नहीं हो रही पढ़ाई 

कुछ ऐसे मामले भी हैं जब किसी के पास मोबाइल भी हों, फिर भी पढ़ाई के समय बच्चों का ध्यान खेल में ही लगा रहता है। धोबी मोहल्ला में रहने वाली श्यामा बाई से बात करते हुए उन्होंने कहा, “मेरी एक बेटी है जो 10 साल की है और दो बेटे हैं, जो 11 साल के हैं। जबसे लॉकडाउन शुरू हुआ है, तब से बच्चे पढ़ाई ही नहीं करते। बच्चे दिनभर खेलते रहते हैं और गाँव में घूमते रहते हैं। मैंने खुद पढ़ाई नहीं की है और मैं अपने बच्चों को नहीं पढ़ा सकती। फोन पर बच्चों की पढ़ाई कैसे होगी?”

देश के कई गाँवों में मोबाइल ना होने की समस्या से बच्चों की पढ़ाई रुकी हुई है। जो विद्यार्थी कोर्स कर रहे हैं, उनकी पढ़ाई पहले ज़ूम एप्स के ज़रिये होती है लेकिन अब वह भी बंद हो चुकी है। अब वे सिर्फ पाठ्य पुस्तकों को ही दोहराकर पढ़ सकते हैं। जो कोर्स होते हैं, वह प्रैक्टिकल ज्ञान होता है और प्रैक्टिकल के ज़रिये ही कोर्स की पढ़ाई हो सकती है। प्रैक्टिकल के बिना पुस्तक की पढ़ाई नहीं कर सकते। जिस महीने में बच्चे पेपर लिखते थे, उस महीने में बच्चे घर पर ही बैठे हैं और कई बच्चे तो कम करने भी जाते हैं। कई विद्यार्थियों का पूरा साल बर्बाद हो गया है।

ढूंढना होगा हल

जिन बच्चों के पास मोबाइल है, उनसे विनती है जिन बच्चों के पास मोबाइल नहीं है उन्हें मदद करें ताकि उनकी पढ़ाई में रुकावट ना आए। सरकार और लोगों को मिलकर इस समस्या का हल जल्द-से-जल्द निकालना चाहिए।

पढ़ाई से ही यह देश आगे बढ़ेगा और लोगों की प्रगति होगी। अगर हमारे पास अभी दूसरा उपाय नहीं है, तो बच्चों की पढ़ाई जारी रखने के लिए कम-से-कम उन्हें मोबाइल फोन तो उपलब्ध कराना चाहिए।


नोट: यह लेख आदिवासी आवाज़ प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।

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