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“इस दुनिया और देश के लोकतंत्र को गाँधीवाद से ही बचाया जा सकता है”

महात्मा गाँधी

महात्मा गाँधी

बड़ों से उम्मीद बेकार है, अब बच्चे ही गाँधीवाद, लोकतंत्र और दुनिया को बचायेंगे। संयुक्त राष्ट्र संघ ने 2007 में गाँधी जयंती को अंतरराष्ट्रीय दिवस घोषित किया था। इस साल उनकी 150 वीं जयंती मनाई जा रही है।

यह किसने कहा आपसे ऑंधी के साथ हूं,
मैं गोडसे के दौर में गॉंधी के साथ हूं।

गाँधी के विचारों से युवा पीढ़ी पोषित हो रही है

महात्मा गाँधी के विचार, उनसे मिले संस्कारों की पूंजी से आज भी युवा पीढ़ी पोषित हो रही है। समाज की रगों में उनके विचारों की ऊर्जा बह रही है जो हर परिवेश को पुष्पित पल्ल्वित कर रही है। गाँधी से सभी वैचारिक संस्कार तो लिए लेकिन जब-जब आंदोलन की बात आई उनके जैसे शांतिपूर्ण विरोध की नज़ीर कोई पेश नहीं कर सका।

मौन सबसे सशक्त भाषण है, धीरे-धीरे दुनिया आपको सुनेगी।

उनके बहुत से परिवर्तनकारी विचार, जिन्हें उस समय असंभव कह कर परे कर दिया था, आज ना केवल स्वीकार किये जा रहे हैं, बल्कि अपनाये भी जा रहे हैं। आज की पीढ़ी के सामने यह स्पष्ट हो रहा है कि गाँधी जी के विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने उस समय थे। यह सिद्ध करता है कि गाँधी जी के विचार इक्कीसवीं सदी के लिए भी सार्थक और उपयोगी हैं।

गाँधी

इतिहास में साधारण से असाधारण हो जाने वालों की सूची बड़ी है, लेकिन साधारण से सर्वोत्तम साधारण होने का उदाहरण केवल गांधी जी हैं। गाँधी जी विश्व इतिहास की सर्वोत्तम अभिव्यक्ति है। भारतीय संस्कृति के शील आचार के अभ्यासी गाँधी भारत के राष्ट्रपिता कहे गए। गांधी विश्व इतिहास का आश्चर्य है| विराट व्यक्तित्व के कारण वह भाषा और परिभाषा की पकड़ में नहीं आते।

कोई असत्य से सत्य को नहीं पा सकता

गाँधी जी के अनुसार कोई असत्य से सत्य को नहीं पा सकता। सत्य को पाने के लिये हमेशा सत्य का आचरण करना होगा। अहिंसा और सत्य की तो जोड़ी है ना? हरगिज़ नहीं। सत्य में अहिंसा छुपी हुई है और अहिंसा में सत्य। इसीलिए मैंने कहा है कि सत्य और अहिंसा एक ही सिक्के के दो पहलू है दोनों की कीमत एक ही है, केवल पढ़ने में फर्क है; एक तरफ अहिंसा है, दूसरी तरफ सत्य।

सम्पूर्ण पवित्रता के बिना अहिंसा और सत्य निभ नहीं सकते। शरीर या मन की अपवित्रता को छिपाने से असत्य और अहिंसा ही पैदा होगी।अपने सक्रिय रूप में अहिंसा का अर्थ है ज्ञानपूर्वक कष्ट सहना। उसका अर्थ अन्यायी की इच्छा के आगे दबकर घुटने टेकना नहीं है; उसका अर्थ है कि अत्याचारी की इच्छा के खिलाफ अपनी आत्मा की सारी शक्ति लगा दी जाए।

जीवन के इस नियम के अनुसार चलकर तो कोई अकेला आदमी भी अपने सम्मान, धर्म और आत्मा की रक्षा के लिए किसी अन्यायी साम्राज्य के सम्पूर्ण बल को चुनौती दे सकता है और इस तरह से उस साम्राज्य के नाश या सुधार की नींव रख सकता है।

हिंसा वाला समाजवाद

गाँधी जी के अनुसार आराम-कुर्सी वाले या हिंसा वाले समाजवाद में मेरा विश्वास नहीं है। मैं तो अपने विश्वास के अनुसार आचरण करने को उचित मानता हूं और उसके लिए सब लोग मेरी बात मान लें, तब तक ठहरना अनावश्यक समझता हूं।

खतरों वाला जीवन जीने में रोमांच और उतेजना का अनुभव हो सकता है पर खतरों का सामना करते हुए जीने में औऱ खतरों वाला जीवन जीने में भेद है। जो आदमी जंगली जानवरों से और उनसे भी ज्यादा जंगली आदमियों से भरपूर जंगल में अकेले, बिना बंदूक के केवल ईश्वर के सहारे रहने की हिम्मत दिखाता है, वह खतरों का  सामना करते हुए जीता है।

दूसरा आदमी लगातार हवा में उड़ता रहता है और टकटकी लगाकर देखने वाले दर्शक समुदाय की वाहवाही लूटने के ख्याल से नीचे की ओर उड़ी लगाता है; वह खतरों वाला जीवन जीता है। पहले आदमी का जीवन लक्ष्यपूर्ण है, दूसरे का लक्ष्यहीन।

महात्मा गाँधी

मनोहर श्याम जोशी के अनुसार,

इस भारत के लिए प्रतीकात्मकता ही सबकुछ है। तकली थाम लेने से गाँधीवाद हो जाता है। बन्दूक पकड़ लेने से माओवाद। सेमिनार कर लेने से संस्कृति। चुनाव करा देने से लोकतन्त्र। सड़क बना देने से प्रगति। संस्था खोल देने से संस्था के उद्देश्य की पूर्ति।

अल्बर्ट आइंस्टाइन ने कहा था कि आने वाली नस्लें शायद मुश्किल से ही विश्वास करेंगी कि हाड़-मांस से बना हुआ कोई ऐसा व्यक्ति भी धरती पर चलता-फिरता था।

अब अंत में गाँधी जी के कुछ समावेशित विचार इस प्रकार हैं,

मनुष्‍य न तो कोरी बुद्धि है, न स्‍थूल शरीर है और न केवल हृदय या आत्‍मा ही है। संपूर्ण मनुष्‍य के निर्माण के लिए तीनों के उचित और एक रस मेल की जरूरत होती है और यही शिक्षा की सच्‍ची व्‍यवस्‍था है।

“गांधी एक विचार है और विचार कभी मरता नहीं, वो सदा के लिए अमर रहता है।”

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