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“घरेलू हिंसा, अश्लील कमेंट, महिलाओं का मज़ाक भी बलात्कार जैसी हिंसा से कम नहीं है”

देश के अलग-अलग हिस्सों से बलात्कार जैसी शर्मनाक, क्रूर और दिल को दहला देने जैसी घटनाएं लगातार आ रही हैं। बात सिर्फ दो चार मर्दो की नहीं हैं, अगर इन बलात्कारियों की गिनती की जाए तो बहुत बड़ी कतार खड़ी हो जाएगी।

ऐसी घटनाओं को लेकर मैं पहले भी लिख चूका हूं और मुझे नहीं पता कि मेरे लिखने या ना लिखने से कुछ फर्क पड़ेगा या नहीं लेकिन एक जीवंत इंसान होने के नाते मैं भरसक कोशिश करता हूं, जिससे समाज में कुछ फर्क पड़े।

चाहता तो आराम करता, छुट्टी मनाता या उन लोगों की बात मानकर बेफिक्र होता, जो कहते है क्यों इतना प्रेशर और टेंशन लेते हो। अगर ऐसी चीज़ें हमें परेशान नहीं करती तो हमारे भीतर का इंसान मर चुका है।

कब तक जस्टिफाई करेंगे पितृसत्तात्मक सोच

पिछले दो दिनों से सोशल मीडिया पर लोगों का काफी गुस्सा भी दिख रहा है, जो हो सकता है अपनी-अपनी जगह जायज़ हो। इस तरह का गुस्सा कोई नया भी नहीं हैं। हमें इस गुस्से के साथ-साथ बहुत अमूलचूल बदलाव की ज़रूरत है।

हम हर बार सिर्फ सरकार, पुलिस और कानून को दोषी मानकर, हमारे अंदर जो पितृसत्तात्मक सोच भरी पड़ी है, उसे जस्टिफाई नहीं कर सकते हैं।

जब तक हम अपने अंदर पनप रही पितृसत्तात्मक सोच को फांसी नहीं चढ़ाते हैं, इस तरह की घटनाएं कम होने की बजाए बढ़ती जाएंगी।

मैं पिछले दो-तीन दिनों से अलग-अलग लोगों को अलग-अलग तरीकों से सोशल मीडिया या व्यक्तिगत तौर पर बातचीत कर रहा हूं, जिससे हम चीज़ों को बेहतर और तर्कसंगत रूप से समझ सकें।

देश में बढ़ती बलात्कार की घटनाओं के खिलाफ प्रदर्शन

समाज का बड़ा तबका अभी भी असंवेदनशील

मैं लिखना इसलिए भी चाहता हूं क्योंकि इस तरह की घटनाओं पर भी हमारे समाज का एक बहुत बड़ा तबका बेहद असंवेदनशीलता दिख रहा है, जो बेहद शर्मनाक हैं। मैं अपनी बात को दो भागों में लिखना चाहता हूं,

सबसे पहले मैं कुछ प्रतिक्रियाओं को दिखाना चाहता हूं, जो पिछले दो दिनों से सोशल मीडिया पर काफी वायरल किया जा रहा है। उनमें से कुछ प्रतिक्रियाएं निम्नलिखित हैं।

सोशल मीडिया पर बलात्कार को कम्युनल करने की कोशिश

यह बात सही है कि पिछले कुछ सालों में हिन्दू मुस्लिम का ज़हर बहुत ज़ादा घोल दिया गया है। लोगों के अंदर इस गंदी मानसिकता को बढ़ाने का काम किया है, हमारे न्यूज़ चैनल्स और सोशल मीडिया ने, जो अलग-अलग नाम से ग्रुप बनाकर लोगों के अंदर एक समुदाय के प्रति खासतौर पर मुस्लिमों के प्रति नफरत फैलाने का काम कर रहे हैं।

सबसे बेहूदा और शर्मानक बात यह रही है कि इस घटना को पूरी तरह से कम्युनल करने की कोशिश की गई है। कई पोस्ट किए गए हैं जो एक विशेष धर्म के खिलाफ हैं। इस तरह के सभी पोस्ट एक विशेष विचारधारा से जुड़े लोगों ने किए हैं और यही वे लोग हैं, जो गाँधी को भी गाली दे रहे हैं।

ऐसे लोग जो इस तरह के पोस्ट शेयर कर रहे हैं, वे खुद लड़कियों और महिलाओं को कमेन्ट करते होंगे, छेड़छाड़ करते होंगे, चुटकुले करते होंगे और जिन लोगों का नाम लिखा है, उनसे भी ऑनलाइन छेड़खानी और बलात्कार करते होंगे।

इस तरह के वायरल पोस्ट्स को हिंदुत्व, भगवा, मोदी और भाजपा समर्थकों ने शेयर किया है, जिनका मकसद है अपनी नफरत भरे एजेंडे को आगे बढ़ाना। ऐसे लोगों को सच में बलात्कार से कुछ लेना देना नहीं हैं।

ऐसे लोग असल ज़िन्दगी में अपने परिवार,समाज में महिलाओं का कितना सम्मान और बराबरी रखते हैं, यह जग जाहिर हैं। सोशल मीडिया पर #Balatkari_Shiva_Naveen_Keshav_Bhi और #balatkari_mohammed_nikala इस बात का सबूत हैं।

मेरा निवेदन ऐसे लोगो से यही हैं कि अपने गिरेबान में झांककर देखें, खुले दिमाग से सोचे, समझे और एक बेहतर इंसान बनने की कोशिश करें।

हम जाने अंजाने बलात्कार कर रहे हैं

आज हममें से बहुत से मर्द सिर्फ इस बात से खुश हैं कि मैंने बलात्कार थोड़े ना किया है या हम बलात्कारी नहीं हैं लेकिन कहीं ना कहीं उनसे कम भी नहीं हैं। बलात्कारी होने के ठीक पहले वे लोग भी हम जैसे ही होते हैं। बलात्कार करने वालों को पता होता है कि वे जो कर रहे हैं वह गलत है लेकिन हम भी इसी तरह हर रोज़ गलत चीज़ें  करतें हैं, जो हमें मालूम होती है कि गलत है और हमें नहीं मालूम पड़ता।

उस गलत को हमने स्वीकार कर लिया है और मान्यता दे दी है। बच्चियों को असुरक्षा किससे है? आज ऐसे करोड़ों लोग भी गुस्से मे हैं और फांसी पर लटकाने की बात कर रहे हैं, जो

उन बलात्कारियों में से सारे बलात्कारी (जो दो दिन से बलात्कारी हैं) वे भी निर्भया घटना के समय निर्भया के बलात्करियों को फांसी पर लटकाने की बात कर रहे होंगे और गुस्से में रहे होंगे।

हम पितृसत्ता को अपने दिमाग में घर कर बैठे हैं

अच्छी बात यह है कि हम लड़के और मर्द अपने-अपने स्तर पर सही इंसान बनें उतना ही काफी है। हमें चाहिए कि

लेकिन दुर्भाग्य से हमारे समाज में इन सब पर ज़ोर नहीं दिया जाता है। बलात्कार हैवानियत से भरी हुई पुरुषार्थ या मर्दानगी साबित करने का सबसे आखिरी पड़ाव है। इसके पहले वाले सभी पड़ाव पर हम खुद जश्न मनाते हैं।

इससे पहले वाले सभी पड़ाव  हम जश्न मनाने की जगह एक बेहतर मर्द बनने की कोशिश करें तो बेहतर है लेकिन शर्म की बात यह है कि हम सभी लोग उस अन्तिम चरण पर पहुंच रहे हैं या किसी और को पहुंचा रहे हैं।

सदियों से चली आ रही है पितृसत्ता जो धर्म, इज़्ज़त, परम्परा के नाम पर हमारे परिवार और समाज में कूट-कूट कर भरी है, जो सबसे खतरनाक होता है। असली ज़िम्मेदार हम हैं, जो ऐसी सोच को अपने खून में घर कर बैठे हैं।

आज उस भीड़ को भी शर्म आनी चाहिए जो राम-रहीम, आसाराम, सेंगर, एम. जे. अकबर और ऐसे ही अनगिनत लोगों को मानते आए हैं। 

हम सभी को फांसी चढ़ जाना चाहिए

कृपया उस महिला डॉक्टर और उस जैसे तमाम लोगों की मृत्यु को व्यर्थ ना जाने दें। मुझे पता है कि कुछ दिनों के बाद जीवन सामान्य रूप से आगे बढ़ जाएगा और हम अपनी दिनचर्या में फंस जाएंगे, लेकिन हम सब अभी भी कुछ ना कुछ कर सकते हैं।

जो चीज़ें हम कर सकते हैं, उनमें से सबसे सरल क्या हैं?

इंटरनेट जागरूकता फैलाने का एक शानदार तरीका है और आपकी आवाज़ आपका सबसे शक्तिशाली हथियार है। वे इसे आपसे दूर नहीं ले जा सकते। अपने मंच का उपयोग करें।

जो फांसी-फांसी चिल्ला रहे हैं और उनको लगता है कि सिर्फ यही एक मात्र उपाय है, तो हम सभी को फांसी चढ़ जाना चाहिए।

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