Site icon Youth Ki Awaaz

FarmersProtest: “जे लोकां दी गल ही नहीं सुनडीं, ते काहे दा लोकतंतर”

जे लोकां दी गल ही नहीं सुनडीं ते काहे दा लोकतंतर

यह कहना है दिल्ली में आंदोलन कर रहे किसान जसबीर कौर का।

किसान आन्दोलन की कुछ खूबसूरत तस्वीरों में से एक है ये। पंजाब के मानसा से आई ये महिलाएं कोई साधारण महिलाएं नहीं हैं। लाल स्कार्फ़ में बैठी किसान नेता जसबीर कौर पूरे मानसा ज़िले में पिछले तीन महीने से घूम घूमकर किसान विरोधी बिलों के ख़िलाफ़ तमाम महिला पुरुष किसानों को गोलबंद कर रहीं थीं।

एनडीटीवी में पिछले दिनों रवीश कुमार के प्राइम टाइम शो में जसबीर कौर के काम, उनकी लगन और किसान आन्दोलन के प्रति उनका समर्पण देखा जा सकता है।

आमतौर पर जब भी किसान शब्द का ज़िक्र होता है, तो एक पुरुष किसान की छवि दिमाग़ में उभरती है। पंजाब की ये महिलाएं किसानों की उस छवि को तोड़ती हैं और यह साबित करती हैं कि चाहे मामला खेती किसानी का हो, घर परिवार की ज़िम्मेदारी हो या फिर अपने हक और अधिकार के लिए सड़कों पर पुलिस की लाठियां खानी हों, महिला पुरुष दोनों समान रूप से खुले आसमान के नीचे अपने बुलंद इरादों के साथ डटे हैं।

इस आन्दोलन की खूबसूरती यह है कि कई कई जगह पुरुष खाना बना रहे हैं और महिलाएं बैठकर खा रही हैं। हमारे यूपी-बिहार जैसा माहौल कम-से-कम अभी तक तो यहां देखने को नहीं मिला कि पुरुष ठाट से बैठकर रोटी खा रहा है और महिला सारा रसोई का काम कर रही है।

आंदोलन में खाना बनाने की ज़्यादातर भागीदारी पुरुष किसानों की ही दिखी है अभी तक। सब्ज़ी काटने, रोटी बनाने और और बर्तन धोने तक सारा काम पुरुष करते हैं।

हालांकि संख्या के मामले में पुरुषों जितनी भागीदारी प्रत्यक्ष रूप से महिला किसानों की नहीं हैं लेकिन उत्साह, समर्पण और ज़िम्मेदारी के मामले में महिला किसान पंक्ति में सबसे आगे हैं।

सुखबीर कौर टिकरी बॉर्डर किसान आन्दोलन की सारी ज़िम्मेदारी खुद देखती हैं। मंच संचालन, चंदे का हिसाब-किताब, अनुशासन व्यवस्था की पूरी ज़िम्मेदारी बखूबी निभाती हैं।

आंदोलन रोज़-ब-रोज़ और मज़बूत होता जा रहा है। लोगों में समर्पण और प्रतिबद्धता का आलम यह है कि सालभर बॉर्डर पर बैठने को तैयार हैं।


नोट: यह आर्टिकल द अनऑर्गेनाइज़्ड के लिए YKA यूज़र देवेश मिश्रा ने लिखा है।

Exit mobile version