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“सड़कों पर बैठा किसानों का जत्था मुझे मुगल शासन की कमज़ोरियों की याद दिला रहा है”

पिछले कुछ समय से आधुनिक भारत के इतिहास को टटोलने में लगी हूं। यकीनन हम में से सब ने दसवीं तक इतिहास को पढ़ा और उसकी परीक्षा को पास किया है।

यहां पर मैं पढ़ना और पास करना जैसे शब्द इसलिए इस्तेमाल कर रही हूं, क्योंकि उस उम्र में अच्छे नंबर्स लाने के बोझ में इतिहास जैसे गहरे और अनेकानेक कहानियों वाले विषय को समझने के लिए ज़रा भी वक्त नहीं होता। इसलिए रट कर ही काम चलाना पड़ता था।

जब मैं आधुनिक भारत किताब को पढ़ी

पिछले कुछ समय से आधुनिक भारत की मेरी समझ भी उतनी ही थी, जितनी एक दसवीं के विद्यार्थी की होती है। फर्क बस इतना है उन्हें रटना पड़ा, मुझे समझना पड़ा। इस बीच कई सवाल आए तो मैंने बिपिन चंद्रा की पुस्तक “आधुनिक भारत” की ओर रुख किया।

आज पहला दिन था तो भूमिका पढ़ी जिसका आरंभ होता है मुगलों के पतन के साथ। मोटे तौर पर इनके कारण तो हम सबको पता हैं मगर उन कारणों से जुड़ी कुछ बातें, जिन्होंने मेरा ध्यान अपनी और खींचा। आज उन बातों को आपसे साझा करूं, ताकि अतीत की वह मामूली सी बात हमारे आज के लिए एक आधार बन सके।

बात औरंज़ेब की 

औरंगज़ेब को विरासत में मुगलों का एक बड़ा साम्राज्य मिला लेकिन वे दृष्टिकोण नहीं मिले जिससे उनके पूर्वजों ने इतने लंबे समय तक राज किया। औरंज़ेब के साथ कहानी आगे बढ़ती है और यह पता चलता है कि कैसे उसने अपने ही पूर्वजों के विपरीत जाकर दक्षिण और मराठों को अधीन करने के उद्देश्य से कूच किया, जिसमें उसने पच्चीस वर्षो तक खुद को राजधानी से दूर रखा, जिससे उत्तरी प्रांतो में बगावत के सिर उठने लगे। इससे औरंगज़ेब की उस कमज़ोर का पता चलता है जिसने भविष्य के स्वप्न में वर्तमान की बुनियाद को भी हिला दिया।

फिर थोड़ा सा आगे जाने पर परिचय होता है उसकी धार्मिक कट्टरता से, जिसने उसे मुगलों की धार्मिक सहष्णुता को भुलाकर एकजुट साम्राज्य के टुकड़े खुद के ही हाथों से किए। आखिर में बात होती है उस बहुसंख्यक तबके की, जिनका धर्म भले ही अलग-अलग हो मगर उस धर्म से ज़्यादा उनकी पेशे से पहचान है। एक किसान और काश्तकार के रूप में जो शोषित ,हैं दमित हैं और अपने ही हक के लिए छोटे-छोटे आंदोलनों के रूप उद्वलित करते हैं।

आपको लग रहा होगा ऐसी कौन सी अलग सी बातें इसमें लिखी गई हैं, यह तो सबको पता है। बेशक सबको इन मामूली सी दिखने वाली बातें पता हों मगर इन बातों के बाद होने वाले नतीजों को शायद हमें इतनी आसानी से नहीं भूलना चाहिए। आज हम इन तीनो घटनाओ से किसी ना किसी तौर पर गुज़र रहे हैं।

इन सब के बीच सड़को पर बैठा किसानों का वह जत्था हमें फिर से मुगल शासन की कमज़ोरियों की ओर लिए जा रहा है। जिनकी राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक दूरदर्षिता के आभाव ने देश को गुलामियात की ज़ंजीरों में जकड़कर रख दिया।

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