विरोध करना लोकतांत्रिक व्यवस्था का आधार है, जिसे पिछले कुछ सालों में लगभग अपराध की श्रेणी में गिना जाने लगा है। पिछले कुछ दिनों से चल रहे किसान आंदोलन या यूं कहें कि लगभग तीन महीने से चल रहे आंदोलन, जिसने अब व्यापक रूप ले लिया है, को मेन स्ट्रीम मीडिया द्वारा आए दिन नए विश्लेषणों के साथ नवाज़ा जाता है।
गौर से देखने पर हम समझ पाएंगे कि यह कहीं-ना-कहीं सरकार की ही भाषा है, जहां विरोध दर्ज़ करने वालों को देशद्रोही, खालिस्तानी, पाकिस्तानी, आतंकी या विपक्षियों की साज़िश कहकर संबोधित किया जाता है।
दिल्ली के बॉर्डरों पर चल रहे किसान आंदोलन को लगभग 20 दिन हो चुके हैं। इस दौरान सरकार के कई बड़े नेताओं द्वारा बयान दिया गया है कि यह किसान आंदोलन नहीं हैं, बल्कि राजनीतिक फायदे के लिए किया गया आंदोलन है।
किसानों को भड़काया गया है, यह दुश्मन देशों की साज़िश है और जाने क्या-क्या! समझने वाली बात यह है कि इन बातों में कितनी सच्चाई है? क्या वाकई यह किसान आंदोलन नहीं, सिर्फ राजनीतिक फायदे के लिए किया गया आंदोलन है?
किसके हाथों में है किसान आंदोलन की कमान?
केन्द्र सरकार द्वारा लाए गए तीन कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए किसान पिछले 19 दिनों से दिल्ली के बॉर्डरों पर डटे हुए हैं। बाकि आंदोलनों की तरह इस आंदोलन की कमान भी कुछ नेताओं के हाथ में है, नहीं ज़रा ठहरिए राजनीतिक पार्टियों के नेता नहीं, बल्कि किसान संगठन से जुड़े नेता।
इसमें हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश के लगभग 30 से ज़्यादा किसान संगठन शामिल हैं, जिनमें से उन पांच बड़े चेहरों की बात कर लेनी चाहिए जो इस आंदोलन के मुख्य चेहरे हैं।
जोगिंदर सिंह उगराहां
जोगिंदर सिंह उगराहां किसान आंदोलन के प्रमुख चेहरों में से एक हैं। वो संगरूर ज़िले के सुनाम शहर के रहने वाले हैं, जो किसान परिवार से आते हैं।
वो भारतीय सेना से रिटायर हैं, जिसके बाद उन्होंने किसान हित के लिए काम करना शुरू कर दिया। 2002 में जोगिंदर सिंह ने भारतीय किसान यूनियन (उगराहां) का गठन किया।
बलबीर सिंह राजेवाल
बलबीर सिंह राजेवाल भारतीय किसान यूनियन के संस्थापकों में से एक हैं। ये पंजाब के खन्ना जिले के राजेवाल गांव के रहने वाले हैं और स्थानीय एएस कॉलेज से 12वीं पास हैं। भारतीय किसान यूनियन का संविधान भी इन्होंने ही लिखा है।
ये स्थानीय मालवा कॉलेज की प्रबंधन समिति के अध्यक्ष भी हैं, जो वर्तमान समय में समराला क्षेत्र का एक अग्रणी शैक्षणिक संस्थान है। देश में चल रहे किसान आंदोलन के डिमांड चार्टर का मसौदा तैयार करने में राजेवाल की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
जगमोहन सिंह
जगमोहन सिंह भारत-पाकिस्तान की सीमा से लगे पंजाब के फिरोज़पुर ज़िले के करमा गाँव के रहने वाले हैं। वो भारतीय किसान यूनियन डकौंदा के नेता हैं, जिसे उगराहां संगठन के बाद दूसरा सबसे बड़ा संगठन कहा जा सकता है। वो 1984 के सिख विरोधी नरसंहार के बाद सामाजिक कार्यकर्ता बन गए।
किसान संघर्ष के प्रति उनकी ईमानदारी के कारण उन्हें ना केवल अपने संगठन में, बल्कि कई अन्य संगठनों में सम्मान मिलता है। अभी वो 30 किसान संगठनों के गठबंधन में भी महत्वपूर्म भूमिका निभा रहे हैं।
डॉक्टर दर्शनपाल
वो क्रांतिकारी किसान यूनियन के नेता हैं। हालांकि इस संगठन में लोगों की संख्या कम है लेकिन डॉक्टर दर्शनपाल वर्तमान में 30 किसान संगठनों के समन्वयक हैं। इसलिए वो एक बड़े नेता के रूप में जाने जाते हैं। 1973 में एमबीबीएस और एमडी करने के बाद वो सरकारी सेवा में रहे।
वो अपने कॉलेज के दिनों में और नौकरी के दौरान छात्र संघ और डॉक्टरों के संगठन में हमेशा सक्रिय रहे। 2002 में सरकारी नौकरी छोड़ने के बाद वो किसानों के हित के लिए काम करने लगे।
सरवन सिंह पंधेर
सरवन सिंह पंधेर पंजाब के माझा क्षेत्र के एक प्रमुख युवा किसान नेता हैं। वो किसान मज़दूर संघर्ष समिति के महासचिव हैं, जिसका गठन 2000 में सतनाम सिंह पन्नू ने किया था। वो भी आंदोलन का एक अहम चेहरा हैं।
आंदोलन का नेतृत्व कर रहे इन नेताओं के बारे में जानने के बाद यह बात साफ हो जाती है कि आंदोलन की बागडोर कम-से-कम किसी भी राजनीतिक पार्टी के तो हाथ में नहीं है, बल्कि किसानों के लिए काम कर रहे किसान संगठन और उनसे जुड़े नेताओं के हाथ में है।
किसान आंदोलन को राजनीतिक कहना कितना उचित है
इसमें कोई दो राय नहीं है कि विपक्ष के विरोध करने के पीछे राजनीतिक हित छिपे होते हैं लेकिन अगर इस किसान आंदोलन की बात करें तो इस आंदोलन को संभालने वाले किसान नेता किसी भी राजनीतिक पार्टी की दखलअंदाज़ी नहीं चाहते हैं।
हालांकि 8 दिसंबर को किए गए भारत बंद में कई विपक्षी पार्टियों ने किसानों के समर्थन में प्रदर्शन किए, जो कि कई जगह हिंसक भी रहा जिसके बाद आंदोलन के मुद्दे से भटकने की बात कही जाने लगी मगर इन सबके बीच किसानों और उनके नेताओं की मांग जो वे पिछले कई दिनों से कर रहे हैं, वह नहीं बदली।
ऐसे में जो लोग इस आंदोलन को राजनीतिक हित का बता रहे हैं, उनको यह समझना होगा कि नेतृत्व करना और समर्थन करना दो अलग बातें हैं। गौर करने पर पाएंगे की राजनीतिक पार्टियां केवल समर्थन कर रहीं है। कमान किसान नेताओं के हाथ में है। ऐसे में इसे राजनीतिक हित का आंदोलन कह देना कितना उचित है और कितना अनुचित, यह खुद-ब-खुद साफ हो जाता है।