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ये कदम उठाए गएं तो दुरुस्त हो जाएगी भारत की स्कूली शिक्षा

एक बेहतर और टिकाऊ भविष्य अपनी अगली पीढ़ी को देने की इच्छा सभी में होती है। इसके लिए हम अपने आस-पास के संशोधनों और सेवाओं में सुधार लाने के लिए कुछ लक्ष्य निर्धारित करते हैं। ऐसे ही अंतरराष्ट्रीय समुदायों ने मिलकर संयुक्त राष्ट्र के माध्यम से 17 सतत विकास के लक्ष्यों को 2030 तक प्राप्त करके का एजेंडा बनाया है।

अगर उसके पीछे की मनसा को मद्देनज़र रखें तो इन 17 सतत विकास लक्ष्यों के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय समुदाय एक बेहतरीन और सतत भविष्य के सपने को सपन्न करना चाहता है। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस के अनुसार,

17 सतत विकास लक्ष्यों के जुड़ाव की बात करें तो स्पष्ट हो जाता है कि इनमें से कोई भी लक्ष्य किसी दूसरे लक्ष्य से कम महत्वपूर्ण नही है। सभी लक्ष्यों को ध्यान में रखकर ही भविष्य की रणनीतियों को रेखंकित किया जाना चाहिए। इन 17 सतत विकास लक्ष्यों में एक लक्ष्य है,

चाहे लड़का हो या लकड़ी दोनों को गुणवत्तापूर्ण उच्चतम और व्यवसायी शिक्षा मुहैया करना इस लक्ष्य का एजेंडा है। इसके साथ-साथ स्कूल से ड्रॉपआउट व अन्य समस्याओं का समाधान करना भी इस लक्ष्य के केंद्र बिंदु हैं।

इसकी प्राप्ति के लिए पूरा विश्व एक सक्रिय भूमिका निभा रहा है। भारत में नीति आयोग ने शिक्षा की गुणवत्ता को ध्यान से रखते हुए स्कूलों का शिक्षा सूचकांक जारी किया है, जिसमें शिक्षा की गुणवत्ता को आधार बनाकर सभी राज्यों को रैंकिंग दी गई है। इस तरह के प्रयास शिक्षा की गुणवत्ता का सही आंकलन करके सुधार लाने की पहल है।

इस दिशा में भारत सरकार की भूमिका

ऐसी पहल को आगे ले जाने के लिए हर स्तर पर सभी को अपनी भूमिका को समझना चाहिए। अगर हम यूनिसेफ की रिपोर्ट की बात करें तो भारत में 50% युवाओं के पास 21वीं सदी की नौकरियों के लिए काबिलियत नहीं है। यह इस बात को भी स्पष्ट करता है कि कहीं-ना-कहीं हमारे एजुकेशन सिस्टम में वे बदलाव लाने की ज़रूरत है, जिससे हमारे युवाओं के कौशल का विकास हो सके। ऐसे में नीति आयोग के सामने यह चुनौतियां भी रहेगी कि कैसे आधुनिकता को देखते हुए शिक्षा प्रणाली के मानकों को सुनिश्चित किया जाए।

स्कूल प्रबंधन समिति की भूमिका

सतत विकास लक्ष्य 4 को धरातल पर उतारने में सही मायनों में भूमिका की बात करें तो स्कूल प्रबंधन समिति वास्तव में इस लक्ष्य की प्राप्ति में बड़ी भूमिका अदा कर सकती है। शिक्षा नीति अधिनियम 2009 के अनुभाग 21 के तहत सरकारी एवं सरकार सहायक स्कूलों में स्कूल प्रबंधन समिति का गठन अनिवार्य है। स्कूल प्रबधंन समिति, समुदाय की भागीदारी से स्कूली शिक्षा में सुधार लाने के लिए एक तरह से निगरानी का कार्य करती है। इस समिति में स्कूल के हेडमास्टर, टीचर्स, बच्चों के माता-पिता, सामाजिक कार्यकर्ता और गाँव के अन्य हितकारी लोग शामिल होते हैं।

इसके साथ-साथ स्कूल में निर्माण संबंधित कार्यों, मिड डे मील, अध्यापकों की उपलब्धता, वित्तिय लेखा-जोखा जैसे कार्यों को सुनिश्चित करना है। वास्तविकता की बात करें तो यह समिति सिर्फ वित्तिय कार्यों के इर्द-गिर्द ही सीमित रह गई है।

दूसरा, अभिभावक का स्कूल प्रशासन पर दोषारोपण करना और स्कूल प्रशासन का अभिभावकों पर दोषारोपण करने के कार्य ने असली उद्देश्य को धूमिल कर दिया है।

अगर स्कूल प्रबंधन समिति द्वारा स्कूल का सही तरीके से सोशल ऑडिट किया जाए, तो देश के प्रत्येक स्कूल में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लक्ष्य की प्राप्ति हो सकती है। स्कूल प्रबंधन समिति के उद्देश्यों, कार्यों और शक्तियों की सही जानकारी देकर अगर समुदाय की ओर स्कूल प्रबंधन को जागरूक किया जाए तो सतत विकास लक्ष्य-4 की प्राप्ति का रास्ता बनाया जा सकता है। इसके बाद ही स्कूल प्रबधंन समिति को सही मायनों में क्रियान्वित किया जा सकता है। शिक्षा का महत्व, शिक्षा की गुणवत्ता और सतत विकास लक्ष्य 4 की नज़रों से देखें, तो स्कूल प्रबंधन समिति मील का पत्थर साबित हो सकती है।

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