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“प्यार करने पर घरवालों ने बेल्ट से मेरी पिटाई कर दी”

मैं दुनिया के जिस सिरे से बोल रही हूं, उसे हरियाणा कहते हैं। हरियाणा अपने आप में एक सभ्यता है, जो दुनिया के अलग ही रंग में रंगी है। यहां खाप पंचायत भगवान की तरह फैसले देती रही है लेकिन आजकल उनका रुतबा वक्त ने कम कर दिया है।

पंचायत ने प्रेम-प्रसंग पर जात देखकर सुनाया फैसला

पंचायत ने कुछ इस तरह के फैसले दिए कि जहां गोत्र विवाद हुआ उनको भाई-बहन बना दिया, जहां और कोई ताम-झाम हुआ, वहां थोड़ी शह देकर लड़के-लड़की को मरवा दिया।

मोहब्बत दुनिया के किसी हिस्से में पनप सकती है लेकिन हरियाणा में बिल्कुल नहीं। इन सबके बावजूद कई किस्से ऐसे देखे हैं, जिनको सुनकर लगा कि हां वक्त बदल रहा है। यह बदलाव सकरात्मक वक्त की तकदीर का पहला पन्ना हो सकता है।

आजकल एक लड़की से तकरीबन रोज़ मुलाकात हो जाती है, नाम सुनीता है। बेहद खूबसूरत लड़की है, बातों-बातों में पता चला कि उनकी लव मैरिज हुई है। मैं उत्सुक थी जानने के लिए कि कब, कैसे, क्या-क्या हुआ इश्क में। इस पर वो कहती हैं, “हमारी शादी को आठ साल हो गए हैं। जब शादी हुई थी तब मैं M.Sc के पहले साल में थी। मेरे पति बीए के दूसरे साल में थे। बगावत मंज़ूर थी लेकिन अपने संस्कार गिराकर नहीं। प्यार तो चाहिए था लेकिन यह घर छोड़कर भाग जाना ना मेरे प्यार की दुनिया को गवारा था और ना मेरे ज़मीर को।”

वो आगे बताती हैं, “संदीप से झब प्यार हुआ तब मैं खुद 11वीं कक्षा में थी। संदीप ने मुझसे झूठ कहा था कि वह भी 11वीं में ही है लेकिन दूसरे स्कूल में। मेरी बुआ के घर में दुकान थी, कई बार ज़रूरत के लिए हम भी दुकान देख लेते थे। तब पहली बार संदीप को देखा। उसको मुझे देखते ही प्यार हुआ। बात दोस्ती से शुरू हुई और इस दोस्ती का पता मेरे भाई को लग गया। उसने मुझे बेल्ट से खूब मारा लगभग अधमरी हालत में पहुंचा दिया। फिर कुछ वक्त तक संदीप से कोई बात नहीं हुई। फिर मुझे पता लग गया कि वह तो 9वीं कक्षा में है।”

बचपना था लेकिन एहसास सच्चे थे

सुनीता कहती हैं, “फिर नदी के किनारों की तरह चलते ही रहे साथ-साथ मिलने की उम्मीद में। मेरी 12वीं कक्षा हो गई तो मैं बुआ के घर से अपने घर आ गई। फिर लगा कि रिश्ते की डोर कमज़ोर थी शायद इसलिए साथ छुट गया।”

तब फोन कहां होते थे, एसटीडी होती थी। इस तरह बीए का एक साल निकल गया लेकिन संदीप से कोई बात नहीं हुई।

सालभर बाद फिर आमने-सामने हुए 

सुनीता बताती हैं, “जब हम आमने-सामने हुए तो उसको देखते ही रोने को जी चाहा लेकिन मन में गुस्सा था तो दूर रहना ठीक लगा। फिर जो साथ हुए हम दोनों तो घर वालों को पता चल गया। फिर मेरी बेल्ट से पिटाई हुई और संदीप को भी मारा गया।”

वो आगे कहती हैं, “प्यार था कि कम होने का नाम नहीं ले रहा था। भाई ने कई बार मारा और पूछा कि बता अब उससे बात करेगी? लेकिन हर बार जवाब यही रहा कि मुझे तो शादी भी उससे ही करनी है।”

संदीप ने कई बार मेरे भाई से मार खाई लेकिन खामोश रहा

सुनीता कहती हैं कि पापा ने खूब लताड़ा। चाचा जी कोई रिश्ता लाते और मेरे मना करते ही खूब मार पड़ती। कई बार ख्याल आता था कि इन लोगों के साथ अकेले जाने में भी खतरा है, क्या पता कहां मारकर दबा दें।

वो बताती हैं, “बहरहाल, वह वक्त भी आया जब मेरे घरवाले मान गए और शादी कर दी। फिर मुसीबत शुरू हुई, सास-ससुर ने घर से बाहर कर दिया। पचास हज़ार रुपये घर वालों ने दान दे दिया था, उससे किराया दिया। मैंने शॉप पर नौकरी की। फिर मैंने स्कूल में नौकरी की तो संदीप ने फॉर्म भरने वाला बूथ खोला।”

सुनीता कहती हैं, “गरीबी झेल ही रहे थे कि बेटे की सुखद आमद ने ज़िंदगी में रंग भर दिया। संदीप को रेलवे में नौकरी मिल गई और मुझे टीचिंग में। हां ज़िन्दगी बहुत बेहतर है और साथ मायके का है। आज वही लोग कहते हैं कि ऐसा दामाद तो दिया लेकर भी ढूंढ़ते तब भी नहीं मिलता।”

वक्त की मार ने हमें इतना मज़बूत कर दिया था कि गरीबी के दिन भी रास आए, जो  तकलीफदेह नहीं लगे। 

वो बताती हैं, “आज का माहौल बेशक थोड़ा खुल गया है लेकिन तब हर कदम पर डर लगता था कि कहीं किसी रिश्तेदारी में ले जाने के नाम पर मार ही ना डालें। लगता था कि जब मरना ही है तो यह मास्टर्स मैथ्स से कर क्यों रही हूं लेकिन ज़िन्दगी की कोई दुआ काम आई।”

सुनीता कहती हैं कि हम आज साथ-साथ हैं। इतना सब होने के बाद शायद मोहब्बत की तड़प भी हासिल होने के बाद तक महसूस होती रहती है। आज भी दिल कांप उठता है संदीप को खोने के ख्याल से ही।

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