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बंजारा स्कूलों की देन हैं तारा जैसी बेटियां

नोबल शांति पुरस्‍कार से सम्मानित श्री कैलाश सत्यार्थी दुनियाभर के बच्चों के लिए काम कर रहे हैं। एक शोध के मुताबिक वेह दुनिया में अकेले ऐसे व्यक्ति हैं, जिनके नाम सबसे अधिक बच्चों को गुलामी से आज़ाद कराने का रिकॉर्ड दर्ज़ है। श्री सत्यार्थी की पत्‍नी श्रीमती सुमेधा कैलाश भी उनसे पीछे नहीं हैं।

वह मुक्त बाल मज़दूरों के लिए एक पुनर्वास केंद्र चलाती हैं, जिसका नाम बाल आश्रम है। गौरतलब है श्रीमती सुमेधा बाल आश्रम की संस्थापिका भी हैं। उन्होंने 1998 में इस आश्रम की स्थापना की थी। बाल आश्रम राजस्थान के जयपुर ज़िले के विराट नगर कस्बे में अरावली पर्वतमालाओं के बीच अवस्थित है।

बंजारा समुदाय के बच्चों को सुधारने का संकल्प

बाल आश्रम के आसपास लगभग 30-40 किलोमीटर दूर तक घुमंतू-बंजारा जनजाति की बस्तियां फैली हुई हैं। बंजारा समुदाय में आज भी शिक्षा का अभाव है। सरकार की लाख कोशिशों के बावजूद बंजारा समुदाय के बच्चे शिक्षा से वंचित हैं। जब श्रीमती सुमेधा बाल मित्रों ग्रामों के कार्यक्रमों में शिरकत करने जातीं थीं तो वह बंजारा बस्ती के बच्चों को इधर-उधर घूमते हुये देखती थीं।

उन्होंने अपने मन में इन बच्चों को शिक्षित करने का दृढ़-संकल्प लिया और बंजारा समुदाय की इस समस्‍या को शिद्दत से समझा तथा इस समुदाय में शिक्षा का प्रचार-प्रसार करने के लिए बंजारा स्‍कूलों की शुरुआत अपने मित्रों के द्वारा सहयोग की। अब बाल-आश्रम इन स्कूलों के संचालन की ज़िम्मेदारी उठा रहा है। तारा बंजारा जैसी बच्‍ची इसी स्‍कूल की देन हैं, जो आज 12वीं कक्षा में पढ़ते हुए बाल अधिकारों के पक्ष में आवाज़ बुलंद कर रही हैं।

बंजारा स्कूल बैरावास में शिक्षा ग्रहण करते हुये बंजारा समुदाय के बच्चे। फोटो साभार; कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फ़ाउंडेशन।

सामाजिक जागरुकता पैदा करने हेतु शाहिद कपूर के हाथों रिबॉक फिट टू फाइट अवार्ड से भी सम्‍मानित की जा चुकी हैं। यह अवार्ड-सेरेमनी मुंबई में आयोजित हुई थी। तारा की प्रेरणा से कई और बच्चियां भी पढ़ाई कर रही हैं और अपने समुदाय में जन-जागरण का काम कर रही हैं।

गौरतलब है कि बंजारों की बस्तियां आबादी से दूर जंगलों में स्थित होती हैं। वह एक स्थान से दूसरे स्थान पर अपना निवास-स्थान बदलते रहते हैं। उनमें गरीबी, अंधविश्‍वास और जागरुकता की कमी भी अशिक्षा जैसे कारण की वजह से हैं। सन 2008 में श्रीमती सुमेधा कैलाश ने बंजारा समुदाय में अशिक्षा की समस्या को न सिर्फ समझा बल्कि उसका समाधान भी निकाला। उन्‍होंने अलवर ज़िले की थानागाज़ी तहसील के भांगडोली गांव के पास की बंजारा बस्ती में एक स्कूल की शुरुआत की। 

स्कूल खुलने से पहले इस बस्ती का कोई भी बच्चा स्कूल नहीं जाता था। इस तरह बंजारा बस्ती के बच्चे अनौपचारिक शिक्षा से जुड़ गए और प्रारंभिक शिक्षा लेने लगे। श्रीमती सुमेधा के इस प्रयास से बंजारा समुदाय में बच्चों को स्कूल भेजने का जज़्बा पैदा हुआ। श्रीमती सुमेधा ने न केवल वहां शिक्षण कार्य शुरू किया बल्कि उनकी अन्य समस्याओं के समाधान में भी दिलचस्‍पी लेनी शुरू की।

बस्ती को मिला सहारा

एक दूसरे बंजारा स्कूल में शिक्षा ग्रहण करते हुये, बंजारा समुदाय के बच्चे । फोटो साभार; कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फ़ाउंडेशन।

बंजारा समुदाय की भांगडोली बस्‍ती एक पहाड़ी की तलहटी में अवस्थित है। कथित रूप से यह ज़मीन सरकारी है। वर्ष 2008 में एक दिन उस ज़मीन को खाली कराने के लिए सरकारी अधिकारी वहां पहुंच गए। भांगडोली की बंजारा बस्ती के सरदार गोपी बा ने श्रीमती सुमेधा के पास इस बाबत खबर भिजवाई। तब श्रीमती सुमेधा के हस्तक्षेप से उनके डेरे उजड़ने से बचे। श्रीमती सुमेधा ने सरकारी तंत्र पर वहां मूलभूत सुविधाएं भी उपलब्ध कराने का दबाव बनाया। इस बस्ती में पीने के पानी की व्यवस्था नहीं थी। महिलाओं को 3-4 किलोमीटर दूर से पानी लाना पड़ता था। श्रीमती सुमेधा ने जन सहभागिता के माध्यम से वहां एक हैंड-पंप भी लगवाया।

श्रीमती सुमेधा नीमड़ी नामक स्थान पर भी बंजारा समुदाय की बस्ती में बच्चों के लिए अनौपचारिक शिक्षा हेतु एक स्कूल का संचालन करती हैं। जिस स्थान पर बंजारों के डेरे हैं, उसी स्थान के समीप किसी बाबा की गऊशाला भी है। बात सन 2014 की है, दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा वाले दिन शाम के समय बाबा के गुंडे लाठी-डंडों से लैस होकर बंजारों की भूमि को कब्‍ज़ा करने के उद्देश्‍य से आ धमके। बाबा के गुंडों ने बंजारों के डेरों में आग लगा दी। उनके घरों का सारा सामान जलकर राख़ हो गया। गुंडों ने महिलाओं और बच्चों की बुरी तरह से पिटाई भी की। इनमें कई महिलाएं गर्भवती थीं। 

श्रीमती सुमेधा को जब इस घटना का पता चला तो वह बहुत दुखी हुईं। उन्‍होंने बाल आश्रम से खाना बनवाकर भिजवाया। बंजारों के पहनने व ओढ़ने के कपड़े भी भिजवाए। बाल आश्रम के कार्यकर्ताओं को पीड़ित परिवारों की देख-भाल में लगाया। बंजारे, बाबा के गुंडों के भय से रिपोर्ट दर्ज़ नहीं करा रहे थे। सबसे पहले श्रीमती सुमेधा ने महिलाओं और पुरुषों को ढाढ़स बंधाया और अपराधियों के विरुद्ध पुलिस में रिपोर्ट दर्ज़ कराई।

श्रीमती सुमेधा 2008 से ही बंजारा समुदाय के बच्चों को अनौपचारिक शिक्षा देने हेतु भांगडोली और नीमड़ी के साथ-साथ गोपालपुरा, खेटानारायनपुर, रायपुरा, बैरावास, गुवाड़ा हनुमान, बीसूनी, माजरारावत, गड़ियाजोहड़ और बीलबाड़ी जैसी जगहों पर बंजारा स्कूलों का संचालन कर रहीं हैं।

इन स्कूलों के माध्यम से ना केवल बच्चों को शिक्षा दी जाती है बल्कि महिलाओं का सशक्तिकरण तथा बंजारा समुदाय के विकास हेतु भी कार्य किए जाते हैं। श्रीमती सुमेधा ने उपरोक्त सभी बस्तियों में पीने के पानी का इंतजाम किया है। अभी तक इन स्कूलों में 401 बच्चों का पंजीकरण हो चुका है, जिनमें से 130 बच्चों का सरकारी स्कूलों में भी औपचारिक शिक्षा हेतु दाखिला कराया जा चुका है। श्रीमती सुमेधा बच्चों के लिए किताब, कॉपी, पेन-पेंसिल के अलावा पहनने के लिए कपड़ों की भी व्यवस्था करती हैं तथा घर से दूर स्कूल जाने वाली बच्चियों के लिए साइकिलें भी उपलब्ध करवाई हैं।  

मिसाल बनती गईं तारा

जनवरी 2013 में बाल आश्रम के कार्यकर्ताओं के माध्यम से एक बंजारा बेटी तारा बंजारा का स्कूल में दाखिला हुआ था। तारा का परिवार बहुत गरीब है। रूढ़िवादिता के दुष्चक्र में फंसे उसके माता-पिता उसे स्कूल नहीं भेजना चाहते थे। बंजारा समुदाय में लड़कियों के स्कूल जाने को बुरा माना जाता है। तारा की इच्छा पढ़ने-लिखने की थी। बाल आश्रम के कार्यकर्ता ने तारा के माता-पिता को शिक्षा का महत्व बताया और वह तारा को स्कूल भेजने पर सहमत हो गए।

तारा बंजारा बाल आश्रम की संस्थापिका श्रीमती सुमेधा कैलाश के साथ, दाहिने से तीसरे नंबर पर। फोटो साभार; कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फ़ाउंडेशन।

तारा बंजारा अलवर ज़िले के नीमड़ी गांव की रहने वाली हैं। जब तारा सात साल की थीं, तभी से उसे अपनी मां के साथ सड़कों पर सफाई कार्य करना पड़ता था। तारा जब दूसरे समुदायों के बच्चों को स्कूल जाते देखतीं तो उसके मन में भी स्कूल जाने की इच्छा होती। तभी बाल आश्रम के कार्यकर्ताओं ने उसके माता-पिता से संपर्क किया और तारा का दाखिला स्कूल में हो गया। वर्तमान में तारा 12वीं की छात्रा है।

तारा अपनी बस्ती की पहली बेटी है जिसने 10वीं पास की है। तारा पढ़ाई के साथ-साथ सामाजिक कार्यों में भी बढ़-चढ़ कर भाग लेती है। उसने बाल-श्रम, नशाखोरी, बाल दुर्व्‍यापार ट्रैफिकिंग, बाल विवाह आदि सामाजिक बुराइयों के खिलाफ आवाज़ बुलंद की है। तारा बच्चों के अधिकारों की निरंतर लड़ाई लड़ रही हैं। अपनी पहल से वह अपने समुदाय के कई बच्चों का स्कूल में दाखिला करा चुकी है। अब तारा के गांव में कोई बच्चा मज़दूरी नहीं करता और न ही कोई बाल विवाह ही होता है। तारा अपने गांव की महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति भी जागरूक करती रहती हैं।

तारा की प्रेरणा से अलग-अलग बंजारा स्कूलों में इस समुदाय की कई बेटियां जैसे मोनिका बंजारा 10वीं, अमृता बंजारा 9वीं, सपना बंजारा 7वीं, पूजा बंजारा 5वीं, सजना बंजारा तीसरी कक्षा में पढ़ रहीं हैं।

साथ ही ये बेटियां बाल-विवाह, बाल मजदूरी, नशाखोरी आदि सामाजिक बुराइयों के विरुद्ध भी आवाज़ बुलंद कर रही हैं। तारा की हार्दिक इच्छा है कि उसके समुदाय की सभी लड़कियां स्कूल जाएं और अपने पैरों पर खड़ी होकर देश तथा अपने समाज का नाम रोशन करें। बंजारा स्कूलों के माध्यम से इस समुदाय में शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव आए हैं। निस्‍संदेह इन बदलावों का श्रेय श्रीमती सुमेधा को जाता है। श्रीमती सुमेधा हमेशा तारा और दूसरी बेटियों का मनोबल बढाती रहती हैं और पढ़ने व बुराइयों से लड़ने की प्रेरणा देती रहती हैं।

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