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जल ही जीवन है जैसे नारों के बीच देश प्यास की ओर बढ़ रहा है

धरती का तीन चौथाई भाग पानी से भरा हुआ है, जिसमें से अधिकांश खारा पानी है जो पीने योग्य नहीं है। धरती पर मौजूद पानी का केवल 3% ही पीने योग्य है। इस पीने योग्य पानी में से 2% ग्लेसशियर या हिम के रूप में है। जिसका तात्पर्य है कि वस्तुतः केवल 1% पानी ही पीने के प्रयोग में लाया जा सकता है।

वैश्विक जल आपूर्ति के आंकड़े

एक आकलन के अनुसार विश्व के सर्वाधिक जनसंख्या वाले नम्बर-2 के देश-भारत में विश्व की जनसंख्या की लगभग 18% आबादी यहां रहती है। लेकिन उपलब्ध पीने योग्य कुल पानी का मात्र 4% ही भारत में  मौजूद है। यह आंकडे़ स्वत: ही जल संकट की भयावह स्थिति प्रकट करते है। चेन्नई जैसे कई शहरों मे पानी की भयंकर कमी ने हमारे देश मेंजल संकट की तरफ एक बार फिर से लोगों का ध्यान आकर्षित किया है।

खुद भारत सरकार के संगठन नीति आयोग ने जून 2019 रिपोर्ट में आने वाले जल संकट के प्रति आगाह करने वाली रिपोर्ट जारी की, जिसके अनुसार देश की राजधानी दिल्ली एवं आईटी हब कहे जाने वाले शहर बेंगलुरु एवं हैदराबाद, चेन्नई सहित कुल 21 शहरों का ग्राउंड वाटर लेवल 2020 तक शून्य हो जाने की संभावना व्यक्त की गयी है।

रिपोर्ट में वर्ष 2030 तक देश की 40% आबादी को पीने का पानी उपलब्ध नहीं रह जाने और 2050 तक जल संकट की वजह से देश की जीडीपी को 6% का नुकसान होने की बात के साथ ही प्रति वर्ष करीब 2000 भारतीयों के स्वच्छ पानी की आपूर्ति के अभाव में मर जाने की बात भी कही गयी है।

जल समस्या की इस भयावह स्थिति से बचने के लिए हमें गम्भीरता से सोचने की जरूरत है। इस संदर्भ मे यह अति प्रासांगिक है कि हम यह पता करें कि हम इस संकट की अवस्था में क्यों और कैसे पहुंचे तथा इस परिस्थिति से यथाशीघ्र कैसे बचा जाए।

जल की पूर्ति के लिए कई प्राकृतिक आयाम

जल संकट अर्थात् जल उपयोग की मांग को पूरा करने के लिए उपलब्ध जल संसाधनों की कमी का मूल कारण बारिश की कमी या मानसून का देर से आना नहीं है। अपितु अप्रत्याशित जनसंख्या वृद्धि, जल संसाधनों का दुरूपयोग, जल प्रबंधन की दुर्व्यवस्था एवं जलवायु परिवर्तन जल संकट की त्रासदी के प्रमुख कारण है। यह सही है कि वर्षा की मात्रा निरंतर कम हो रही है।

लेकिन इसे ही जल संकट का एक मात्र कारण नहीं माना जा सकता है। यदि ऐसा होता तो इज़राइल जैसा देश जहां वर्षा का औसत 25 सेमी. से भी कम है, वहां तो जीवन दूभर होता। लेकिन वहां भी जीवन चल रहा है।। वहां के लोगों ने बेहतर जल प्रबंधन तकनीक विकसित कर जल की एक-एक बूंद को संरक्षित करके पानी की समस्या पर नियंत्रण पाया है।

हमारे देश में 15 प्रतिशत जल का उपयोग होता है। शेष 85 प्रतिशत बहकर समुद्र में चला जाता है। शहरों एवं उद्योगों से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थ नदियों के जल को प्रदूषित करके पीने योग्य रहने नहीं देते। जल की मांग निरंतर बढ़ती जा रही है। फिर चाहे वो खेती, कारखाने हों या फिर घरेलू इस्तेमाल। लेकिन जल संसाधनों की अपेक्षित वृद्धि के बजाय उनमें कमी हो रही है। एक अनुमान के अनुसार प्रति व्यक्ति पीने योग्य जल की उपलब्धि जो सन 2000 में 2300 घनमीटर थी। वर्ष 2025 तक 1600 घन मीटर  ही रह जाने की उम्मीद है।

जल की स्तिथि के लिए केंद्र की रिपोर्ट पर एक नज़र

वहीं केन्द्रीय जल आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2000 में भारत में सिंचाई क्षेत्र में जल की मांग अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों से काफी अधिक 541 बिलियन क्यूबिक मीटर थी। जो वर्ष 2025 & 2050 में क्रमश: 910 & 1072 BQM हो जाना सम्भावित है।

आज भारत में ताजे पानी का 90% हिस्सा सिंचाई के काम में आता है। इसीलिए अगर हम जल प्रबंधन पर कोई कार्रवाई करना चाहते हैं तो सबसे पहले खेती में प्रयोग होने वाले पानी के प्रबंधन पर गौर करना होगा। दुनिया भर में  भारत में सिंचाई में सबसे अधिक भूगर्भ जल का उपयोग  किया जाता है।

चीन और अमेरिका जैसे देश हमसे पीछे हैं। विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार चीन में 6.9 करोड़ हेक्टेयर सिंचाई योग्य ज़मीन है, जहां सिंचाई के लिये भारत में उपलब्ध 6.7 करोड़ हेक्टेयर सिंचाई योग्य ज़मीन के सापेक्ष अधिक ज़मीन है। वहां भी खेती के लिये भूगर्भजल का दोहन कम होता है, यानी हम पानी को बहुत बर्बाद करते हैं, लेकिन यह लम्बे समय तक नहीं चलने वाला।

कविवर रहीम ने जल की महत्ता पर निम्नलिखित भाव व्यक्त किए है:-

रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून ।

पानी गए ना ऊबरे मोती मानस चून ।।

पहले फसलों की सिंचाई नदी, नहर के पानी से अधिक होती थी, लेकिन इधर सिंचाई के लिए भूगर्भीय जल का उपयोग बढ़ने से भी जल संकट गहराया है। इसीलिए अधिक पानी/ भूगर्भीय जल पर आधारित फसलों के बजाय तुलनात्मक कम पानी की ज़रूरत वाली  फसलों की खेती करने की ओर अग्रसर होकर अर्थात् पारंपरिक खेती के स्थान पर वैज्ञानिक कृषि प्रणालीअपना कर भी पानी की समस्या से निजात मिल सकती है।

भारतीय शहरों में जल संसाधन के पुन:प्रयोग के गंभीर प्रयास नहीं किए जाते हैं। वहां ज़्यादातर पानी का पुनर्प्रयोग के बजाय सीधे नदियों में बहा दिया जाता है। यही कारण है कि शहरों में जल संकट की समस्या चिंताजनक स्थिति में पहुंच गई है।

इसके अलावा लोगों में जल संरक्षण के प्रति जागरूकता के अभाव, पानी के गाड़ी एवं लान की आदि की धुलाई , टैप वाटर लीकेज में दुरूपयोग  के कारण भी जल संकट भारत में गहराया है। हमारे देश मे आबादी की तुलना में पहले से ही पानी कम मात्रा में उपलब्ध है।

यहां की अवैज्ञानिक  कृषि नीति एवं भूमिगत जल के तीव्र दोहन ने स्थिति को और भयावह बना दिया है। भविष्य में जल संकट की सम्भावित भयावहता को देखते हुए इसके बचाव के लिए  सरकार द्वारा सन 2024 तक प्रत्येक ग्रामीण के द्वार तक पाइप से पानी मुहैया कराने, ईको ट्वायलेट, वाटरहार्वेसिटंग आदि प्रयास ही पर्याप्त नहीं होगे। अपितु रेडियो एफ.एम द्वारा जल संरक्षण हेतु चलाए जा रहे।

पानी याद दिला देंगे जैसे जन आंदोलन  चलाकर आम लोगों  में जल संरक्षण के प्रति जागरूक कर, जल उपयोग के लिए प्रचलित परम्परागत अव्यवहारिक प्रणालियों के स्थान पर वैज्ञानिक तरीके अपनाते हुए सामूहिक  प्रयासों से ही जल समस्या से निजात मिल सकती है और तभी “जल है तो कल है” वाली  उक्ति चरित्रार्थ हो पाएगी।


संदर्भ- बीबीसी

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