टीचर्स-डे था, किसी वजह से लिखने में लेट हो गया। वैसे तो टीचर्स को महान बताकर बात खत्म की जा सकती है। बैसे ही जिस तरह महिला दिवस पर डोमेस्टिक वॉयलेंस, दहेज के लिए हत्या, रास्ते में टीजिंग झेलने वाली महिलाओं की महानता का बखान करके और महिलाओं की तुलना देवताओं से करके बात खत्म कर दी जाती है।
लेकिन ये न्याय नहीं है। किसी भी डे पर उस डे से सम्बन्धित किरदार की समाज में वास्तविक स्थिति पर लिखा जाना चाहिए। भारत में कम सैलरी में प्राइवेट स्कूल के टीचर होने के अभिमान का टैग लगाकर जीने वाले टीचर्स की वास्तविक स्थिति उतनी अच्छी और महान नहीं है जितनी कि आज फेसबुक और व्हाट्सएप्प के स्टेट्स पर सारे दिन दिखाई देती है।
जब मैंने अपने टीचर को आइसक्रीम बेचते हुए देखा
आप अपने मैट्रिक और सीनियर कक्षा के समय के टीचर्स की स्थिति को थोड़ा अच्छा देखकर अपने प्राइमरी कक्षा के समय के टीचर्स की परिस्थितियों में कैद महानता का अंदाज़ा नहीं लगा सकते। मैंने खुद अपने प्रथम कक्षा के टीचर को गर्मी की छुट्टियों में साइकिल पर आईसक्रीम बेचते हुए देखा है।
मैं उपर्युक्त कथन में साइकिल पर आईसक्रीम बेचने के प्रोफेशन को नीचा दिखाने की कतई कोशिश नहीं कर रहा हूं। परन्तु क्या आप अंदाजा लगा सकते है जब आपके लिए गर्मी की छुट्टियां लग जाती हैं तब आपकी नजर में तो टीचर फ़्री होकर रेस्ट में चले जाते होंगे ना। लेकिन असल जिंदगी में यही समर वैकेशन टीचर्स के लिए सबसे ज्यादा विपरीत समय होता है।
प्राइवेट टीचर्स के लिए ये गर्मी की छुट्टियां बिना वेतन की छुट्टियां होती हैं। अब क्या आप जानते है कि जब किसी टीचर को गर्मी की बिना वेतन वाली छुट्टी में अपनी दैनिक जरूरत के लिए कोई दूसरा काम करना पड़ता होगा।
ऊपर से भयंकर बेरोज़गारी से परिपूर्ण देश में उसके सामने उपस्थित कामों में से काम चुनने की कितनी भयावह कठिनाई होती होगी क्योंकि उन्हें काम चुनने के साथ ऐसा काम चुनना होता है जो कि उनके टीचर होने की गरिमा को बचाए रख सकता है।
टीचर की गरिमा के अनुरूप कार्य चुनाव एक चुनौती
पहला- क्योंकि अगर कोई टीचर गर्मी की छुट्टियों में अपनी दैनिक जरूरतों को पूरा करने के लिए यदि सब्जी बेचना शुरू कर दे तो क्या अगले सत्र में पैरेंट्स अपने बच्चों को उस स्कूल में पढ़ाना पसंद करेंगे, जिस में वो टीचर पढ़ाता है। जिसे उन्होंने गलियों में सब्जी बेचते हुए देखा है।
दूसरा- आप जब सीनियर तक पढ़ लेते है तब भी आपको कोई अन- रेस्पेक्टेड जॉब करने में कितनी झिझक होती है तो क्या आप अंदाज़ा लगा सकते है, उसे कितनी झिझक होती होगी जो आपको पढ़ाता है। आप मेरी बातों से सहमत नहीं हो पा रहे होंगे क्योंकि आप तो प्राइवेट स्कूलों को मोटी फीस देते है ना तो इसलिए आप तो यही सोचते होंगे कि आपके टीचर को भी मोटी सैलरी मिलती होगी?
परन्तु ऐसा नहीं है प्राइवेट स्कूलों का मैनेजमेंट प्राइवेट टीचर्स से सरकार द्वारा निश्चित न्यूनतम वेतन के हिसाब से स्लिप पर हस्ताक्षर तो करा लेता है परन्तु वेतन उससे कम ही दिया जाता है। ऐसा हिंदी मीडियम स्कूलों में ही नहीं है, एलकेजी के लिए 50 हजार फीस लेने वाले इंग्लिश मीडियम स्कूल भी अपने एलकेजी टीचर को 8 हज़ार रुपए मासिक ही देते है।
मैं अपने आसपास के शहर और मेगा सिटीज़ के अनुभव के आधार पर ये दावा कर सकता हूं। गर्मी की छुट्टियों में वेतन तो सिर्फ एक ही समस्या है। ऐसी कई समस्याएं और भी है।