पंजाब के पटियाला ज़िले के टेकड़ी गाँव के प्रधान लखवीर सिंह अपने जत्थेबंदी के साथ लगभग 900 ट्रॉलियां लेकर आये हैं। लखवीर सिंह अपनी उम्र बड़े उत्साह और ज़ोश से 61 साल बताते हैं और कहते हैं कि इस उम्र में भी वो नौजवानों जितनी मेहनत करते हैं।
अपनी यात्रा के क़िस्से बताते हुए उनकी आंखों की चमक और उत्साह और भी बढ़ जाता है, फिर वो हमें बताने लगते हैं कैसे गाँव-गाँव तैयारी की थी। सारे रास्ते पुलिस से टक्कर लेते हुए वॉटर कैनन और आंसू गैस झेलते हुए वो तमाम बैरियर तोड़ते हुए दिल्ली तक पहुंचे हैं।
उन्होंने कहा कि उनका ट्रैक्टर सबसे आगे था और जत्थेबंदी के ऊपर होने वाला हर हमला सबसे पहले वही झेल रहे थे। पानी की बौछार हो या आंसू गैस का गोला उनका ट्रैक्टर कहीं रुका नहीं।
हर इम्तेहान के लिए तैयार हैं लखवीर सिंह
किसानों के आन्दोलन को आज दसवां दिन हो गया है। सरकार से किसान नेताओं की लगभग तीन बार बातचीत भी हुई है लेकिन नतीजा कुछ भी नहीं निकल रहा है। लखवीर सिंह को इस बात से कोई फ़र्क़ नहीं पडता कि सरकार कब तक उनके सब्र का इम्तहान लेगी।
वो हर बार दोगुने ज़ोश से यही कहते हैं कि हम, मर जायेंगे, कट जाएंगे लेकिन जब तक किसानों के लिये जान लेवा सिद्ध होने वाला ये बिल वापस नहीं हो जाता, तब तक यहां से वापस नहीं जाएंगे। वो आगे बताते हैं उनके घर में कुल पांच लोग हैं, उनकी पत्नी और तीन बच्चे यही उनका परिवार है।
बच्चों की पढ़ाई-लिखाई अभी जारी है और इस पूरे आंदोलन में कदम से कदम मिलाकर पूरा परिवार साथ चल रहा है। वो कहते हैं, उनका पोता रोज़ उन्हें फ़ोन करता है और ज़िद करता है कि दादू मैं भी आपके पास आऊंगा। उनके बच्चे भी ज़िद करते हैं कि हम भी आंदोलन में आएंगे।
जमींदारों का जीवन जीते किसान क्यों हैं दिल्ली की सड़कों पर?
लखवीर सिंह कहते हैं कि बच्चे आने वाली नस्लें हैं इसलिये भविष्य की लड़ाई उनके हाथ है लेकिन जब तक हम ज़िंदा हैं ये लड़ाई हमारी है।
उनकी बेटी पंजाब विश्वविद्यालय में पढ़ती है और महिलाओं की जत्थेबंदी में पूरा सहयोग कर रही है। उन्होंने कहा कि पूरी ईमानदारी और मेहनत से बच्चे पढ़ते हैं, परीक्षा देते हैं लेकिन रोज़गार का इतना संकट है कि बच्चों कोअभी तक कोई काम नहीं मिला है।
लगभग बीस बीघा के मालिक लखवीर का जीवनयापन खेती से ही होता है, जिसमें बच्चों की पढ़ाई, घर का खर्च और खेती किसानी का सारा खर्च शामिल है। वो बताते हैं कि हम पंजाब में किसानी से इतना कमा लेते हैं कि अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा और परिवार को भरपेट भोजन के अलावा एक सम्मानित ज़मींदार का जीवन जी सकें।
लेकिन ये बिल हमें मज़दूर बना देंगे
इस वक्त पंजाब में धान की फसल कट चुकी है और खेतों में गेहूं का बीज बोया जा चुका है। ऐसे में तमाम किसान जो अपने खेत खलिहान छोड़कर दिल्ली में अपनी खेती बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं, उनकी खेती वहां पड़ोसी संभाल रहे हैं।
उन्होनें बताया कि गाँवों में तमाम लोगों की ज़िम्मेदारी तय की गई है, जो लोग आन्दोलन में शामिल हैं उनके खेतों का और फसलों का ख़्याल रखें। वहीं, तमाम पड़ोसी भाई-बहन जोश खरोश से खेती भी संभाले हुए हैं।
एमएसपी पर फसल बेच पाने और मंडी सिस्टम का लाभ मिलने की वज़ह से ही हम अपनी ज़मीनों की उपज से पर्याप्त सुखी जीवन जी लेते हैं। वो आगे कहते हैं, यदि सरकार मंडी सिस्टम ख़त्म कर देती है और कॉर्पोरेट को खेती-किसानी में मे घुसने देगी, तो किसान को ये लाभ मिलना बंद हो जायेगा और वो अपने खेत में ही मज़दूर बनकर रह जायेगा।
महिलाएं, बुज़ुर्ग और बच्चे आंदोलन की लौ बनकर जल रहे हैं
लखवीर सिंह कहते हैं कि तमाम नौजवान साथियों की शिफ़्ट लगी हुई है, हर चार-पांच दिनों में बीस लोग पंजाब के गाँव से दिल्ली आते हैं और यहां से कुछ लोग वापस गाँव जाकर तमाम ज़रूरी काम निबटाते हैं।
किसानों का ये आन्दोलन बहुत संगठित और सूझबूझ से अभी तक जारी है। गुरुद्वारे का लंगर रोज़ाना लगभग हज़ारों लोगों का पेट भर रहा है और बिना किसी भेदभाव के हर व्यक्ति को भरपेट भोजन मिल रहा है। तमाम एनजीओ और संगठनों के लोग मेडिकल सुविधायें और ज़रूरी वस्तुयें दे रहे हैं।
महिलाएं, बुज़ुर्ग, नौजवान, बच्चे पूरी लगन के साथ आन्दोलन की आग को जलाए हुए हैं। सबकी ज़ुबान पर एक ही बात है कि हम मर जाएंगे लेकिन जब तक बिल वापस नहीं होगा हम ये ज़गह नहीं छोड़ेंगे।
नोट: यह आर्टिकल द अनऑर्गेनाइज़्ड के लिए YKA यूज़र देवेश मिश्रा ने लिखा है।