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“लव जिहाद मौलिक अधिकारों के उल्लंघन से ज़्यादा कुछ भी नहीं है”

बीते कुछ दिन में लव जिहाद को लेकर अच्छी खासी बहस पूरे देश में चल रही है, साथ ही उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश सहित कई राज्यों की  सरकार इसके खिलाफ सख्त कानून लाने पर बातचीत कर रही है।

ऐसे में यह देखना बहुत ही ज़्यादा महत्वपूर्ण है कि मौजूदा व्यवस्था में इसे लेकर कौन से कानून हैं और यदि अधिकार की बात की जाए तो देश के हर नागरिक को अपनी मर्ज़ी से जीवन साथी चुनने का पूरा अधिकार है कोई धर्म, कोई जाति इसके आगे नहीं आ सकती है।

अलग धर्म में शादी को लेकर है संवैधानिक व्यवस्था

देखा जाए तो शादी को लेकर अलग-अलग धर्मों  में अलग-अलग नियम और कानून मौजूद हैं। हिंदू मैरिज एक्ट के तहत होने वाली शादी में पहली शर्त यह है कि शादी करने वाले लड़का-लड़की हिंदू हों और वे शादी की योग्यता रखते हों।

वहीं, स्पेशल मैरिज एक्ट के प्रावधान  के मुताबिक लड़का-लड़की किसी भी धर्म के हो सकते हैं, बस उनकी शादी करने की उम्र यानि वो बालिग होना चाहिए और जब मुस्लिम धर्म का कोई लड़का या लड़की अपने धर्म के अनुसार ही शादी करना चाहता है और उसका पार्टनर दूसरे धर्म का होता है तब पहले साथी को इस्लाम धर्म अपनाना होता है और ठीक यही नियम हिंदू धर्म के लिए भी लागू है।

क्या वाकई लव जिहाद की फिक्र धर्मांतरण है?

कुछ लोगों के लिए सबसे बड़ी चिंता की विषय यह है कि लड़कियों को प्यार के जाल में फंसा कर उनका धर्म परिवर्तन कराया जा रहा है और इसे ही वे लव जिहाद का नाम दे रहे हैं लेकिन यहां समझने वाली बात यह है कि कोई भी लड़का या लड़की केवल शादी के लिए धर्म परिवर्तन नहीं कर सकता।

यदि लड़का-लड़की बालिग हैं और शादी की योग्यता रखते हैं, तब उन्हें  स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत अपनी मर्ज़ी से या अपनी पसंद से किसी भी धर्म, जाति के व्यक्ति के साथ शादी करने का अधिकार है।

अब सवाल यह उठता है कि जब पहले से ही संविधान और अदालत ने ऐसी व्यवस्था कर रखी है कि सिर्फ शादी के इरादे से धर्म परिवर्तन नहीं हो सकता, तब इस मुद्दे को लेकर लाए जा रहे नए कानून की कितनी अनिवार्यता है।  यहां तक की सुप्रीम कोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप को मान्यता दे रखी है, तब लव जिहाद को लेकर कानून बनाना कितना औचित्यपूर्ण है।

ऐसे कानून को इलाहबाद हाईकोर्ट ने मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बताया

हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सलमान अंसारी बनाम यूपी स्टेट के केस में कहा था की दो लोगों को अपना पार्टनर पसंद करने का पूरा अधिकार है और अगर ऐसा अधिकार नहीं दिया जाएगा तब ये मानव अधिकार साथ-साथ मौलिक अधिकार का भी उल्लंघन होगा।

यदि दो अलग-अलग धर्म के लोगों को शादी करनी है तब वे स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत  बिना धर्म बदले शादी कर सकते हैं। ऐसे में राज्य सरकारों को लव जिहाद के खिलाफ कानून लाने से पहले तमाम पहलुओं को देखना चाहिए और ये तय  करना चाहिए की इस कानून की उपयोगिता क्या है।

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