Site icon Youth Ki Awaaz

“मोदी जी, विपक्ष को दोष देकर किसानों को बेवकूफ समझना बंद कीजिए”

नरेन्द्र मोदी

नरेन्द्र मोदी

किसान संगठन के नेताओं ने केंद्रीय मंत्री और उसके अधिकारियों से चार घंटे इस कानून पर बात कर बैठक को बेनतीजा निकाल दिया। केंद्रीय मंत्री तोमड़ का चेहरा विधानसभा वाले नीतीश कुमार की तरह तिलमिलाया हुआ लग रहा था। जो भी हो किसानों की समझ इतनी बेहतर तो ज़रूर है कि कोई उन्हें वरगला नहीं सकता।

खुद अपनी डिग्री को लेकर सवालों में घिरे रहने वाले प्रधानमंत्री कल किसानों को गुमराह बताकर उनकी समझ पर सवाल उठा रहे थे। बार-बार विपक्ष को ज़िम्मेदार ठहरा रहे थे। 

बहरहाल कोई उन्हें बताये कि विपक्ष का काम ही यही होता है, न कि जनता के पैसों से विधायक खरीदकर हमेशा सरकार बनाने की ताक में रहना। देश में तो हर चीज़ पर राजनीति होनी चाहिए। मैं तो चाहता हूं कि हर राज्य में विपक्ष लामबंद होकर इस सरकार को घेरे। इसे एक बहुत बड़ा आंदोलन का रूप दे। विपक्ष का काम ही है कि वह सरकार की गलत नीतियों के खिलाफ जनता को एकजुट कर सरकार पर दबाव बनाए। विपक्ष को यह बताना चाहिए कि जो राज्य इस लड़ाई में आगे हैं वह क्यों हैं?

भारत में एमएसपी पर औसत खरीद 10% से भी कम है

पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में 90% से भी ज़्यादा फसल को उसका एमएसपी नसीब होता है। अब वह कभी नहीं चाहेंगे कि उनकी स्थिति भी राष्ट्रीय औसत जैसी होकर रह जाए। जब से आलू और प्याज़ को आवश्यक वस्तुओं की सूची से बाहर निकाला गया है। तब से उसकी महंगाई रिकॉर्ड आसमान छू रही हैं। देश के हर व्यक्ति को यह पता होना चाहिए कि अगर उसकी थाली से यह गायब है तो क्यों और किसकी वजह से गायब है?

जनता को यह पता होना चाहिए कि किसानों की आमदनी दोगुनी होगी एमएसपी पर खरीद से और अगर सरकार इतनी ही किसानों की हितैषी है तो बिल में लिखकर दे दे। बिहार जैसे राज्यों में तो यह मांग भी उठनी चाहिए कि पैक्स अगर उनकी फसल नहीं खरीदता है तो उसपर सख्ती से कानूनी कारवाई हो। चाहे आप मंडी या साहूकार किसी के पास भी बेचें तो आपको फसल की एमएसपी नसीब हो।

किसान नेताओं का आरोप कि सरकार ही गुमराह कर रही है

बिहार के किसानों ने अपने मक्के को हज़ार रु क्विंटल से भी कम में बेचा और ऐमेज़ॉन पर जाते ही वही मक्का 250 रु किलो हो गया। इसका मतलब है कि सरकार आपको अच्छे दाम देकर भी इन कंपनियों को उससे भी अच्छे दामों में बेच सकती है। अगर सरकार यही चाहती है कि हम उन्हें बेचें तो कानून में यह बात लिख दें कि फसल को उसका न्यूनतम समर्थन मूल्य देना अनिवार्य हो जाएगा।

बस इतना ही सीधा-सीधा सब कुछ है और कितना जायज़ है। अब विपक्ष को चाहिए कि उसके माध्यम से देश की हर जनता इसे समझे। अगर वह यह समझ गई तो इस सरकार में इतना गुदा नहीं है कि वो अपने फैसले पर अड़े रह जाए। बहुत सही समय है जब किसानों के लिए इस देश में कुछ बेहतर किया जा सकता है। उनकी ज़िन्दगी संवारी जा सकती है लेकिन अगर अब भी किसी को समझ नहीं आती तो फिर उनका कुछ नहीं हो सकता।

हालांकि प्रधानमंत्री जिन किसानों की समझ का मज़ाक उड़ाते हुए उन्हें गुमराह बता रहे थे, उन्हीं किसानों ने अपने डिमांड ड्राफ़्ट में सरकार पर ही गुमराह करने का आरोप लगाया है। इसमें बताया गया है कि कैसे लोग अपनी फसल या अन्य खाद्य पदार्थों को दूसरे राज्यों में पहले से ही बेचते आ रहे हैं।

इसमें पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के एक फैसले और 1977 में ही जनता पार्टी सरकार द्वारा पास किये गए एक रिज़ॉल्यूशन का ज़िक्र है जिसमें एक से दूसरे राज्य में फसलों की खरीद-बिक्री प्रतिबंधित या गैर कानूनी नहीं है। अर्थात कि देश में वन नेशन वन मार्किट पहले से ही है, और यह सरकार बस इसे एक नया नाम देकर गुमराह कर रही है।

Exit mobile version