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“नौकरी जाने की मेरी कहानी”

ढाई वर्ष बाद Youth Ki Awaaz पर लौटा हूं। हमेशा से इच्छा रही कि यहां कुछ-ना-कुछ लिखता रहूं मगर कंपनी नियमों की दहलीज़ रोक रही थी, अब चौखट पार हो चूका हूं क्योंकि बेरोज़गारी को मौत समझने वाली कंपनी ने मुझे यह परेशानी भेंट कर दी है।

घर बैठने का आज पहला दिन है सोच रहा हूं क्या करुं?

आगे ईएमआई भरना है, परिवार चलाना है और खुद के खर्चों का भी इंतज़ाम करना है। कैसे होगा पता नहीं? मैंने सोचा था ऑफिस में क्वालिटी वर्क करेंगे और पचड़ों से दूर रहेंगे लेकिन सोनम गुप्ता बेवफा निकल जाएगी अंदाज़ा नहीं था।

नौकरी जाने के लिए कोरोना को दोष दूं, सरकार को या फिर खुद को? किसपर ठीकरा फोड़ूं? अंदर से परेशान ज़रूर हूं लेकिन मुझे सुकून बहुत मिल रहा है। क्योंकि चाटुकारिता न करने का अंजाम मज़ेदार है।

दिल ज़ख्मी है तो शब्द भी अनुभवी निकलेंगे 

अत: जो मैंने महसूस किया वह लिख रहा हूं। छोटे शहरों से आकर खुद को स्थापित करने का सपना देख रहे वह तमाम साथी, आपका हर टैलेंट बेकार है जब तक बॉस की नज़र न पड़े। क्योंकि मुफ्त में क्रेडिट लेने वाले बहुत बैठे हैं यहां।

उन लोगो से तो तकलीफे बिलकुल भी शेयर न करें जो बॉस के करीब हैं क्योंकि आपकी तकलीफ ही आपके खिलाफ हथियार बनेंगी। जो आपको प्रतिस्पर्धी माने उनसे अघोषित कम्पटीशन करें। इससे आपको दोनों की शक्ति का अंदाज़ा होगा। हमेशा याद रखिए कि अकेले आप कुछ नहीं इसलिए अमित शाह जैसा मित्र तलाशें।

कैपिटल C हर जगह है

ऑफिस में हर एक प्रत्येक को C समझता है, बॉस का तो स्थान तो सदैव अव्वल रहता है। अब यह खास लोग कंपनी में आपकी पारी तय करने लगे है। ऐसे लोग गॉडफादर बनने, आपके काम में दखलअंदाज़ी, जो पता नहीं उसपर ज्ञान देने, बॉस की कार को पार्क लगवाने और उनके पेग का हिसाब रखने पर जी रहे हैं।

आप सोचते होंगे कि ऐसे लोग इसी कंपनी के लिए बने हैं। उन्हें आगे अच्छी जगह नौकरी नहीं लगेगी तो आप गलत हैं। क्योंकि यह लोग हर बॉस की डिमांड हैं। सलाह इतनी ही रहेगी कि यह ताउम्र C ही रहने वाले है इनपर ध्यान न दें।

प्रोफेशनल जीवन में हमारी सफलता बहुतों के प्रयास की वजह होती है। एक फीमेल होने के नाते आप पर सबसे अधिक ज़िम्मेदारी है कि आप दूसरी किसी फीमेल की ताकत बनें। शुरूआत के दिनों में आप भी अकेली थीं। आपकी ज़िम्मेदारी है कि महिला कर्मचारियों का हौसला बनिए जिनमें आत्मविश्वास की कमी है या वे अपने काम में निखार लाने के लिए प्रयत्नशील हैं।

यह काम पुरुष साथी भी बिना स्वार्थ भाव से कर सकते हैं। ज़मीन का सच यही है कि महिलाओं तक वह आवश्यक बातें नहीं पहुंच रहीं जिसकी वह हकदार हैं या उनका अधिकार है। आज भी महिलाओं की सक्सेस को ऑफिस पॉलिटिक्स रोक रही है। महिलाएं आपस में कंप्टीशन न करें क्योंकि बॉस किसीका नहीं।

याद रहे नौकरी जाए मगर स्वाभिमान नहीं!

इसे स्वीकारना जितना मुश्किल है उतना बेहद सुखद भी. यदि पूरी निष्ठा से काम करके भी आपका टीम लीडर आपसे संतुष्ट नहीं तो आप रडार पर हैं। बॉस के “सड़ियल” जोक्स पर आप पेट-पकड़कर नहीं हंसे तो आपका इंक्रेमिंट फंसेगा।

गुड मॉर्निंग के अलावा गुड इवनिंग कहने की आदत नहीं तो बना लीजिये क्योंकि शिफ्ट के ज़्या काम आपको ही करना होगा। इसके अलावा बेवजह एचआर विभाग के लोगों को भी खुश करते रहें। यह समझ लीजिये कि इंक्रीमेंट बॉस की इच्छानुसार ही होगा। कंपनी रूल्स/परफॉमेंस/पालिसी सिर्फ मीटिंग में अच्छे लगनेवाले शब्द होते हैं।

सच यह है कि जिसमें कोई जान न हो वह बॉस के काबिल नहीं, यानी जो विशेष हालातों में अपने दम पर छोटे फैसले भी न कर पाए, जिसे हमेशा डर लगे कि उसके किसी फैसले से उसके चाहनेवाले फंस सकते हैं या उसकी खुद की मर्ज़ी आहत होगी। आपकी मात्र सलाह भी बॉस को पर्सनल अटैक महसूस हो तो रिज़्यूमे अपडेट कर लीजिए।

ज़रुरी नहीं कि बगल की कुर्सी पर बैठा शख्स ही आपसे कम्पटीशन करे, बॉस भी कर सकते हैं। फर्क इतना है कि कुर्सी वाला हारने के बाद आपको सिवाय जीत के कुछ नहीं दे सकता जबकि बॉस हारेगा तो आपको बेरोज़गारी भेंट कर सकता है।

अंत में, नौकरी तो आजकल में मिल ही जाएगी लेकिन यह अनुभव बेशकीमती है। दोस्तों, डर-डर के न जियो, आगे बढ़कर बैटिंग करो, लगा तो छक्का, आउट भी हुए तो भी अगली पारी इंतज़ार कर रही हैय़

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