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मेन स्ट्रीम मीडिया के सबसे खराब दौर में एक पाठक के तौर पर हम कहां खड़े हैं?

जब भी हमें किसी सूचना की जानकारी हासिल करनी होती है तब हम अखबार, न्यूज़ चैनल की ओर इस विश्वास के साथ जाते हैं की इनसे हमें सही और सटीक जानकारी मिलेगी, जो कि गलत भी नहीं है ज़ाहिर सी बात है अगर हमें किसी सूचना के बारे में जानना, समझना है तब वो मीडिया ही है,

जो हमारे सवालों के जवाब दे सकता है मगर क्या आज भी यह बात उतने ही विश्वास के साथ कही जा सकती है, जितनी की 5 से 10 साल पहले कही जाती थी? अगर जवाब नहीं है तब सोचने वाली बात है कि ऐसा क्यों?

बदलते दौर में जहां सबकुछ बदल रहा है ज़ाहिर तौर पर मीडिया भी बदलेगा और बदलना भी चाहिए, क्योंकि बदलाव समय की मांग होती है लेकिन बदलावों के इस क्रम में यह उम्मीद की जाती है कि बदलाव सकारात्मक हों न की नकारात्मक!

केवल अखबारों और चैनलों के भरोसे मत बैठिए

आप देश दुनिया की जानकारी हासिल करने के लिए अखबार, न्यूज़  चैनल देखते हैं तब अच्छी बात है लेकिन  केवल अखबारों और चैनलों के भरोसे मत बैठिए क्योंकि जिसे आज न्यूज़ मानकर देखा, पढ़ा जाता है वह केवल खबर हो ये जरूरी नहीं है।  खबरों की आड़ में कब प्रोपोगेंडा युक्त खबर दिखाई जा रही है, कब केवल खबर दिखाई जा रही है इसकी पहचान करना उतना ही मुश्किल हो चला है, जितना भुसे के ढेर में सुई तलाशना।

कई मीडिया रिपोर्ट्स ऐसा बताती हैं कि पत्रकारिता अपने सबसे खराब दौर में है। खासकर के मेनस्ट्रीम मीडिया जहां खबरों के नाम पर आपको कूड़ा दिखाया जाता है, जिसमें राजनीति, बॉलीवुड गॉसिप के अलावा और किसी खबर के लिए जगह ही नहीं होती है इसलिए केवल अखबार, न्यूज़ चैनल देखने को न्यूज़ देखना मत मान लीजिए।

 उन्माद हमारा अपना या मीडिया का चुनाव है?

मानकर चलते हैं कि 130 करोड़ आबादी वाले इस देश में सबकी अपनी समझ होगी, अपना नज़रिया होगा और जो कि होना भी चाहिए लेकिन क्या कभी गौर किया है कि वे क्या कारण हैं कि पिछले कुछ सालों में इस आबादी का एक बड़ा हिस्सा या कहें तबका इतना उग्र हो चला है?

जिसमें युवाओं की संख्या सबसे अधिक है । क्यों विचारों की लड़ाई अब गली, कस्बों की लड़ाई में तब्दील हो चली है,जहां एक बड़ा तबका खूनी भाषा का प्रयोग करते दिख जाता है। क्या ये जानकारी होने का नतीज़ा है या अधूरी जानकारी होने का?

खबरों में सनसनी ढूंढत-ढूंढते मेन स्ट्रीम मीडिया ने समाज को ही सनसनीखेज़ का अड्डा बना दिया है, जहां हर दूसरा व्यक्ति अपनी उग्र हरकतों से सनसनी पैदा करता रहता है, जिसका उदाहरण हम आए दिन खबरों में देख-सुन रहे होते हैं। ऐसे में ये सवाल अहम हो जाता है कि आपकी समझ क्या वाकई में आपकी खुद की है या ‘सो कॉल्ड मीडिया’  जिसमें सोशल मीडिया भी पीछे नहीं है ने आपकी सोच को ऐसा बना दिया है।

न्यूज़ में बहस की प्रवृति कितनी सही?

न्यूज़ चैनल में आए दिन होने  वाली डिबेट की तरह बिना किसी जानकारी के और अधूरी जानकारी के साथ बहस में कूदने का चलन अब तेजी से बढ़ चला है, उसने लोगों में भ्रम डाल दिया है कि अगर आप बहस करते हैं तब आप सर्वज्ञानी हैं,इस प्रवृति को बदलने की जरूरत है।

जरूरत है सही गलत की बहस से आगे बढ़ने की जो  दिखाया-पढ़ाया जा रहा है केवल उसे सच मानकर बहस में पड़ने के बजाए, कभी ये भी जानने की कोशिश कर लेना चाहिए की जो पढ़ा-सुना या देखा गया है वह सच  है भी या नहीं।

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