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पीरियड्स के बारे में क्या है धर्म और समाज का नज़रिया?

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महिलाओं को करना होगा जागरूक- प्रतीकात्मक तस्वीर

किसी भी देश, शहर, या फिर गाँव में रहने वाले लोगों का अपना एक धर्म और कुछ सामाजिक मान्यताएं होती हैं। वो लोग ज्यादातर उसी सामाजिक मान्यताएं या फिर रीति रिवाज़ के अनुसार अपना दिनचर्या गुज़ारते हैं। 

हालांकि पुरे विश्व की आबादी में से लगभग 7 फीसदी लोग किसी भी धर्म को नहीं मानते और भारत की बात करें तो यहां की कुल आबादी में से लगभग 3 फीसदी आबादी किसी भी धर्म को नहीं मानती, यानि वे लोग नास्तिक होने की बात करते हैं।

तो आईए हम इस लेख में अलग अलग धर्म के बारे में जानेंगें कि पीरियड्स को लेकर किसका क्या नजरिया है- 

हिन्दू धर्म

हिन्दू धर्म में महिलाओं को पीरियड्स के दौरान पुरानी मान्यताओं के साथ चलने को कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि ये समय लड़कियों और महिलाओं का ‘शुद्धिकरण का समय’ है। इसलिए मंदिरों में पूजा करने पर मनाही रहती है। रसोई घर में जाने से रोक एवं शुरुआती दिनों में स्नान से भी दूर रहने को कहा जाता है। बहुत से क्षेत्रों में तो इस दौरान घर के सभी सदस्यों से अलग एक कमरे में रखा जाता है।

धर्मशास्त्र के अनुसार महिलाओं को इस दौरान मर्दों को छूना, देखना, या फिर उनके साथ शरीरिक सबंध बनाने से बचना चाहिए, क्यूंकि अगर इस दौरान महिला गर्भवती हो जाती है तो उसके गर्भ में पलने वाला बच्चा दुष्ट मानसिकता का होगा।

पीरियड्स को लेकर हिन्दू धर्म में बहुत सारी अलग अलग मान्यताएं एवं कहानियां हैं, जैसे- जब किसी को पीरियड्स होता है तो माना जाता है कि उसे ब्रह्महत्या का पाप लगा होगा। पीरियड्स का अवधि खत्म होने के बाद दोबारा शुद्धी के लिए एक स्नान किया जाता है जिसको ऋतुस्नान कहते हैं। ऐसा कहा जाता है कि इस स्नान के बाद ही गर्भवती होने के लिए पति पत्नी शारीरिक सम्बंध बनाएं तो अच्छा होता है।

बौद्ध धर्म

बोद्ध धर्म में पीरियड्स को लेकर कुछ ख़ास अलग कहानियां या मान्यताएं नहीं है। बौद्ध धर्म यह मानता है कि पीरियड्स हर एक लड़की या महिला के जीवन में होने वाली एक सामान्य प्राकृतिक प्रक्रिया है। 

हालाँकि जापान में बोद्ध धर्म को मानने वाला एक वर्ग ऐसा भी है जिसने इस दौरान महिलाओं को मंदिरों में जाने पर प्रतिबन्ध लगा रखा है।

सिख धर्म

सिख धर्म में पीरियड्स को लेकर किसी तरह का कोई प्रतिबन्ध नहीं है। महिलाओं को इस दौरान अछूत नहीं माना जाता। इस दौरान पूजा करने और गुरुद्वारा जाने पर भी कोई रोक नहीं है। सिख धर्म इस दौरान महिलाओं को अछूत मानने वाली मान्यताओं की निंदा करता है। उनका मानना है कि महिलाओं को अछूत मानने से उनको मानसिक पीड़ा होगी।

सिख धर्म भी इसे एक सामान्य प्राकृतिक प्रक्रिया मानता है जो की एक निश्चित अवधि के लिए हर लड़की और महिला के जीवन में होता है।

ईसाई धर्म

ईसाई धर्म में भी पीरियड्स के दौरान महिलाओं को अपवित्र नहीं माना जाता है। और किसी खास नियमों का पालन नहीं होता है। ईसाई धर्म को मानने वाले कुछ समुदाय के द्वारा पवित्र संहिता के लेविटिस के खण्ड 17-26 में लिखे नियमों का पालन किया जाता है।

यह प्रक्रिया यहूदी धर्म में होने वाली प्रथा ‘निदाह’ के सामान है. निदाह एक तरह से शुद्धिकरण के लिए पवित्र स्नान (मिक्वेह) से संबंध रखता है।

इस्लाम

इस्लाम के पांच स्तंभों में नमाज़ और रमज़ान के पवित्र महीने का रोज़ा है जो की ‘फ़र्ज़’ होता है, किसी भी हालत में माफ़ नहीं है। पीरियड्स के दौरान लड़कियों और महिलाओं को सिर्फ इस समय के लिए राहत दी जाती है, लेकिन बाद में उसे पूरा करना होता है।

इस दौरान किसी भी धार्मिक,पारिवारिक या फिर समाजिक कार्यक्रमों में जाने से मना नहीं किया गया है। पीरियड्स या फिर सेक्स के बाद ‘गुस्ल’ यानि स्नान करने को कहा गया है। इस दौरान सेक्स करने की मनाही है।      

जैन धर्म

जैन धर्म का मानना है कि पीरियड्स के दौरान महिलाओं के गुप्तांग से होने वाले खून के रिसाव से शुक्ष्म जीव मर जाते हैं। महिलाओं के शरीर में इससे परेशानी होती है। इस दौरान वह अच्छा महसूस नहीं करती हैं, इसीलिए इस दौरान चार दिन आराम का सलाह दिया जाता है।

यहां तक कि किसी भी धार्मिक पूजा पाठ से भी छूट दी गयी है। पुरुषों को कहा गया है कि, इस दौरान महिलाओं के घर के काम को पुरुषों को करना चाहिए।


सन्दर्भ – विकिपीडिआ 

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