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“हमारा देश भी अनोखा है, यहां एक बड़ी आबादी सस्ती शिक्षा के खिलाफ है”

वेलफेयर स्टेट के नाम जनता के साथ जितना धोखा हुआ है, शायद ही किसी नेता के चुनावी भाषण से उसे इतना धोखा मिला हो। राज्य का जो कार्य है, राज्य वह कभी करता ही नहीं है। जो काम उसका नहीं है, वह हमेशा वही करेगा। मैं हमेशा से राज्य मशीनरी का सर्मथन नहीं करता हूं। मेरी राजनीतिक विचाराधारा राज्य का समर्थन नहीं करती लेकिन अगर एक संस्था के तौर पर देखें, तो राज्य क्यों बना? राज्य का क्या काम है? इन सवालों पर बात होनी चाहिए।

फोटो प्रतीकात्मक है।

राज्य के अस्तिव का मकसद

कल्याणकारी राज्य का कार्य ये है कि जनता को निशुल्क सार्वजानिक सेवाएं उपलब्ध कराएं, जिनमें रोटी, जल, मकान, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं मुख्य तौर पर शामिल हैं। आज इन सभी चीज़ों का निजीकरण हो रहा है, चाहे वह शिक्षा हो या स्वास्थ्य सेवाएं। जो लोग गाँव में जाकर नहीं देखना चाहते हैं, वे बड़े शहरों में ही देख ले कि गंदी बस्तियों में लोग तिरपाल में रहते हैं। यह मेरा स्वयं का निजी तजुर्बा है, जहां पर वे रहते हैं वहां पर उनको साफ पानी तक भी नहीं मिलता है।

हमारे देश में कोई रामलला को तिरपाल में बर्दाश्त नहीं कर सकता है लेकिन जनता चाहे तिरपाल में रहकर बीमारियों से मर जाए किसी फर्फ नहीं पड़ता है। ना राज्य को, ना जनता को और ना ही भगवान को।

शिक्षा का पूंजीकरण और गरीबों से दूरी

प्रोटेस्ट करते JNU के स्टूडेंट्स

आज लगभग हर देश में शिक्षा का भी निजीकरण हो रहा है। अगर किसी गरीब को शिक्षा लेनी है तो आप पूंजीवादी बैंकों से लाखों का कर्ज लेकर पूंजीवादी शिक्षण संस्थानों में जमा कीजिए, तब जाकर आपको शिक्षा मिलेगी। नौकरी मिलने के बाद जीवनभर उस कर्ज़ को चुकाना पड़ेगा। इस पूंजीवादी व्यवस्था में ना तो गरीबों को शिक्षा मिल पा रही हैं ना ही रोज़गार।

मैं लखनऊ की कई झुग्गी झोपड़ियों में गया हूं, जहां बच्चे कबाड़ बीनने का काम करते हैं। वहां पर पूरा परिवार यही काम करता है। अगर वे यह काम ना करें तो उनका घर नहीं चल सकता शायद। वे शायद यह भी जानते हों कि 10-12 तक तो निशुल्क शिक्षा मिल सकती है लेकिन इसके बाद की शिक्षा कितनी महंगी है। उसके बाद कैसे पढ़ेंगे और पढ़ भी गए तो नौकरी नहीं मिली तो वापस यही काम करना पड़ेगा।

जब राज्य जनता को पानी, मकान और शिक्षा उपलब्ध नहीं करा सकता है, तो उसके अस्तित्व में बने रहने से हमें क्या लाभ है? राज्य की ये ज़िम्मेदारी है कि वह जनता को निशुल्क मेडिकल सुविधाएं और शिक्षा उपलब्ध करवाएं। राज्य इसलिए टैक्स वसूलता है कि उसे कल्याणकारी कार्यों मे लगाया जा सके लेकिन हमारे देश की जनता एक विचारधारा और धर्म में इतनी अंधी हो चुकी है कि कल्याणकारी योजनाओं में लगा टैक्स का पैसा उसे व्यर्थ लगता है।

फोटो प्रतीकात्मक है।

पूरी दुनिया में लोग चाहते हैं कि शिक्षा सस्ती हो लेकिन हमारा अनोखा देश है, जहां लोग चाहते हैं कि शिक्षा महंगी हो हालांकि जो लोग JNU में बढ़ी हुई फीस का समर्थन कर रहे हैं, उनके माता-पिता भी उन्हें बैंक से ऋण लेकर पढ़ा रहे होंगे। जिस विचाराधारा के लोग JNU जैसे उत्कृष्ट संस्था में सस्ती फीस को टैक्स की बर्बादी कह रहे हैं, यहीं लोग पटेल तथा राम और शिवाजी की प्रस्तावित मूर्तियों से होने वाले फायदे गिनाते हैं। हमारे देश का सारा कल्याण तो अब मंदिर और मूर्ति से ही होगा।

दो दिन पहले बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने JNU को लेकर एक ट्वीट किया था, जिसमें उन्होंने भारतीय संस्कृति और राष्ट्रवाद का पाठ पढ़ाया। सुशील मोदी जी लोगों को ट्विटर पर आकर राष्ट्रवाद और संस्कृति की शिक्षा दे सकते हैं लेकिन वह शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़े राज्य बिहार के बच्चों को अच्छी शिक्षा उपलब्ध नहीं करवा सकते हैं। भारत के लोगों को शर्म आनी चाहिए कि उनके देश के एक सूबे का एक चुना हुआ उपमुख्यमंत्री एक विश्वविद्यालय को लेकर ऐसा बयान दे रहा है।

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