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मॉब लिंचिंग के बारे में वे बातें जो आपको जाननी चाहिए

Mob Lynching

मॉब लिंचिंग

मॉब लंचिंग दो शब्द, मॉब और लिंचःग से मिलकर बना शब्द है। मॉब का मतलब है भीड़ और लिंचिंग का अर्थ है गैर कानूनी ढंग से प्राणदंड देना। इस प्रकार मॉब लिंचिंग का अर्थ हुआ “भीड़  द्वारा दी गई मृत्यु।”

मॉब लिंचिंग का है पुराना इतिहास

जहां यूरोप में भीड़ द्वारा बिना ट्रायल के सज़ा देने के कई उदाहरण मिलते हैं, वहीं अमेरिका में भी अश्वेत लोगों द्वारा अंजाम दी गईं ऐसी कई घटनाओं का उल्लेख मिलता है। लिंचिग शब्द की उत्पत्ति को अमेरिकी ग्रह युद्ध को लेकर कैप्टन विलियम लिंच या चार्ल्स लिंच के साथ जुडा़ हुआ माना जाता है। कहा जाता है कि विलियम लिंच ने एक न्यायाधिकरण बना रखा था। जिसके वह स्वघोषित जज थे और जहां वह आरोपी का पक्ष सुने बिना और बिना किसी ट्रायल के आरोपी को सरे आम मौत की सज़ा देते थे।

सन 1882 से 1918 के बीच 3500 से ज़्यादा लोगों को यहां मौत के घाट उतार दिया गया। यह अपने  आप में एक रिकॉर्ड है। लिंचिंग शब्द सन 1780 में गढ़ा गया और इसका इस्तेमाल शुरू में अमेरिका तक ही सीमित था। बाद में यह कुप्रथा अन्य देशों में भी फैल गयी। अमेरिका में लिंचिग की बढ़ती घटनाओं  को देखते हुए सन 1922 में लिंचिग-रोधी कानून बना दिया गया था।

भारत में भी प्राचीन काल से ही भीड़ द्वारा हत्या कर दिए जाने की घटनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता है। 

गैर जातीय अवर्णो से प्रेम विवाह करने या प्रचलित प्रथाओं के विपरीत आधुनिक विचारों के तहत लड़कियों द्वारा जीन्स-पैंट पहनने के कारण उनकी सरेआम हत्या कर देने तथा ऑनर किलिंग जैसी घटनाएं पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में अक्सर होती रहती हैं। इसी प्रकार अंधविश्वास पर आधारित परम्पराओं के तहत भीड़ द्वारा पत्थरों से लहूलुहान कर मार डालने एवं तथाकथित निम्न वर्गीय  लोगों की सरेआम पिटाई कर हत्या की घटनाएं भारत में अक्सर होती ही रहती हैं।

भारत की राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो की रिपोर्ट क्या कहती है

राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2001 से 2014 तक देश में 2209 महिलाओं की हत्या डायन होने की आशंका में पीट-पीट कर कर दी गई। इनमें से 464 झारखंड में, 415 ओड़िसा में, 383 आंध्र प्रदेश में और हरियाणा में 209 ऐसी हत्याएं हुईं। जो अंधविश्वास या सुनियोजित जनसमूह द्वारा ही की जाती रही हैं। 

भारत के मौजूदा बौद्धिक विमर्श के अनुसार लिंचिग में गणना हेतु सामुदायिक एवं राजनीतिक रूप से परस्पर-विरोधी समुदायों का पीड़ित या पीड़क के रूप में शामिल होना ज़रूरी होता है। अतएव भारत के सर्वांगीण विकास के लिए बहुसंख्यक गरीब समुदाय की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति सुनिश्चित करने के साथ ही उन्हें समय के अनुसार प्रगतिशील एवं प्रज्ञावान बनाकर समाज की मुख्य धारा में शामिल करके ही प्रचलित बौद्धिक विमर्श का नज़रिया भी बदलना ज़रूरी है।

विगत दशक से मॉब लिंचिग आम बहस का विषय बना हुआ है, गली-मुहल्ले से लेकर समाचार पत्रों, टीवी चैनलों, सोशल मीडिया और यहं तक कि संसद में भी बहस का प्रमुख मुद्दा रहा है। 

हमारे देश के कई हिस्सों में धर्म के नाम पर मॉब-लिंचिग की घटना घटित हुई हैं। इन लिंचिंग की घटनाओं मे मुख्यत: गौरक्षा के नाम पर लिंचिग, बच्चा चोरी, बलात्कार के मामलों से संबंधित लिंचिग हुई हैं।

दादरी के मोहम्मद अख्लाक को बीफ़ खाने के शक में भीड़ द्वारा ईंट और डंडों से पीटकर मार डालने की घटना से लेकर अलवर के रकबर खान को गाय की तस्करी करने के शक में मार डालने की घटना तक वर्ष 2014 से 2018 के दौरान मांब लिंचिग के 134 मामले हो चुके हैं। अमर उजाला में प्रकाशित न्यूज़ के मुताबिक एक सरकारी आंकड़े के अनुसार 2014 से 2018  तक गौरक्षा के नाम पर हुई मॉब लिंचिग के कुल मिलाकर 85 मामले प्रकाश में आए।

घटनाओं में 50 फीसदी शिकार मुस्लिम हुए

जबकि 20 प्रतिशत मामलों में शिकार हुए लोगों की धर्म जाति मालूम नहीं हो सकी। वहीं 11 फीसदी दलितों को ऐसी हिंसा का शिकार होना पड़ा। गोरक्षकों ने हिंदुओं को भी नहीं छोड़ा। 09 फीसदी मामलों में हिंदुओं को भी शिकार बनाया गया। जबकि आदिवासी एवं सिखों को भी 01 फीसदी मामलों में शिकार होना पडा़। बढ़ती हुई लिंचिग की घटनाओं के बारे में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने भी शिशु तस्करी,गोरक्षा के नाम पर हो रही लिंचिग की रोकथाम के लिए सरकार को जल्द से जल्द कानून बनाने की सख्त हिदायत दी है। फिलहाल डायरेक्टिव जारी कर पुलिस एवं प्रशासन को मांब लिंचिग पर नियंत्रण स्थापित करने की अपेक्षा की है।

इन घटनाओं के कारणों मे समाज में पुलिस-प्रशासन एवं न्याय व्यवस्था के प्रति आक्रोश और  सुरक्षा को लेकर ग़ुस्सा, विभिन्न समुदायों के बीच पारस्परिक विश्वास की कमी, अफवाह और जागरूकता की कमी। सोशल मीडिया का दुरूपयोग, नफरत की राजनीति के अलावा पलायन। इन कारणों के निवारण हेतु समाज में आई नैतिक मूल्यों की गिरावट को निज कर्तव्य तथा दायित्व बोध के प्रति संजीदगी लाकर दूर करना होगा।

कुछ ऐसी भावना के साथ वैचारिक मतभेद के बावजूद पारस्परिक सौहार्द से रहने के लिए माहौल विकसित करने ज़रूरत है। इसके अलावा समाज में आस्था और विश्वास के नाम पर किए जा रहे धर्म के कारोबार को मिटाकर लोगों को वास्तविक रूप से शिक्षित करके मध्यमवर्गीय दृष्टि कोण पर आधारित तार्किक एवं व्यावहारिक विचारधारा वाले समाज की स्थापना करनी होगी। तभी ऐसी कुरीतियों से निजात पाना संभव हो सकेगा।

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