आज पवित्र हिंदुस्तान की ज़मीन पर बहुत सारे लोगों की ना जाने कितनी शामें भूख से गुज़रती हैं। यह देश धार्मिक अनुष्ठानों का देश रहा है। इस देश में हज़ारों मंदिरों मस्जिदों में करोड़ों रुपयों का चढ़ावा होता है। लोग खुशी से मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर एवं गुरुद्वारों में जाकर करोड़ों-करोड़ों का दान करते हैं।
खैर, कीजिए कोई बात नहीं है लेकिन दिल पर हाथ रखकर के सोचिएगा, वह भगवान जो ईंट की इमारतों में पत्थर रूपी बनकर विराजमान रहते हैं, क्या आप उनको धन और पैसों से खुश कर सकते हैं? अगर मैं कहूं तो ऐसा संभव नहीं है। मेरा धर्म एवं कर्म सदा इस बात में निहित होनी चाहिए कि मैं जिस गाँव, कस्बे या मोहल्ले में रहता हूं, उस मोहल्ले के लोग चैन से हैं या नहीं हैं, शांति से हैं या नहीं हैं, उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति होती है या नहीं होती है, क्या वह भूखे तो नहीं सो रहे हैं?, क्या उन्हें कोई रोग तो नहीं है जिनकी वजह से उनकी जिंदगियां तड़प-तड़प कर कटती है।
अगर ऐसा है तो उन लोगों की मदद करने के बजाय किसी भी मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारे में आपका चढ़ावा भी सार्थक नहीं हो सकता है। मेरी सोच के मुताबिक आपके दान किए जाने वाले धन उन तमाम गरीब और बेसहारों की आवश्यकताओं की पूर्ति में मददगार बने तो इससे बड़ा कोई पूजा-धर्म आपके जीवन में नहीं हो सकता है, क्योंकि मैं मानता हूं भारतवर्ष के लोग जब तक भूख से कराहते रहेंगे, जब तक प्रत्येक लोगों के पास सुबह और शाम का भोजन प्राप्त नहीं होगा तब तक यह देश परिपूर्ण रूप से शांति के काबिल नहीं समझा जाएगा।
मैं अपने बारे में बता दूं कि जब मैं जन्म लिया था, उसके कुछ ही दिनों के बाद मुझे पोलियो से ग्रस्त होना पड़ा और उस बीमारी ने मेरी ज़िन्दगी को तबाह कर दिया और मैं हमेशा-हमेशा के लिए पैर से विकलांग हो गया फिर भी अपने हौसले और बुलंद इरादों के साथ समाज में लोगों के लिए ऐसे छोटे-छोटे कार्य कर रहा हूं। मुझे विश्वास है कि आप इन बातों को अवश्य पढ़ेंगे एवं इसके उद्देश्य पर ध्यान देते हुए अपने-अपने मोहल्ले में बेसहारों की आवाज़ बनेंगे।
बेसहारों को हर संभव मदद करने की कोशिश कीजिएगा, शायद आपकी घर से निकली हुई एक रोटी बेसहारों की भूख की तृप्ति का कारण बने। इससे बड़ा धर्म कुछ भी नहीं है।