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“अपने मायके और ससुराल के लिए एक लड़की क्यों कहलाती है पराई?”

शादी की तस्वीर

शादी की तस्वीर

मैं एक भारतीय लड़की हूं जिसके अस्तित्व को बचाने के लिए सरकार को ना जाने कितनी योजनाएं चलानी पड़ती हैं। जब मेरी अपनी मॉं ही इस दुनिया में मेरा अस्तित्व नहीं देखना चाहती है, तब क्या ही कहा जाए। किसी भी तरह से जब मैं पैदा हो जाती हूं तब मेरे परिवार वाले ऐसे खुशियां मनाते हैं जैसे वे खुशियां उनपर थोपी गई हो।

चाहे मुझपर खर्च किए गए पैसों की का ज़िक्र हो या मेरी पढ़ाई-लिखाई की बात की जाए, बचपन से एक ही बात सुनती आ रही हूं कि पढ़-लिखकर क्या करेगी लड़की? जाना तो आखिर पराए घर में ही है। मैं जैसे-जैसे बड़ी होती हूं, वैसे-वैसे मॉं-बाप पर बोझ बढ़ता जाता है और वे जल्द मेरी शादी करवाकर मुझे उस पराए घर के हवाले कर देते हैं जिसके बारे में वे अक्सर मुझे बताया करते थे।

यह बिल्कुल रिले रेस जैसा था, जहां हर कोई अपना सफर पूरा होते ही मुझे आगे वाले को सौंप रहा है। ठीक वैसे ही मेरे मॉं-बाप मुझे मेरे पति के हवाले कर देते हैं और अनपी-अपनी ज़िम्मेदारियों से मुक्त हो जाते हैं।

कुछ समय बाद वही पराया घर मेरे लिए अपना हो जाता है और मॉं-बाप का घर पराया हो जाता है। वहां मेरे लिए कुछ भी नहीं  बचता, क्योंकि मेरे माँ-बाप अपना सब कुछ अपने बेटों के बीच बांटकर खुद भी निराश्रित हो जाते हैं। वह घर अब तो मेरे भाईयों का हो जाता है जहां मैं भी बस मेहमान बनकर रह जाती हूं। अब मुझे उसी पराए घर में रहना होगा जहां मेरा ब्याह हुआ है।

मैं यह भी सोचती हूं कि क्या मेरे ससुरालवाले मुझे कभी एक बेटी की तरह अपनाएंगे? क्या मुझे वहां मोहब्बत मिलेगी? इन सवालों को सोचने के बाद मेरे मन में एक अजीब सी घबराहट होने लगती है, क्योंकि अक्सर मैं उन्हें भी यह कहते हुए सुनती हूं कि पराए घर की बेटी है, पराई ही रहेगी।

अब मैं यह सवाल किससे करूं कि मेरा घर कहां है? मेरे पास अपने पति के साथ रहने के सिवाए और कोई रास्ता नहीं है। हमेशा डर लगा रहता है कि कहीं वो मुझे घर से निकाल ना दे। फिर मैं कहां जाऊंगी? क्योंकि मेरे मॉं-बाप ने तो मुझे बहुत पहले ही घर से निकाल दिया था। जब अधिक परेशान हो जाती हूं तब सब कुछ भुलकर ससुराल के प्रति समर्पित हो जाती हूं।

एक वक्त ऐसा आता है जब मेरा ससुराल मेरे ही मेरे लिए अपने घर जैसा हो जाता है। मेरे बेटों की शादी होती है और वे अपना-अपना हिस्सा लेकर अलग हो जाते हैं। फिर मेरी हालत मेरे मॉं-बाप जैसी हो जाती है। मैं भी सब कुछ अपने बेटों को देकर उनपर ही आश्रित हो जाती हूं। बेटे,  बहू और उनके बच्चों के बीच फिर से मैं पराई हो जाती हूं। एक आम भारतीय लड़की के तौर पर मैं हमेशा पराई ही रह जाती हूं।

नोट: यह लेख एक लड़की की वेदनाओं को ध्यान में रखकर लिखा गया है।

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