Site icon Youth Ki Awaaz

हाथ से खुदाई और कुटाई करके बनाते हैं त्रिपुरा के आदिवासी कच्ची हल्दी से हल्दी पाउडर

हल्दी का भारत में कई तरह से उपयोग किया जाता है। पूजा पाठ के समय, खाना पकाते समय, औषधि के रूप में भी हल्दी का इस्तेमाल होता है। त्रिपुरा में रहने वाले आदिवासियों के घर- घर में हल्दी का पेड़ दिखता है। आज कल लोग बाज़ार से प्लास्टिक के पैकेट में हल्दी ख़रीद लेते है लेकिन त्रिपुरा के आदिवासी अपने खाने में जो भी ज़रूरी है, खुद उत्पन्न करते है, और दूसरों पर निर्भर नहीं रहते।

त्रिपुरा के आदिवासी गाँव में हल्दी की पैदावार

ऐसे ही वह सालों से कच्ची हल्दी से हल्दी पाउडर बनाते आ रहे है। त्रिपुरा के आदिवासी गांव में हल्दी पाउडर ज़्यादातर सब्जी पकाने में इस्तेमाल की जाती है। हल्दी से ही सब्जी का रंग बहुत सुंदर दिखने लगता है। हल्दी को त्रिपुरा में अप्रैल-मई के महीनों में लगाया जाता है और 2 साल बाद फ़रवरी-मार्च में इसकी खुदाई की जाती है।

इस महीने में हल्दी के सब पत्ते सूख जाते है इसलिए इस महीने में ही कच्चे हल्दी की खुदाई करना ठीक रहता है। यदि इस महीने में कच्चे हल्दी की खुदाई नहीं की तो बारिश के मौसम में हल्दी के तना निकल जाता है। इस महीने में हल्दी की खुदाई करने से यह हल्दी बड़ी सुगंधित होती है और हल्दी का रंग अच्छा और गहरा दिखने लगता है।

हल्दी पाउडर।

ऐसे बनाते हैं कच्ची हल्दी से हल्दी पाउडर 

हल्दी पाउडर बनाने के लिए इस प्रक्रिया को पाला जाता है-

कच्ची हल्दी की खुदाई करते हुए।

हल्दी की खुदाई  

कच्ची हल्दी की कुदाल से सावधानीपूर्वक खुदाई की जाती है। इसके बाद कच्ची हल्दी को इकट्ठा किया जाता है।  

हल्दी की सफाई और कटाई

हल्दी की खुदाई करने के बाद कच्ची हल्दी को अच्छे से साफ किया जाता है और पानी से धोया जाता है। फिर इसे थोड़ी देर धूप में सुखाने के बाद इसे पतले भागों में काटा जाता है। 

कच्ची हल्दी को काटने के बाद धूप में सुखाया जाता है।

हल्दी को सुखाना और कुटाई

कच्चे हल्दी को साफ़ करने और काटने के बाद इसे 8-9 दिन धूप में सुखाया जाता है। धूप में सूखने के बाद हल्दी साफ दिखती है और इसका रंग भी बड़ा सुंदर होता है। फिर हल्दी की ओखली और मूसल से कुटाई करते है। इस काम को आधुनिक मिश्रण मशीन के ज़रिए भी किया जा सकता है।

कच्ची हल्दी को पाउडर में कूटते हुए।

ऐसी है कच्चे हल्दी से हल्दी पाउडर बनाने की प्रक्रिया। हल्दी पाउडर बनाने के बाद आधी हल्दी लोग अपने पास रखते है, घर के इस्तेमाल के लिए और आधी हल्दी बाजार में बेच देते है।  त्रिपुरा के आदिवासी और भी विभिन्न फसल उत्पादन करके अपने परिवार को चलाते है।

इन छोटे व्यापारों को बढ़ावा देना बहुत ज़रूरी है, इससे लोगों की आर्थिक स्थिति अच्छी होगी। यदि सरकार ने आदिवासियों के इन व्यापारों को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाए तो आदिवासियों के गांव और जीवन भी बेहतर और उज्ज्वल हो जाएंगे।


नोट: यह लेख आदिवासी आवाज़ प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।

Exit mobile version