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क्या महिलाओं के खिलाफ हिंसा के सबसे बड़े कारण पुरुष वर्ग हैं?

कोरोना संक्रमण ने दुनिया भर में बहुत कोहराम मचाया हुआ है। हालांकि लोग अब इसे लेकर इतने गंभीर नहीं ह़ जितना कि शुरुआती दौर में थे। विद्यालय, महाविद्यालय, कार्य क्षेत्र, वाहन एक तरफ से देखा जाए तो सबकुछ बंद हो चुका था।

लोग भी अपने घरों में बंद हो चुके थे। केवल कुछ ज़रूरी कामों और सामानों के लिए ही बाहर निकलते थे। जिनका कार्य वर्क फ्रॉम होम से चल रहा था, वह उसमें अपना दिन चला रहे थे बाकी गरीब लोग अपने अपने गांव की ओर चल पड़े थे।

वे बातें जो आपको शायद नहीं पता

यह तो हम सभी जानते हैं कि भारत में महिलाओं को उतनी अहमियत नहीं दी जाती जितना कि एक पुरुषों को दी जाती हैं। कॉरोना के समय जब संपूर्ण देश बाहर जाने से डर रहा था वहीं कई महिलाएं घर में रहने से डर रही थीं। लोग अपने घर में जहां सुरक्षित महुस कर रहे थे वहीं महिलाएं असुरक्षित मेहसू कर रही थीं। क्यों? क्योंकि महिलाओं के साथ जो अत्याचार पहले होता था अब वह दोगुना हो चुका था।

नैशनल कमिशन फॉर वूमन की रिपोर्ट के द्वारा देखा गया कि लॉकडाउन के 25 दिन में महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा दुगुनी हो गई। करीबन 239 शिकायतें लिखी गईं। आप सोचिए यह तो वह आंकड़े हैं जो NCW तक पहुंचे थे। ऐसे बहुत से मामले होंगे जो NCW तक पहुंचे ही नहीं होंगे।

हमारे भारत के बहुत से लोग इन मामलों को साधारण समझते हैं। इसमें महिलाए भी शामिल हैं। उनके मुताबिक यह सब आम बातें हैं। यह इसलिए आम बात समझते हैं, क्योंकि उनके साथ ऐसा व्यवहार नहीं होता है। हमारे समाज के लोगों ने ही इसे बढ़ावा दे रखा है। इसका उदाहरण देखना है तो आपको तापसी पन्नू की थप्पड़ मूवी देखनी चाहिए।

पुरुष इसमें क्या सहयोग दे सकते हैं?

दोस्तों मैंने हाल ही में देखा कि 19 नवंबर को जिस दिवस को पुरुष दिवस के नाम से दिया गया उस दिन गूगल या फिर किसी बड़े मंच ने पुरुष दिवस नहीं मनाया। यह देखकर बहुत से पुरुष बुरा मान गए और उन्हें डर लगने लगा है। महिलाएं अब आगे जा रही हैं और पुरुषों को पीछे भेजा जा रहा है। मैं उन पुरुषों से बस यह बातें कहना चाहती हूं-

आपको किस बात का डर है?

365 दिन पुरूष दिवस ही होता है। ऐसा कौनसा दिन है जिस दिन आपको कहा जाता है कि आज आप घर से बाहर नहीं जाएंगे? ऐसा कौनसा दिन होता है जिस दिन आपको एक औरत मारे और कहे खाना बनाने। यह सब तो बस महिलाओं के साथ होता है। तब क्यों नहीं सब पुरूषों को डर लगता है?

कई पुरुष है जो कहते हैं कि अब महिलाओं और पुरुषों में कोई अंतर नहीं रहा। सबको समान सहयोग मिल रहा है। बल्कि पुरूष ही पीछे जा रहे हैं। उन्हीं पुरुषों का कहना यह भी है कि घर में रोने से कुछ नहीं होगा। अपने हक के लिए लड़ो। तो उन पुरुषों से मैं यह कहना चाहती हूं कि जो हक पहेले से मेरा है उसके लिए लड़ें क्यों? जो चीज़ तुम्हें मुफ्त में मिली है उनके लिए हमें लड़ना पड़े तो किस बात की इक्वालिटी?

मैं यह नहीं कहती सारे पुरुष एक जैसे हैं   लेकिन अगर भारत में मुसलमान गलत होने पर पूरे मुसलमान को टारगेट किया जाता है तो वैसे ही 10 में से 6 पुरूष गलत होते हैं तो 10 के 10 को समझाया जाता है। महिलाएं लड़ रही हैं, लड़ती आ रहीं हैं और लड़ेंगी भी लेकिन जबतक पुरुष नहीं समझ पाते तबतक हर कोई सामान नहीं हो सकेगा। हर कोई अपनी मर्ज़ी से रह सकता है, खा सकता है, पहन सकता है, घूम सकता है।

हर चीज़ खुद के लिए कर सकता है बिना किसी को ठेस पहुंचाए। चाहे कोई महिला ही क्यों न हो तब तक कुछ नहीं बदल सकता क्योंकि पुरुष ही जड़ है महिलाओं के साथ होने वाले अत्याचार की। वैसे कुछ महिलाएं भी हैं जो अन्याय का कारण हैं लेकिन इस समस्या का जड़ से इलाज हर एक पुरुष ही कर सकते हैं। पुरुष डर हटा दें कि महिलाएं उन्हें पीछे हटा देंगे। हटा भी दें तो तुमने भी तो हज़ारों साल उन्हें पीछे रखा है तब क्यों नहीं डरे लगते थे?

कई पुरुष कहते हैं आजकल की महिलाओं से डर लगता है कि झूठे केस में फंसा न दें इसलिए अब हम चुप रहते हैं। यही पुरुष हैं जब महिलाओं के साथ ही पुरुषों के साथ अन्य कोई भी अत्याचार हो तो उसे कहते हैं कि आवाज़ उठाओ। आवाज़ क्यों नहीं उठा रहे हो लगता है तुम खुद गलत हो इसलिए आवाज़ नहीं उठा रही हो।

लड़की को इतना डरकर नहीं रहना चाहिए

तुम लोग खुद डर कर रहती हि इसलिए तुम्हारे साथ ऐसा होता है। तो अब मुझे बताइए आप पुरुष हैं तो क्यों डरते हैं। आप क्यों नहीं आवाज़ उठाते हैं। आपको बस एक झूठे केस में फंसने का इतना डर है तो सोचिए उस महिला पर क्या गुज़रती होगी जिसके खुद अपने ही उसको मार-पीट कर उसका मानसिक शोषण करें।

लोग कहते हैं इसमें पुरुषों की गलती नहीं इसमें समाज की गलती है। यह मैं भी मानती हूं कि इसमें समाज की गलती है लेकिन यह समाज में है कौन? हम ही तो हैं, पुरुष और महिलाएं। हम लोगों को तो इसे चेंज करना है। तो हमें अपना हाथ आगे बढ़ाना पड़ेगा और हमें ही अपनी गलतियां सुधारनी पड़ेगी ताकि हमारी गलतियों से दूसरों का बुरा न हो। जितने भी अत्याचार महिलाओं पर होते हैं वह अत्याचार पुरुषों द्वारा ही होते हैं। इसलिए अगर पुरुष ने ही ठान ली कि हर इंसान हर व्यक्ति एक समान है तो वह भी किसी औरत को अपने आप से कम नहीं समझेंगे और हमेशा उस औरत को अपनी जगह पर रख देंगे।

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