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#FarmersProtest: बड़े ब्रैंड्स के मेनस्ट्रीम टीवी चैनलों को अपने माइक क्यों छोड़ने पड़े?

सिंघू बॉर्डर पर गोदी मीडिया का विरोध करते किसान

सिंघू बॉर्डर पर गोदी मीडिया का विरोध करते किसान

अक्सर मेनस्ट्रीम मीडिया ब्रैंड स्टैब्लिशमेंट को लेकर काफी चिंता में रहते हैं। इसके लिए कभी ट्रेंड में चल रही चीज़ों पर प्रोग्राम किया जाता हैं, तो कभी बैंड स्टैब्लिशमेंट के नाम पर ही चैनल हज़ारों-करोड़ रुपये खर्च करते हैं लेकिन आज इन चैनलों को बिना अपने माइक के उसे छुपाकर पीटूसी और रिपोर्टिंग करनी पड़ रही है।

आखिर ऐसी स्थिति आई क्यों? कैसे टीवी में इतना गहरा विश्वास रखने वाला दर्शक चैनल के माइकों से खफा होने लगा। क्यों किसान इनका बायकॉट कर रहे हैं? और क्या ये चैनल अब भी जहर बोना छोड़ेंगे?

दिल्ली के तमाम बॉर्डरों पर अभी हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, बिहार, यूपी से (ग्राउंड पर इन राज्यों के किसान हमसे मिले) महीनों तक अपनी मांगों के साथ जमे रहने के उद्देश्य और बंदोबस्त के साथ किसान आए हुए हैं। उनकी मांग है कि केंद्र सरकार तीनों नए कृषि कानूनों को वापस ले। सरकार उनसे बात कर रही है, किसान संतुष्ट नहीं हो रहे हैं। बातचीत लगातार चल रही है, किसान अपनी मांगों को लेकर डटे हुए हैं।

लेकिन इस बीच ज़्यादातर मेनस्ट्रीम टीवी चैनल काफी दिक्कत में हैं। जहां दिनभर क्या चलता है ये किसी को बताने की ज़रूरत नहीं है। दरअसल प्रदर्शनकारी किसानों ने मेनस्ट्रीम मीडिया का बायकॉट कर दिया है। किसी भी माइक वाले से बात करने से पहले वे चैनल का नाम पूछते हैं।

मेनस्ट्रीम चैनलों के माइक देखते ही पूछते हैं, “सर/मैडम हम पंजाब में दो महीने से बैठे थे, तब आप कहा थे? हम आपको कहां से खालिस्तानी लगते हैं? हमें किस ने भड़काया है, यह आपको किसने बताया?” किसान इन टीवी चैनलों को साफ-साफ गोदी मीडिया कह रहे हैं। इन रिपोर्टरों को सीधे-सीधे नकार दे रहे हैं।

इस बीच ग्राउंड पर हो रहे इस बायकॉट से कुछ चैनलों ने बड़ी ही चालाकी से अपने सुर बदल भी लिए लेकिन ज़्यादातर चैनलों की कोशिश अभी भी वही है, जो वे पहले से करते आए हैं। जहां किसानों के इस प्रोटेस्ट को तोड़ने के लिए नए-नए पैकेज बनाए ही जा रहे हैं।

ग्राउंड पर रिपोर्टर को जब बाइट नहीं मिली, पीटूसी नहीं मिली तो रिपोर्टर को बिना माइक के ग्राउंड पर भेजा जा रहा है। एंकर/एंकराएं तो वैसे भी ग्राउंड पर नहीं उतरते हैं, क्योंकि उनका काम तो टीवी स्टूडियो में बैठकर जहर बोना है और उनके बोए जहर का ही नतीजा है कि आज रिपोर्टर बिना माइक के रिपोर्टिंग कर रहा है।

एक युवा किसान ने प्रदर्शन में हमसे कहा कि इन मीडिया वालों, खासकर दिल्ली की टीवी मीडिया से हमें अब कोई उम्मीद नहीं ह, हम उनके लिए कोई मुद्दा ही नहीं हैं। किसी को हमारी कोई चिंता नहीं है। वे सारी बातें सरकार की ओर से करते हैं और हमसे उल्टे-सीधे सवाल करते हैं। हमारा खालिस्तान से रिश्ता बतातें हैं। जबकि ऐसी कोई बात नहीं है। यहां हम सब रोटी के सवाल पर लड़ रहे हैं। किसानी ही हमारी रोज़ी है। हम अपने उकी हक के लिए यहां लड़ने आए हैं।

पूरे आंदोलन में चलते-फिरते आपको कहीं-ना-कहीं से गोदी मीडिया और उस पर हो रही बातचीत सुनाई पड़ ही जाएगी। किसान इन मेनस्ट्रीम चैनलों को वहां देखना तक पसंद नहीं कर रहे हैं।

लेकिन बड़ा सवाल अब भी वही है कि क्या इसके बाद भी टीवी चैनल बदलेंगें? क्या टीवी स्टूडियो से फैलाया जा रहा झूठ और जहर कम होगा? क्या ग्राउंड पर परेशानी झेल रहे रिपोर्टर अपने संस्थान को बताएंगे कि स्टूडियो के बाहर पत्रकारिता में ग्राउंड भी एक दुनिया है, जहां लोगों से सामना होता है, जिनके बारे में एंकर/एंकराएं सुबह से लेकर शाम तक झूठी और नफरती बातें फैलाते रहते हैं।


नोट: यह आर्टिकल द अनऑर्गेनाइज़्ड के लिए YKA यूज़र तेज बहादुर सिंह ने लिखा है।

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