Site icon Youth Ki Awaaz

यह समाज गोरेपन की बात पर क्यों सांवले रंग को असहज कर देता है?

हम अपनी सोसायटी में रंग-रूप के आधार पर होने वाले भेदभाव को हम सामान्यतः देखते रहते हैं। हम इस सब पर ज़्यादा ध्यान भी नहीं देते, क्योंकि हम सिर्फ अपने आप तक ही सीमित हैं। हमें दूसरों के बारे में सोचने की क्या पड़ी है? अगर हमारा रंग गोरा है तो बस हम ही सबसे बढ़िया हैं। यह सोच हमारे दिमाग में जगह बनाए हुए है कि  सांवले रंग के लोगों के साथ हमारा व्यवहार थोड़ा अजीब सा ही रहता है।

क्या महज़ गोरा रंग ही सब कुछ है

समाज की मानसिकता ही ऐसी हो गई है कि जो जितना गोरा हो वही सबसे अच्छा है। चाहे उसका व्यवहार बेकार ही क्यों न हो? हम लोग गोरा दिखने के लिए तरह-तरह के क्रीम, पाउडर और अन्य सौन्दर्य प्रसाधन का भी बहुत प्रयोग करते हैं,क्योंकि हमें और गोरा और सुंदर दिखना है।

हमारे ज़हन में दूसरे से सुंदर दिखने की होड़ लगी हुई है परंतु सिर्फ गोरा और सुंदर दिखना ही हमारे लिए सही है क्या? क्या कोई टैलेंट और अन्य ज्ञान मायने नहीं रखता है? समाज यह कब स्वीकार करेगा कि सुंदरता सिर्फ गोरेपन से नहीं होती है लेकिन पता नहीं क्यों फिर भी सुंदरता को बाह्य रंग-रूप ही मान लिया गया है?

सुंदरता तो हमारे संस्कारों व्यवहार ,बोलचाल और ज्ञान से होनी चाहिए परंतु यहां सब इसका उल्टा ही दिखाई पड़ता है। हमारी सोसायटी ने तो सिर्फ गोरेपन को ही सुंदरता के लिए परिभाषित कर दिया है। उन्हें किसी के हुनर से कोई लेना-देना नहीं है।

इतने सौन्दर्य प्रसाधनों की खरीद किसके लिए?

यदि आज के परिवेश में हुनर की कद्र होती तब इतने सारे सौन्दर्य प्रसाधनों के विज्ञापनों की कोई आवश्यकता ही नहीं होती! तभी तो आज समाज में सांवले लोगो को सबके सामने अपने रंगरूप की वजह से शर्मिंदा होना पड़ता है,क्योंकि जब भी गोरेपन की बात होती है तब वह अपने आप को असहज़ महसूस करते हैं और ऐसा सिर्फ इसलिए कि उनका रंग सांवला है।

फिर वह भी अपने सांवलेपन को गोरेपन में बदलने के लिए कोशिश करते हैं, वो भी सिर्फ सोसायटी में गोरे लोगों के बराबर खड़ा होने के लिए, क्योंकि वह जानते हैं कि हमारी सोसाइटी को सुंदरता चाहिए। वह भी उनके काम में नहीं बल्कि उनके रंगरूप में। हर फील्ड में उनके साथ अप्रत्यक्ष रूप से भेदभाव होता है,जिसे हम सब नज़रअंदाज़ कर देते हैं।

रंगभेद के खिलाफ आवाज़ उठाना ज़रूरी है 

हमें इस घटिया किस्म की मानसिकता से ऊपर उठकर कुछ अलग सोचना होगा? समझना होगा कि सिर्फ गौरापन ही सुंदरता नहीं हैं। रंगभेद के खिलाफ हमें आवाज़ उठानी होगी। समाज को समझाना होगा कि हमारी पहचान हमारे गोरेपन से नहीं बल्कि हमारे काम से हो।

ऐसे विज्ञापन आजकल हमें देखने को बहुत मिलते हैं, जिनमें गोरेपन को बढ़ावा दिया जाता है। हम जैसे हैं ऐसे ही ठीक हैं। हमें अपने रंग-रूप को बदलने की कोई आवश्यकता नहीं होनी चाहिए।

Exit mobile version