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क्या बंगाल और यूपी में भी ओवैसी मुस्लिम मतदाताओं को रिझाने में कामयाब होंगे?

Asaduddin Owaisi AIMIM

Image credit: Getty Images

हो ना हो इस चुनाव के नतीजों पर सारा देश नज़रें जमाए बैठा था। कयास लगाए जा रहे थे कि इस चुनाव में कुछ बदलाव आएंगे मगर नतीजे जब आए तो एनडीए को पूर्ण बहुमत मिला और महगठबंधन को 110 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा।

लेकिन इस चुनाव में सबसे खास बात रही तेलंगाना के हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम की जीत, क्योंकि किसी को यह विश्वास ही नही था कि हैदराबाद की यह पार्टी बिहार में अपने 5 एमएलए बना लेगी।

असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी बिहार के सबसे पिछड़े और मुस्लिम बाहुल्य इलाके सीमांचल में ही काफी सक्रिय थी और इसी इलाके से पार्टी ने 5 सीटें जीती हैं। इस जीत के साथ ही ओवैसी अब मुस्लिम मतदाताओं की पसंद बनते जा रहे हैं।

ओवैसी की पार्टी के अभी तेलंगाना में 7 एमएलए और एक सांसद, महाराष्ट्र में 2 एमएलए और एक सांसद हैं और इसके बाद अब बिहार में 5 एमएलए हो गए। इस जीत से उनके और उनकी पार्टी के आत्मविश्वास में काफी इज़ाफा हुआ है।

ओवैसी का राजनीतिक बैकग्राउंड

वैसे तो ओवैसी लंदन से बैरिस्टर की पढ़ाई कर के लौटे हैं। राजनीति उनको विरासत में मिली है। उनके दादा और उनके पिता दोनो ही ऑल इंडिया मजलिस इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) से जुड़े रहे। ओवैसी को मुस्लिम मतदाताओं की नब्ज़ पता है और वो उसी पर हाथ रखते हैं और मुस्लिम मतदाता भी खासकर निचले तबके और अशिक्षित मतदाताओं पर उनका प्रभाव है।

जब नतीजे आ रहे थे और जब ऐसा लग रहा था कि महागठबंधन बहुमत के आंकड़ों से कुछ पीछे रह जाएगी तो उस वक्त लग रहा था कि बिहार की सियासत में ओवैसी ही किंग मेकर होंगे।

क्या सच में ओवैसी ने मुसलमानों के वोट काटकर महागठबंधन को हराने में भूमिका निभाई है?

चुनावी परिणाम के आंकड़ों को देखा जाए तो यह बात सिरे से गलत साबित होती है। ओवैसी ने एक अलग गठबंधन बनाया था, जिसमें बहुजन समाज पार्टी और उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय समता पार्टी शामिल थी। इसमें मात्र बसपा एक सीट जीत पाई, जबकि ओवैसी ने पांच सीटों पर जीत दर्ज़ की।

ओवैसी ने कुल 20 सीटों पर चुनाव लड़ा। इसमें से पांच सीट वो जीत गए।। ये सीटें हैं अमौर, बहादुरगंज, बायसी, जोकीहाट और कोचादमन। इसमें मात्र जोकीहाट सीट पर दूसरे नंबर पर राजद रही और बाकी चार सीटों पर एनडीए के साथ उनका सीधा मुकाबला हुआ। इसका सीधा मतलब यही हैं कि बाकी चार सीटों पर महागठबंधन का कोई मतलब नहीं रहा।

लेकिन जिस तरह से ओवैसी मुस्लिम मतदाताओं को अपनी भाषण और अपने वादों से रिझा रहे हैं, यह आने वाले समय में दूसरे दलों के लिए काफी चिंता की बात है और आगामी चुनावों, जैसे बंगाल और यूपी में वो मुस्लिमों को अपने पाले में खींचते हैं या फिर उन पर वोट कटवाने का ही इल्ज़ाम लगता है, यह देखना दिलचस्प होगा।

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