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क्या वाकई लोकतंत्र जिंदा है

गड़तंत्र भारत की तस्वीर

भारत एक लोकतांत्रिक देश है, ऐसा आपने कई बार राजनेताओं के भाषणों में सुना होगा और यह सच भी है कि जनमंचों पर नेताओं के मुंह से ऐसे कथन सुनना अच्छा भी लगता है लेकिन मंच से नीचे आते आते लोकतंत्र काफी धुंधला हो जाता है, फिर शायद लोकतंत्र आपको दिया जलाकर खोजना पड़े।

यदि हम आसान भाषा में समझें तो लोकतंत्र का मतलब होता है, जहां जनता की समस्या सुनी जाती हों,जहां जनता को अपना पक्ष रखने अधिकार हो लेकिन आज कल अपने अधिकारों एवं अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाना कब आपको अपराध की संगीन धाराओं मे लिप्त कर देगा, फिर आधी ज़िन्दगी आप गलत और सही के बीच लड़ते रहेंगे आपको खुद भी नहीं पता चलेगा।

 असल मे लोकतंत्र एक बेशकीमती चीज है, अमेरिका के 46वें राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अपनी इनॉगरल स्पीच में भी कहा था कि लोकतंत्र कीमती और नाजुक चीज़ होती है और भारतीयों के लिए तो यह बहुत ज्यादा महत्व रखती है क्योंकि 150 साल चले लम्बे संघर्ष के बाद मिली यह लोकतांत्रिक आज़ादी सिर्फ किताबों में ही अमर होकर रह गयी है।

इन दिनों अभिव्यक्ति की आज़ादी और उसके अधिकार पर बहुत चर्चाएं गरम रहती हैं। ऐसा कितनी ही बार देखा गया है कि जब अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर हम कुछ अपशब्द और गलत बोल बैठते हैं और वही हमसे हो जाती है सबसे बड़ी चूक। लोकतंत्र का इस्तेमाल जब तक सही है, जब तक वह सही काम और नेकी के साथ किया जाये।

बहरहाल आज सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में हम कहीं ना कहीं सब कैद हैं। किसी को बीमारी से आज़ादी चाहिए, किसी को आलस से, किसी को बुरी लत से तो किसी को बुरी संगति से और सब अपनी अपनी जगह यह लड़ाई लड़ रहे हैं लेकिन ऐसे ही आम लोगों की समस्याओं को सुलझाने का और उसको सही जगह तक पहुंचाने का काम पत्रकार का होता है और इसी कारण से पत्रकार को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ भी कहा जाता है। 

लेकिन अब आप इसको लोकतंत्र का दुर्भाग्य कह लीजिये या ज़माने का बदलाव परन्तु अब उस चौथे स्तंभ में भी इतनी कमज़ोरी आ गयी है कि वह लोकतंत्र का भार झेलने मे सक्षम नहीं है। आज पत्रकारिता में व्यापार घुस जाने से आम जनता की जुबान सीमित हो गयी है। आज मुद्दे हैं पर पत्रकार नहीं, जहां फायदा है वहां पत्रकार हैं फिर क्या इतने बड़े लोकतंत्र मे एक गरीब किसान और मज़दूर सिर्फ उम्मीदों के सहारे रात गुज़ार लेंगे ?

लोकतंत्र की यह एक विशेष ताकत होती है कि जब आपको सत्तारूढ़ सरकार की नीतियों का विरोध करना हो तो आप विरोध कर सकते हैं लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण आज की तारीख में आप वह भी नहीं कर सकते हो सकता है कि विरोध करने के कारण आपको अपना राष्ट्रीय प्रमाण देना पड़ जाए और शायद आप बेझिझक अपनी बात ना रख पाएं।  

किसान आंदोलन से पता चलता है कि वाकई हमारे देश में लोकतंत्र और तानाशाही के बीच जो दीवार है वह मौजूद है या ध्वस्त हो गयी और आप यकीन नहीं करेंगे कि वर्ल्ड फ्रीडम इंडेक्स में 180 देशों में से हमारा देश भारत 142वे स्थान पर है।

क्या आप अपने लोकतांत्रिक अधिकारों का लाभ उठा पा रहे हैं ? या फिर एक मूक दर्शक बनकर लोकतंत्र की फ़िल्म देख रहे हैं।

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