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भारत में दम तोड़ती शिक्षा पद्धति एवं पीड़ित विद्यार्थियों का आकलन

कोरोना काल एवं शिक्षा

सम्पूर्ण विश्व के लिए साल 2020 ऐसा गुजरा जो नए ज़माने की पीढ़ी के लिए बेहद चिंताजनक और चिंतनशील रहा। इस साल कोरोना के कारण हमारे देश में लाखों युवाओं की नौकरियां गई, विश्वविद्यालयों में सैंकड़ों युवाओं एवं विद्यालयों में बच्चों की पढ़ाई का बहुत नुकसान हुआ, यह ऐसा नुकसान था जिसकी भरपाई करना शायद संभव नहीं है ।

देश के मेट्रोपॉलिटिन शहरों में सभी प्रकार के लोग रहते हैं। जिनमें उच्च वर्ग, मध्यम वर्ग एवं गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोग भी शामिल हैं।

भारत में 20 मार्च 2020 तक सब कुछ था सामान्य

अचानक 20 मार्च के बाद देश में वायरस जनित ख़तरनाक बीमारी कोरोना के कारण देश में हुए सम्पूर्ण लॉकडाउन की वजह से कोहराम मच गया। जहां हाई क्लास की फैमिली को कोई खास फर्क नहीं पड़ा। वहीं गरीब लोगों के लिए यह किसी अकाल से कम नहीं था। बेरोज़गारी का सितम और उस पर गरीबी के थपेड़े गरीबों को बेघर कर गए। गरीब परिवार के लोगों को वयस्कों के साथ-साथ बच्चों के स्वास्थ्य सम्बन्धी और शिक्षा के क्षेत्र में बहुत सी कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा है।

हाल ही के दिनों में रमेश पोखरियाल जो केंद्रीय शिक्षा मंत्री हैं। उन्होंने दसवीं और बारहवीं कक्षा के बोर्ड एग्ज़ाम की घोषणा की। परीक्षाएं 4 मई 2021 से 10 जून 2021 तक चलेंगी। अब सवाल यह उठता है कि यह सूचना कितने लोगों तक पहुंची और किन लोगों ने उनको सुना ? इसी बात का निरीक्षण करने के लिए मैंने अपने आस पास के क्षेत्र के 30 बच्चों से बात की और साथ ही झुग्गी झोपड़ियों और किसानों के 30 बच्चों से मैंने सवाल पूछे।

आपका सिलेबस कितनी हद तक पूरा हुआ है, आपको सिलेबस से सम्बंधित क्या-क्या जानकारियां हैं ?

बच्चों ने मुझे जो उत्तर दिया उसने मुझे आश्चर्यचकित कर दिया। महज़ 18 शहरी बच्चों ने मुझे जवाब दिया, जिसमें उनके जवाब आधे-अधूरे थे। केवल 60% बच्चे हैं जिन्हें जानकारी थी वह भी अधूरी। बाकी के स्कूलों में ऑनलाइन क्लास चल रही हैं और 9 बच्चों को स्कूल जाना होता है। उनके विद्यालय में दसवीं और बारहवीं कक्षा की ऑफलाइन क्लास चलाई जा रही हैं।

वहीं बात करें किसानों और झुग्गी झोपड़ियों वाले बच्चों की तो उनमें से केवल 3 बच्चों को अपने सिलेबस के बारे में पता था। मात्र 10% बच्चे। बाकी बच्चों को न तो उनकी किताब का नाम पता था और न ही पाठ का नाम। यह बहुत ही दुखद आंकड़े रहे।

लॉकडाउन के दौरान सबसे बड़ी समस्या ?

शहरी बच्चों को कुछ समस्याएं हुईं जिसमें से 14 बच्चों ने बताया कि  ‘ उनकी पॉकेट मनी, दोस्तों के साथ आउटिंग न कर पाना, पेरेंट्स का बार-बार टोकना, फिल्म हॉल बन्द होना आदि। वहीं 16 बच्चों के जवाब में पढ़ाई से सम्बंधित शिकायतें थीं। उनका कहना था कि स्कूलों की ऑनलाइन क्लास में सिर्फ औपचारिकताएं ही हो रही हैं । ‘

वहीं किसानों और गरीब बच्चों की समस्यायें ऐसी थीं, जो वास्तव में समस्याएं कहलाने लायक थीं । उनमें से सभी को मोबाइल फोन की बाध्यता , घरेलू कलह, भुखमरी और प्रताड़ना का सामना करना पड़ रहा था। लड़कियों और घर की महिलाओं से पता लगा कि उनके पति और पिता उनके स्वास्थ्य एवं शिक्षा पर अधिक ध्यान नहीं दे रहे हैं जिसके चलते उनका शारीरिक शोषण भी हो रहा है, साथ ही भावनात्मक स्तर पर उनका जीवन छिन्न – भिन्न हो गया है । ऐसे में किसी ने भी उनकी शिक्षा की ओर ध्यान नहीं दिया।    

अगर आप बदलाव लाना चाहते हैं तो किस तरह का बदलाव चाहिए?

मैंने बदलाव के सुझावों पर बात शुरू की तो पता चला कि 50% शहरी बच्चों को उनकी शिक्षा पद्धति में कोई बदलाव ही नहीं चाहिए। उनकी शिक्षा पद्धति की स्थिति उनके अनुसार सही चल रही है। उन बच्चों का कहना है कि मार्च के बाद हमारी जो भी परीक्षाएं हुई उनमें हमने अपनी थोड़ी सी भी मेहनत नहीं की, सिवाए लिखने के।

इन्हीं बच्चों में से कुछ ने बताया कि नकल करने में इन बच्चों ने अपने भाई-बहनों का सहारा लिया। यह बात तो और आश्चर्यजनक तब लगी जब पता चला कि अभिभावकों ने भी बच्चों को नकल करवाने में कोई कसर नहीं छोड़ी ।

दसवीं कक्षा के छात्र सनी ने अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा  ‘ सरकार हमारे लिए कुछ नहीं कर पा रही। सरकार ने खुद को शिक्षा से दूर कर लिया है। कोरोना महामारी के दौरान ऑनलाइन क्लास लेना ही काफी नहीं है। सरकार को प्रभावशाली कदम उठाने चाहिए। ‘

किसानों के बच्चों ने कहा स्कूलों को खोल देना चाहिए। सरकार को नई गाइडलाइंस बनानी चाहिए। दसवीं और बारहवीं कक्षा के छात्रों को स्कूल में बुलाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा हमारे पास कोई ऐसा साधन नहीं जिससे हम ऑनलाइन क्लासेस कर पाएं। हमको नहीं पता है कौन सा सिलेबस जोड़ा गया है और कौनसा हटाया गया है। हमारे बोर्ड के एग्ज़ाम करीब हैं, हमको चिंता है। हम क्या करेंगे परीक्षा में ! हमारे पास कोई साधन नहीं है ।

उपरोक्त सारे सवालों और जवाबों के बाद यह बात सामने आई कि गरीब बच्चों को अपनी किताबों तक के नाम नहीं पता। उनको पता ही नहीं कि कौन सा सिलेबस आएगा ?

एक महिला किसान राजबीरी जी से बात हुई तो उन्होंने इस के लिए सरकार को ही दोषी माना। उन्होंने बताया कि ‘ छोटे बच्चों को स्कूल खुलने पर उन्हें खाना तो मिल जाता था। उस समय हमें उनके दो वक्त की रोटी की चिंता नहीं होती थी। हम बिना सब्ज़ी के रह सकते हैं। मगर बच्चों को पानी में चीनी मिलाकर कब तक देंगे। ‘

अब जब सरकार ने स्कूलों को बंद कर दिया है जिससे न तो हमारे बच्चों को सही शिक्षा मिल पा रही है और न ही खाना। इस वजह से बच्चों के शिक्षा और स्वास्थ्य की स्थिति गिरावट की तरफ है।

यह महज़ एक शोध था। शिक्षा पद्धति एवं प्रबंधन को जानने के लिये कि  ‘ ऑनलाइन शिक्षा से बच्चों को क्या नुकसान हो रहे हैं। स्कूल अपनी मनमानियों पर अडिग हैं । सरकार को ओछी राजनीति करने से कोई फर्क नहीं पड़ रहा है । शिक्षा अपने क्षेत्र में पहले से ही जर्जर हालत में हैं। कोरोना काल के दौरान इसकी हालत और बद से बदतर हो चुकी है। इन बच्चों का लगभग पूरा साल बर्बाद हो चुका है। ‘

कहते हैं समय ही मूल्य है। इसका सदुपयोग करें। इनके समय को कौन वापिस लाएगा।

मैं पिछले 15 सालों से शिक्षा के क्षेत्र में अपना बेहतर देता आया हूं। लॉकडाउन के दौरान मुझे आर्थिक रूप से कमज़ोर बच्चों को अपनी सहायता देने का मौका मिला। इसी के आधार पर मेरा यह निरीक्षण बच्चों की जागरूकता को जानने के लिए रहा ।

 

 

 

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