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2021-2030 के दशक की वैश्विक शांति के सामने असली ख़तरा – वैश्विक भगवाकरण (हिंदुत्व)

वीएचपी और आरएसएस भारत को हिन्दू राष्ट्र 2002 में डिक्लेयर कर चुके हैं इसलिए आप ग़लतफ़हमी में जी रहे हैं अगर आपको लगता है कि आप भारतीय या इंडियन हैं. आप चाहे-अनचाहे हिंदुत्व राजतंत्र की प्रजा बन चुके हैं. अब आप जब हिन्दुत्ववादी आक्रान्ताओं से आज़ाद होंगे, तब शायद आप वापस भारतीय या इंडियन कहलायें.

आज हमारा देश हिन्दू तालिबान बनने से बस कुछ क़दम दूर रह गया है. आपके पास व्हाट्सएप, ट्विटर और फ़ेसबुक पे आपको जो मेसेज आते हैं उसमें आने वाले कल के ख़तरों का सिंग्नल साफ़ है. भारत जो अभी तक एक पूर्ण लोकतंत्र बना भी नहीं था, सरकारी लोग अब खुले आम बची-खुची लोकतंत्र की आत्मा को “टू मच डेमोक्रेसी’ कह रहे हैं. हमारे पास मात्र 4 साल रह गये हैं जो यह तय करेंगे कि भारत एक गणतंत्र के तौर पर इकठ्ठा रहेगा या सोवियत रूस की तरह अलग अलग हिस्सों में बंट जायेगा. उद्धव ठाकरे ने भी इस बात का अन्देषा जता दिया है. विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का बिखरना ऐसे ही शुरू नहीं हुआ इससे आप विश्व पर मंडराते संकट को भी देख सकते हैं. इस बेड़ागर्क के पीछे आप नरेंद्र मोदी, अमित शाह बीजेपी, गोदी मीडिया को ज़िम्मेदार ठहराकर बाक़ी वैश्विक हिन्दू कट्टरपंथियों की 125 सालों की मेहनत को इग्नोर करने की ग़लती मत कीजिये. जब तक आप इस 125 साल के कट्टरपंथी धाराप्रवाह को नहीं समझेंगे, आप इसके सामने आज की कोंग्रेस की तरह बौने साबित होते रहेंगे. तो आइये इसे समझते हैं.

आख़िर कौन है हिन्दू- जैसे सरयू नदी के एक ओर रहने वाले ब्राह्मणों को सरयूपारी कहा गया, उसी तरह सिन्धु नदी के इस पार रहने वाले सभी लोगों को कलेक्टिवली हिन्दू कह दिया गया. तो ‘हिन्दू कोई एक प्रकार का धर्म नहीं है बल्कि एक क्षेत्रवादी उपनाम है’ ये सिर्फ़ मैं नहीं हिंदुत्व के प्रोफेट सावरकर कहते हैं.

तो हिन्दू नाम हमें व्यापारियों और उपनिवेशवादियों ने उनकी सुविधा के हिसाब से दिया है. अगर वे यात्री हमें चुन्नू या मुन्नू कह देते तो हम ख़ुद को चुन्नू या मुन्नू कहने लगते. अब्राहमिक धर्मों के लोगों के आने से पहले सिन्धु घाटी के इस ओर पैदा हुआ कोई भी व्यक्ति चाहे वो बहुदेववादी, पंथीवादी, पैन्थेनिस्टिक, पाण्डिस्टिक, हेनोथेस्टिक, एकेश्वरवादी, अद्वैतवादी, अज्ञेयवादी, नास्तिक या मानवतावादी हो, वो हिन्दू कहला सकता है. आध्यात्मिकता और परंपराओं पर विचारों की विविधता इतनी विविधता को देखते हुए इसे हिन्दू धर्म कहना नहीं है. जब हिन्दू कोई धर्म न हो कर एक हिस्से में रहने वाले लोगों का सिर्फ़ उपनाम है तो धर्म की तो बात ही खत्म हो जाती है. बाक़ी धर्म की आज जो परिभाषा है हमें उस पर जाना होगा क्योंकि नैतिकता के सन्देश तो सभी धर्मों और सभ्यताओं में एक जैसे हैं. आपका धर्म तय होता है आपके बाप-दादा के पूजा करने के तरीकों और रिवाज़ों से.  

और फिर भी किसी को भी लगता हो कि वो 100% हिन्दू है या 100% मुस्लिम है या 100% सिक्ख या कुछ और वो अपना डीएनए टेस्ट ज़रूर करा ले. सबसे पहले तो ये टेस्ट हिंदुत्व के नाम पर भड़काने वाले नेताओं  और “गर्व से कहो हम हिन्दू हैं” वाले पेजेस को फॉलो करने वालों का हो. डीएनए हमें बताएगा कि पिछले कितने हज़ार सालों से तरह तरह के खून से मिलकर हमारे भूगोल ने हमें वैसा बनाया है जैसे हम अब दिखते हैं. दुनिया की कोई जाति या सभ्यता ऊंची-नीची नहीं. बाक़ी आपको आपके अविकसित समाज के जिस बेड़ागर्क से आपको दिक्कत है उसका ज़िम्मेदार डीएनए नहीं बल्कि जानकारी और चुनाव के प्रति आपके समाज का आलस और केपिटलिस्ट मौक़ापरस्ती  है. 

हिन्दू शब्द का प्रचलन और हिंदूइस्म- तो जैसा मैंने बताया सिन्धु घाटी की दूसरी तरफ़ से आये लोगों ने यहाँ की सभ्यता का नाम ‘सिन्धु घाटी सभ्यता’ रख दिया और यहाँ के लोग ‘हिन्दू’ कहलाने लगे. वर्ष 300 के समय ससानियन साम्राज्य के लोग पूरे नार्थ वेस्ट साउथ एशिया को हिन्दुस्तान कहा करते थे. ‘चैतन्य चरितामृत’ और ‘चैतन्य भागवत’ जैसे ग्रंथों ने 16 वीं शताब्दी और 17 वीं शताब्दी में “हिंदू धर्म” शब्द का इस्तेमाल विदेशी या बर्बर कहे जाने वाले मुसलमानों से हिंदुओं को अलग करने के लिए किया। 18 वीं शताब्दी के अंत की ओर यूरोपीय व्यापारी और उपनिवेशवादी  सामूहिक रूप से सभी भारतीय धर्मों को हिन्दू धर्म कहने लगे थे. हिंदूइस्म शब्द का इस्तेमाल राजा राम मोहन राय ने 1816-1817 के आसपास शुरू किया. अंग्रेज़ों को उस समय भारत में 200 साल हो गये थे और वे भारत की विविधता को खांचों में देखने के लिए उनके धर्म का इस्तेमाल करते थे. अंग्रेज़ों के हिसाब से देखा जाए तो उन्हें ऐसा करने से अपने गुलामों के लिए नीतियां बनाने में आसानी हो रही थी.

हिन्दू कट्टरपंथ(हिंदुत्व) की नींव- हिन्दू कट्टरपंथ यानि हिंदुत्व की शुरुआत चन्द्रनाथ बसु ने 1892 में की थी. संयोग देखिये इसके ठीक 100 साल बाद बाबरी मस्जिद काण्ड हुआ. 1894 में तिलक ने गणेशोत्सव को ग्रांड पब्लिक इवेंट बनाया. शिवाजी जो हिन्दवी संस्कृति के नेता थे उन्हें हाईजेक कर हिन्दू ह्रदय सम्राट बनाया और शिवाजी जयंती को भी ग्रांड इवेंट तभी बना दिया गया. तिलक ने यहाँ से गौ-पोलिटिक्स शुरू की और शिया मुस्लिमों के मुहर्रम को बोयकोट करने हिन्दुओं को भड़काना शुरू किया.

1900 में सावरकर ने ‘मित्र मेला’ संघठन बनाया था जिसे 1904 में “अभिनव भारत” नाम दिया गया. मुस्लिमों ने 1906 में ‘ऑल इंडिया मुस्लिम लीग’ बनाई तो हिन्दु अतिवादी नेताओं ने देखा-देखी में 1915 में ‘ऑल इंडिया हिन्दू महासभा’  शुरू कर दी. 1916 में हरियाणा में सनातन धर्म कोलेज खुला. सावरकर ने जेल से निकल कर 1923-24 तक हिंदुत्व का खुल कर प्रचार-प्रसार शुरू किया. इसे आगे बढ़ाने हेडगेवार ने हिन्दू महासभा से निकलकर 1925 में आरएसएस स्थापित कर दी. आप पूंछेंगे इस समय ये स्थापना क्यों हुई?  दरअसल प्रथम व द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान यूरोप में नाज़ीवाद और फ़ासीवाद से जन्मी रेसिस्ट विचारधारा पर आधरित अपनी संस्थाएं बनाई थी इसलिए आरएसएस ने हिन्दू रेस के आधार पर अपनी दुकान यहाँ खोल ली.

1926 में फ़िजी में मुस्लिम लीग की देखा देखी में हिन्दू महासभा भी स्थापित हुई.1940 में केन्या में भाऊराव देवरस और जगदीश शास्त्री ने हिन्दू स्वयंसेवक संघ बनाया जिसकी आज 34 देशों में 570 शाखाएं हैं. 1946 में जैसे ही हिंदुत्व ने मुस्लिम इलाक़े में पाँव पसारना शुरू किया, नोखेली दंगे शुरू हुए. 1947 में ओर्गनाईज़र मैगज़ीन की शुरुआत हुई. मक़सद था कि हिन्दू कट्टरपंथी विचारधारा रखने वाले लोगों तक पहुंचा जाए. अडवाणी इसके एडिटर्स में से एक थे.  1948 में आरएसएस पर बेन लग गया इसलिए आगे के कुछ साल नेहरुकाल में इनके दबे-छुपे बीते. 1960 में बाल ठाकरे के राईट हेंड कल्कि महाराज ने श्री राम सेना की स्थापना की.

गांधी हत्या में आरोपी गोलवलकर ने बड़ी सोची समझी रणनीति के तहत 1964 में विश्व हिन्दू परिषद् की स्थापना की. भारत से बाहर रहने वाले एनआरआई हिन्दू ज़्यादातर अमीर हैं. उनमें “सेन्स ऑफ़ बिलोंगिंग’ के चलते भारत के प्रति अपनत्व है. गोलवलकर जानते थे ये अपनत्व उन्हें वीएचपी की फंडिंग में काफ़ी मददगार साबित होगा.

1966 में न्यूयॉर्क में इस्कोन की और ब्रिटेन में एचएसएस की स्थापना हुई. इस्कोन पर इसके दस सालों के भीतर ही न्यूयॉर्क में बच्चों को ब्रेनवाश करने का आरोप लगा. अमेरिका में हिंदुत्व का असर तेज़ी से बढ़ा है. 1990 तक आते आते इन पर मर्डर , फ़िरोती और बच्चों के यौन शोषण जैसे आरोप लगे. 1966 में ही बाल ठाकरे ने अपनी हिंदुत्व आधारित पोलिटिकल पार्टी शिव सेना स्थापित कर दी.

1968 में इस्कोन के हेड स्वामी प्रभुपाद ने गीता का एक ट्रांसलेशन किया था. वही प्रभुपाद जिन्होंने कहा था कि औरतों को रेप करने वाले पुरुष पसंद होते हैं. ज़्यादातर हिन्दू घरों में गीता का ये वर्ज़न आपको मिल जायेगा. प्रभुपाद के इस वर्ज़न पर 2011 से रसिया में धार्मिक कट्टरपंथ को बढ़ाने का केस चला लेकिन पूरी दुनिया के हिन्दुओं ने रशिया पर प्रेशर बनाया और रशियन कोर्ट को प्रभुपाद के पक्ष में फ़ैसला देना पड़ा. और तो और इसी प्रेशर के चलते मोस्को में 5 एकड़ का एक मंदिर भी बना दिया गया.

नोर्थ अमेरिका में 1970 में वीएचपी स्थापित की गई. भिवंडी में हिन्दू-मुस्लिम दंगे हुए जिनमें शिव सेना का नाम खुले तौर पर आया. ख़ास तौर पर इमरजेंसी के समय जब आरएसएस पर भारत में बेन लगा था तब आरएसएस ने विश्व के सारे हिन्दुओं और ख़ास तौर पर एनआरआई हिन्दुओं को हिंदुत्व की तरफ़ झुकाना शुरू किया.

1975 में जहाँ ‘इंडिया टुडे’ स्थापना हुई, वहीं 1979 में ‘हिन्दुइस्म टुडे’ ग्रुप की शुरुआत हुई. इनकी एक और संस्था हिमालयन एकेडमी हवाई आईलेंड में बसी है. इसके ओफ़िस अमेरिका और कनाडा में भी है. भारत में 1984 में सिक्ख नरसंहार हुआ, इसी साल भिवंडी में फिर हिन्दू-मुस्लिम नरसंहार हुआ जिसमें फिर शिव सेना का नाम आया.  1984 में ही बजरंग दल की स्थापना हुई जिनका मुख्य काम लड़के लड़कियों को प्यार करने से रोकना, इंटर-कास्ट, हिन्दुओं से मुस्लिमों और ईसाईयों की शादियाँ रोकना है.

अमेरिका में 1989 में एचएसएस स्थापित हुआ.1989-1992 में सोवियत रूस के टुकड़े टुकड़े हो गये. इससे हिंदुत्ववादियों के हौसलों को बड़ा बल मिला उन्हें लगा कि अब वे भी हिंदी प्रदेशों को भारत से अलग कर हिन्दू तालिबान बना सकते हैं. इसी के चलते 1991 में बाबरी विध्वंश के एक साल पहले अमेरिका में ‘हिन्दू स्टूडेंट्स काउंसिल’ बनी.

1992 में बाबरी काण्ड किया गया. 1992 में नेपाल में एचएसएस पहुंचा और उनकी नेपाल को वापस हिन्दू राष्ट्र बनाने की कोशिशें ज़ारी हैं. 1992-1993 में मुंबई नरसंहार शुरू हुआ. 1996 में इटालियन हिन्दू यूनियन की स्थापना हुई जो इटालियन मूल लोगों को हिन्दू धर्म धर्म में कन्वर्ट कराती है.

फिर वाजपयी कार्यकाल में पहली बार हिन्दुत्वादियों को खुल्ली छूट मिली और इसका उन्होंने पूरा इस्तेमाल किया. 1999 में नेपाल में शिव सेना पार्टी स्थापित की गई और गोवा में सनातन संस्था की स्थापना हुई. गुजरात में नरेंद्र मोदी और अमित शाह के चलते 2002 नरसंहार किया गया. इसी साल हिन्दू जनजागृति समिति की स्थापना गोवा में हुई जिसका इकलौता हिन्दू राष्ट्र स्थापित करना है.  और वहां अमेरिका में हिंदुत्व को तेज़ करने 2003 में ‘हिन्दू अमेरिकन फाउंडेशन’ बनी. इस संस्था में ऐसे कई लोग शामिल किये गये जिन्होंने स्कूल, कोलेज के दौरान संघ परिवार की शाखाएं अटेंड की थी और जो हिन्दू रेस की सुपीरियरटी पर यकीन रखते हैं. मिहिर  मेघनानी इस संस्था के संस्थापक सदस्य हैं. उन्होंने ‘हिंदुत्व- द ग्रेट नेशनलिस्ट आइडियोलजी’ नाम का निबंध भी लिखा. नरेंद्र मोदी से उन्हें काफ़ी प्रशंसा भी मिल चुकी है. जैसे ही ये बातें सामने आई थी 2006 में ये निबंध बीजेपी ने अपनी साईट से हटा लिया था.

2006 में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना शुरू हो गई. 2006 में ही रामदेव के पतंजलि योगपीठ की स्थपना हुई जिसने स्वदेशी और शुद्ध उत्पादों के नाम पर आपको बेवक़ूफ़ बनाना शुरू किया. 2007 में समझौता एक्सप्रेस और अजमेर शरीफ में धमाके होने लगे. 2007 में बंगाल में हिंदुत्व बढ़ाने हिन्दू संहति पार्टी बनाई गई.  2008 में मालेगांव धमाका हुआ जिसमें फिर हिन्दुत्ववादियों को हिरासत में लिया गया. ठाणे और वाशी में धमाके से पहले सनातन संस्था के 6 लोगों को हिरासत में ले लिया गया.  खैर 2008 तक विश्व हिन्दू परिषद् में क़रीब 70 लाख़ लोग ओफ़िसियली जुड़े चुके थे.

2009 में अजित डोबाल ने विवेकानंद फाउंडेशन शुरू की. 2011 में हिन्दू सेना (जिन्होंने डोनाल्ड ट्रंप की जीत के लिए सार्वजानिक प्राथनाएं की थी) की स्थापना हुई.  इसी ऑर्गनाइजेशन ने अन्ना हजारे, अरविन्द केजरीवाल, किरण बेदी और बाबा रामदेव को 2012-2013 के कोंग्रेस विरोधी आन्दोलन के लिए इकठ्ठा किया था. 2012 में गौ रक्षक दल बना, इसी की वजह से आज आप गाय के नाम पर खुलेआम लिंचिंग्स दे रहे हैं. 2013 में हिंदुत्ववादियों ने अंधविश्वास विरोधी आन्दोलनकारी दाभोलकर की हत्या कर दी. 2014 में इस आन्दोलन के चलते मोदी सरकार बनी और अजित डोबाल को एनएसए के पद से नवाज़ा गया. 2014 में मोदी सरकार आते ही आरएसएस अनाउंस कर चुकी है कि ये अपनी शाखाएं अब मोस्ट डेवलपड और पीसफुल कंट्रीज़ में खोलेगी जहाँ नास्तिकों की संख्या सबसे ज़्यादा है इस लिस्ट में हैं फिनलेंड, नोर्वे, डेनमार्क, नोर्वे, नीदरलैंड्स, फ़्रांस और इटली. 2015 में हिन्दुत्ववादियों ने पंसारे और कलबुर्गी की हत्या कर दी. केरल में हिंदुत्व फ़ैलाने भारत धर्म जन सेना स्थापित कर दी गई है.  

2016 में श्रीलंका में शिव सेना पार्टी स्थापित हुई.  2017 में लाइबेरिया में एचएसएस शुरू हुई और यहाँ भारत में गौरी लंकेश की हत्या हुई.  2018 में सनातन संस्था में काम करने वालों के घर से बेइंतहा गोला-बारूद और असला बरामद किया गया लेकिन कोई ख़बर नहीं बनी. इस संस्था के 4 लोग आतंकवाद के आरोप लगे.

2019 में सुप्रीम कोर्ट ने हिन्दूमहासभा के पक्ष में बाबरी काण्ड का फ़ैसला किया और हिन्दू महा सभा ने बाबरी के दौरान मरे कारसेवकों को शहीद का दर्जा देने की मांग कर डाली. यह मांग भारत के संवेधानिक तौर पर हिन्दू राष्ट्र बनते ही पूरी हो जाएगी. अब 2024 में भारत के हिंदी प्रदेशों का एक बड़ा हिस्सा हिंदुत्व राष्ट्र बनने से मात्र 4 साल दूर रह गया है. एनआरसी और सीएए इसी तैयारी का हिस्सा है कि उनके 100 साल पूरे होने से पहले हिंदुत्व राष्ट्र स्थापित कर दिया जाए.

हिंदुत्व राष्ट्र के वैचारिक आधार- दीन दयाल उपाध्याय ने ‘इंटीग्रल ह्युमनिस्म’ नाम की एक पोलिसी दी जो भाजपा और संघ डोक्त्रिन है. बेसिकली इसमें गाँधी जी ने सर्वोदय, स्वदेशी और ग्राम स्वराज के कोंसेप्ट को उपध्याय ने अपने ढंग से पेश कर दिया. रिचर्ड फ़ॉक्स ने आइडोलोजिकल हाईजेकिंग कहा था. इस पोलिसी का मुख्य उद्देश्य जनसंघ की ‘सांप्रदायिक’ छवि बदल कर इसे समाज में समानता की पक्षधर आध्यात्मिक संस्था के तौर पर पेश करना था. इसी के चलते स्वामी विवेकानंद, भगत सिंह, शिवाजी, आज़ाद, सरदार पटेल को संघ हमेशा से हाईजेक करता आया है. संघ को इससे समाजवाद और केपिटलिस्म के बजाय एक नया शब्द मिल गया, भले ही दिखाने के लिए ही सही. इससे ये नेहरु की पोलिसी की इंडस्ट्रीलाइज़ेशन की इकोनोमिक पोलिसीज़ का विरोध किया करते थे.

लेकिन मेजोरिटी से सत्ता में आते ही आप देखिये, कंस्यूमरिस्म और केपेटलिस्म की इन्तहा आपको आज के भारत में देखने मिल रही है. इससे रिचर्ड फ़ॉक्स की बातें बिलकुल सही साबित होती हैं.

पाकिस्तान बनने में हिन्दू कट्टरपंथ का हाथ- आज जो हिन्दुत्ववादी संघठन लाहौर करांची, गिलगिट, में भगवा लहराने की बात करते हैं, ज़रा उनका इतिहास देखिये. पाकिस्तान बनने की एक बड़ी वजह हिन्दुत्ववादी नेता रहे हैं. हिन्दू महासभा के मुख्य कामों में से एक था हिन्दुओं को सेक्युलर देश की विचारधारा की तरफ़ जाने से रोकना और मुस्लिमों के प्रति भड़काना. हिन्दू महासभा ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में साथ देने से साफ़ मना कर दिया था.

1937 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ गठबंधन से ही तो मुस्लिम लीग सत्ता में आई थी सावरकर ने भी इनसे हाथ मिला लिया. उन्होंने अंग्रेज़ों से वादा जो किया था हमेशा उनका गुलाम बने रहने का. मुस्लिम लीग से हाथ मिलाने का फ़ायदा मुखर्जी को मिला, उन्हें 1939 में हिन्दू महा सभा के प्रेसिडेंट पद से नवाज़ा गया. 1940 में जिन्ना और सावरकर दोनों ने ‘टू नेशन थियोरी’ का खुल कर समर्थन किया था. अब आप मज़ेदार बात देखिये एक तरफ़ 1941 में मुखर्जी ने बयान दिया जो मुस्लिम पाकिस्तान चाहते हैं वे अपना सामान बाँध के इस देश से निकल जाएँ और दूसरी तरफ़ पाकिस्तान की मांग उठाने वाले मुस्लिम लीग से नार्थ वेस्ट फ्रंट पर इनका गठबंधन था. 1946 में मुखर्जी ने बंगाल के बंटवारे की मांग की थी. उन्हें डर था कि ईस्ट पाकिस्तान एक सेक्युलर राज्य न बन जाए. सुभाष चन्द्र बोस के भाई ने ये मांग रखी थी लेकिन हिन्दू महासभा ने इसका खुल कर विरोध किया.

अंग्रेज़ों की नौकरी करने वाले भारतीय अपनी नौकरी छोड़ कर स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो रहे थे लेकिन हिन्दू महासभा ने उनसे कहा कि वे ऐसा न करें और अंग्रेज़ों की नौकरी करते रहें. सिंध हिन्दू महासभा ने खुल कर मुस्लिम लीग के पाकिस्तान क्रियेशन का समर्थन किया और मुस्लिम लीग के औरंगज़ेब खान के साथ मिलकर नार्थवेस्ट फ्रंट में सरकार भी बनाई.

गांधी जी और कांग्रेस के असर के कारण अनुशीलन समिति ने भी,जो एक मिलिटेंट आन्दोलनकारी संघ और बमबारी, हत्या, राजनीतिक हिंसा सहित उग्रवादी राष्ट्रवाद में यकीन रखता था, हिंसा का रुख छोड़ दिया था. अनुशीलन समिति के कारण ही अंग्रेज़ों ने रोलेट एक्ट बनाया था वही जो आज का उपा क़ानून है.     

हिंदुत्व का जनसँख्या-क्षेत्रवाद तिलक के मुताबिक आर्यन्स नार्थ पोल से आकर यूरोप और एशिया में सेटल हुए और गोलवलकर के हिसाब से नार्थ पोल 10000 साल पहले भारत में था और वेद यहाँ लिखे गये. हिन्दुत्ववादियों की पूरी कोशिश है कि किसी भी तरह वैज्ञानिक थियोरीज़ से ये साबित कर दिया जाए. ताकि ये साबित हो सके ये साउथ एशिया का इलाक़ा सिर्फ़ हिन्दुओं का है. इसी हिस्से को वो अखंड भारत कहते हैं. इनके हिसाब से मिडिल ईस्ट मुस्लिमों के लिए है.

और एक बात इनके हिसाब से, जो भी अलग अलग धर्म एशिया महाद्वीप में बने हैं जैसे बौद्ध, सिक्ख, जैन और न जाने कितने सारे. ये धर्म अलग नहीं हैं बल्कि हिन्दू धर्म का ही हिस्सा हैं’ अब आप समझिये ये क्षेत्रवादी राजनीतिक नज़रिया क्यों है?

दुनिया में क़रीब 32% ईसाई हैं, मुस्लिम क़रीब 23% है, हिन्दू 15% हैं, बौद्ध 7% हैं,  सिक्ख 0.3% हैं और जैन 0.05% हैं. हिन्दुत्ववादी बौद्ध, जैन सिक्ख और हिन्दूओं को मिलाकर हिंदुत्ववाद के वर्ल्ड डोमिनेशन की साज़िश में 24 घंटे लगे हैं क्योंकि इनकी संख्या मिलाकर ये मुस्लिमों को संख्या में पछाड़ देंगे. बाक़ी इस्कोन जैसी संस्थाएं ईसाईयों और यूरोपियन्स को कन्वर्ट कर उन्हें हिन्दू बनाने में लगी हुई हैं ही.       

हिंदुत्व ग्रंथ- स्कोलर्स वेद, विज्ञान, इतिहास, नागरिकता पढ़ते हैं लेकिन धार्मिक लोग रोज़ पूजा-अर्चना के नाम पे अपने अपने धर्मों का रट्टा मारते हैं. इससे अगर उन्हें शांति मिलती है इसमें कोई गुरेज़ नहीं.  

भारत के हिन्दुत्ववादी सबसे गये गुज़रे हैं. इनको क़िताबों से ही दिक्कत है. ये बस इनके आज कल के आका व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी पर प्रोपेगेट करें, उसे ही परम सत्य मानते हैं और आँख मूँद कर चल देते हैं. क़िताबें पढने की बात करो तो इनका टका-टकाया जवाब है कि हिन्दू धर्म तो सुनने और याद रखने पर आधरित है, पढ़ने पर नहीं.

फिर भी आपको हिन्दुत्ववाद को गहराई से समझना और किसी हिन्दुत्ववादी की समझ जानना हो तो उससे मनुस्मृति, बंच और थौट्स, हिंदुत्व और हिन्दू राष्ट्र दर्शन  पढने कहिये.

हिंदुत्व और फ़ेक बाबाओं का दौर- ऑल इंडिया अखाड़ा परिषद् ने एक लिस्ट ज़ारी की है जिसमें इस दौर के सारे फ़ेक बाबाओं के नाम हैं. इस लिस्ट में सबसे ऊपर हिन्दू महासभा के प्रेसिडेंट चक्रपाणी का नाम है. दूसरा नाम है कल्कि फाउंडेशन के प्रमोद कृष्णम का. आशाराम, राधे माँ, सच्चिनंद गिरी, निर्मल बाबा, भीमानंद, असीमानंद, नारायण साईं, खुशमुनी, ब्रहस्पति गिरी, मलखान सिंह और राम रहीम के नाम हैं. इनकी एक और लिस्ट है जिसमें वीरेंद्र दीक्षित, रामपाल, स्वामी ओम, सच्चिनानन्द सरस्वती, स्वयंभू महामंडलेश्वर, त्रिकाल भवंता, फलाहारी बाबा के नाम हैं

इसी लिस्ट में आप प्रज्ञा ठाकुर, सत्य साईं बाबा, धीरेन्द्र ब्रह्मचारी, ओशो, महेश योगी नित्यानंद, रामदेव, बालकृष्ण, चन्द्रास्वामी, अमृतानन्दमयी माँ और लड्डू वाले बाबा को जोड़ लीजिये. आखिर सेक्रेड गेम्स् ऐसे ही तो बनी नहीं है. इन बाबाओं का मुख्य काम रहा है लोगों को वैज्ञानिक दृष्टिकोण की ओर न जाने दे कर स्प्रिचुअलिटी के नाम पर अन्धविश्वास के साथ हिंदुत्व का डोज़ देते रहना.  

हिन्दुत्ववादियों के दकियानूसी महापुरुष-  

लोकमान्य तिलक- तिलक जैसे लोग ही थे जो भारत की भाषायी विविधता को खत्म कर हिंदी पूरे देश में थोपना चाहते थे. पाकिस्तान के क़ायदेआज़म जिन्ना, तिलक के वकील थे. विज्ञान का दौर आ रहा था और तिलक पुरातनपंथी हिंदुत्व रीति रिवाज़ों के पीछे तर्क स्थापित करने में लगे थे जिससे उन्होंने ज़्यादातर गैर-हिंदुओं को अलग करने में सफलता मिली.  ख़ास तौर पर इससे मुस्लिमों में अलगाववादी नेता बढ़ने लगे.

तिलक समाज में आ रही आज़ाद ख्याली के पूरी तरह खिलाफ थे. वे देश में लड़कियों के पहले हाई स्कूल के सख्त ख़िलाफ़ थे. हिन्दू औरतों के मॉडर्न एडुकेशन के तिलक ख़िलाफ़ थे. तिलक के हिसाब से औरतें सिर्फ़ बच्चे, पति और घर संभालने के लिए बनी हैं. वे अंतरजातीय शादियों के खिलाफ थे, ख़ास तौर पर ऊंची जाति की औरतों के नीची जाति के मर्दों से शादी के. तिलक ने महाराष्ट्र के तीन ख़ास ब्राह्मण समाजों को सिर्फ़ आपस में विवाह करने का प्रचार किया. तिलक कन्सेंट बिल के भी खिलाफ थे जिसमें 12 साल से कम उम्र की लड़कियों से उनकी मर्ज़ी के बिना शादी का प्रावधान था. पारसी सोशल रिफोर्मर बहरामजी ने जब कंसेंट बिल का समर्थन किया तो तिलक ने कहा कि पारसियों को हिन्दुओं के मामलों में बोलने की आज़ादी नहीं है.

जब एक 11 साल की लड़की फुल्मानी बाई की पति(उम्र में काफ़ी बड़े) के साथ सेक्स के दौरान मौत हो गई तो तिलक ने कहा कि फुल्मानी बाई के जननांगों में ही कोई डिफेक्ट होगा वर्ना सेक्स से किसी की मौत कैसे हो सकती है. फुल्मानी बाई को उन्होंने प्रक्रति का एक ख़तरनाक प्राणी बताया था. छुआछूत के ख़िलाफ़ क़ानून पर तिलक ने साइन तक करने से साफ़ इनकार कर दिया था.

सावरकर- सावरकर जो ख़ुद एक नास्तिक थे ने आस्तिक गाँधी की हत्या के कई प्रयास करवाए लेकिन सबूतों के अभाव में उन्हें छोड़ दिया गया. यूं भी कहा जाए कि गोडसे जैसे व्यक्तियों को इस तरह ब्रेनवाश किया गया था कि अदालत में कभी उसने सावरकर का नाम नहीं लिया. ये बिल्कुल वैसा है जैसे कोई जेहादी आतंकी ख़ुद मर जाता है लेकिन अपने प्लानर का नाम नहीं उगलता. 12 साल की उम्र में सावरकर ने बड़े गर्व से एक मस्जिद में तोड़फोड़ की थी. जेल से निकलने के बाद अंग्रेज़ों ने सावरकर को एक बंगला रहने दिया था जहाँ लोग उनसे मिलने आते थे गाँधी और अम्बेडकर भी उसी बंगले पे उनसे मिले थे. गोडसे भी उसी बंगले पे सावरकर से मिलने आया था. हिंदुत्व की क़िताब सावरकर ने उसी बंगले पर पूरी की थी. नेहरु से हिन्दुत्ववादियों को इसलिए भी दिक्कत है क्योंकि नेहरु ने सावरकर के साथ स्टेज तक शेयर करने से मना कर दिया था और सावरकर की मौत पर तबकी महाराष्ट्र कोंग्रेस गवर्मेन्ट ने शोक व्यक्त करने में कोई रूचि नहीं ली थी. सावरकर के लिए ईसाई और मुस्लिम अखंड भारत के लिए मिसफिट रहे. हालाँकि सावरकर जातिगत भेदभाव और छुआछूत के ख़िलाफ़ बोला करते थे लेकिन उसने कभी जातिगत भेदभाव ख़त्म करने के अम्बेडकर या गाँधी के तरीक़ों का समर्थन नहीं किया. सावरकर ने एक ईसाई परिवार के 8 सदस्यों को वापस ब्राह्मणों में रिकन्वर्ट कराया था. सावरकर का मकसद था सिर्फ़ ईसाईयों और मुस्लिमों को अखंड भारत से दूर कर देना वे धर्म के पक्ष नहीं, हिन्दू रेस के पक्ष में थे.

सावरकर हिटलर, फ़ासिस्म और नाज़िस्म के खुले समर्थक थे. सावरकर ने साफ़ साफ़ कहा था कि ‘अगर भारत में हम हिंदू समय के साथ मजबूत होते हैं, तो मुस्लिमों जर्मन यहूदियों वाला हश्र होगा’. यही सावरकर इज़राइल में यहूदी स्टेट के समर्थक भी थे. सावरकर पुलीस और आर्मी में मुस्लिमों के होने के ख़िलाफ़ थे. जैसे ही भाजपा सत्ता में आई, अटल बिहारी ने सबसे पहले इन सावरकर के नाम पर एअरपोर्ट खुलवा दिया और संसद में भी सावरकर स्थापित हो गये. प्रोपेगेंडा का इन्तहा ये है कि अटल बिहारी के समय में ही सावरकर की बायोपिक रिलीज़ हो गई.

गोलवलकर- गाँधी हत्या में एक और व्यक्ति का नाम आया था, जो थे गोलवलकर, बंच ऑफ़ थॉट्स के लेखक, धर्म पर आधारित टू नेशन थियोरी का सबसे बड़े समर्थकों में से एक, भड़काऊ भाषण देने में एक्सपर्ट. मनु स्मृति के मनु को ये दुनिया का सबसे बुद्धिमान क़ानूनविद मानते थे. गोलवलकर जातिवाद के खुल्ले समर्थक थे. गोलवलकर की विचारधारा ही वह विचारधारा है जिस पर मोदी शाह योगी जैसे लोग सत्ता में बैठ अमल फरमा रहे हैं. गोलवलकर के हिसाब से ईसाई, मुस्लिम और कम्युनिस्ट राक्षस हैं.   

मुखर्जी- मुखर्जी ने भारत छोड़ो आन्दोलन के खुल कर विरोध किया. ज़ाहिर है वे अंग्रेज़ों के साथ मिलकर सरकार बनाना चाह रहे थे. मुखर्जी अपनी इमेज ठीक करने के लिए गाँधी-हत्या के बाद हिन्दू महासभा से थोड़ा दूर हो गये और बाद में वक्त के हिसाब से हिन्दू महासभा में नॉन-हिन्दू लोगों को जोड़ना भी चाह रहे थे लेकिन हिन्दू महासभा ने ऐसा होने न दिया.  तो 1951 में इन्होने भारतीय जन संघ बना लिया जो कि वास्तव में नॉन-हिन्दुओं यानी कि सिक्ख, जैन और बौद्ध लोगों को हिन्दू-राष्ट्रवाद में जोड़ने के लिए था. मुख़र्जी ने कभी नागालेंड में धारा 371 के प्रति अपना विरोध दर्ज नहीं किया लेकिन कश्मीर चूंकि मुस्लिम बहुल इलाक़ा था इसलिए धारा 370 के धुर विरोधी रहे.

गोडसे- आज़ाद भारत का पहला आतंकवादी हिंदुत्ववादी जिसे शहीद मानते हैं. किसी भी सुसाइड बोम्बर और गोडसे की सोच में अंतर कर पाना लगभग नामुमकिन है. हिंदुत्ववादियों ने एक डॉक्युमेंट्री फ़िल्म भी बनवाई है है जिसका नाम है ‘देशभक्त गोडसे’ और  गाँधी हत्या को ये ‘शौर्य दिवस’ के नाम से सेलिब्रेट करते हैं.

मूंजी- तिलक के समर्थक मूंजी, सावरकर के साथ जाकर अम्बेडकर को सलाह दिया करते थे कि वे यहूदी, ईसाई या इस्लाम में कन्वर्ट न हों. मूंजी अहिंसा और धर्म निरपेक्षता के भी ख़िलाफ़ थे. मूंजी इटली जा कर मुसोलिनी से मिले और आरएसएस के यूनिफ़ॉर्म से लेकर सभी चीज़ों के पीछे विचारधारा में मूंजी का ही हाथ है.

दयानंद सरस्वती– तिलक से पहले दयानंद ही थे जो आर्यन रेस की सुपीरियरटी का परचम लहराते थे. पुनर्जन्म जो बेसिकली एक जातिवादी कोंसेप्ट है, दयानन्द ने इस अंधविश्वास का ख़ूब प्रचार किया. इनका काम था बाक़ी सभी धर्मों की कमियों के प्रचार की आड़ में हिन्दू कथाओं की कमियों को छुपाना. गुरु नानक को ये ठग बताते थे. जैनिज़्म को ये भयानक धर्म बताते थे. बौधिस्म को ये हास्यास्पद बताते थे. 1875 में आर्य समाज की स्थापना के साथ “शुद्धि” के ज़रिये दुसरे धर्मों से वापस हिन्दू धर्म में कन्वर्ट कराने का प्रोग्राम शुरू हुआ लेकिन शंकराचार्य की माने तो ये ईसाईयों और मुस्लिमों को शुद्दी के नाम पर हिन्दू धर्म में आने के लिए बरगलाते थे.

अब बताइए ऐसी घटिया दकियानूसी सोच वाले व्यक्ति की जयंतियां आरएसएस धूम धाम से मनाती है. लोकमान्य तिलक के बेटे श्रीधर तिलक, जो अम्बेडकर के साथ कंधे से कन्धा मिलकर आगे बढे, उन्हें आरएसएस कभी पूंछती भी नहीं है. संत रविदास से भी इनको दिक्कत है क्योंकि किसी भी जाति और धर्म का व्यक्ति रविदासिया बन सकता है. इसलिए ये संत रविदास की मूर्तियाँ तोड़ते फिरते हैं.  

हिन्दुत्ववादियों के मुद्दे- संघ परिवार का स्लोगन कहता है ‘जो हिन्दू धर्म का बचाव करेगा उसका बचाव हिन्दू धर्म करेगा”. संघ परिवार का मुख्य लक्ष्य है ऐसे लोगों की तलाश करना जो हिन्दू धर्म के बचाव के लिए मर मिटने तैयार हों. इनका मानव विकास के किसी भी मुद्दे दूर-दूर तक कोई लेना देना नहीं.

इनके प्रमुख मुद्दे हैं अम्बेडकर को हिन्दू नेशनलिस्ट, कोंग्रेस विरोधी साबित करना, आरक्षण खत्म करना ताकि वापस घोर ब्राहमणवाद वापस लाया जा सके, हिन्दू कोड बिल का विरोध करना, आरएसएस का आज़ादी में योगदान साबित करना, एनसीआरटी क़िताबों से सेक्युलरिस्म हटाना.  जो हिन्दू धर्म से ऊपर मानवतावाद को रखते हों उन्हें नक्सली, कम्युनिस्ट साबित करना, दुनिया के सभी हिस्सों में हो रहे हिन्दुत्ववादियों या भगवा आतंकवाद की साज़िश का बचाव करना, उसे जस्टिफाई करना और दुसरे देशों ख़ास तौर पर मुस्लिम देशों में मायनोरीटीज़ पर हो रहे अन्याय का प्रचार कर, भारत देश में जातिवाद और धर्म के नाम पर हो रहे अन्याय को दबाना, मस्जिद तोड़ कर मंदिर बनाना,  एक जानवर जिसे गाय कहते हैं उसके मांस सेवन पर हाहाकार करना और गौमांस के आयात-निर्यात को पूरी तरह पाने कब्ज़े मे करना.

बाक़ी इनके दुसरे अहम् मुद्दों में हैं सरस्वती नदी का रूट पता करना, आर्यन माइग्रेशन थियोरी को ग़लत साबित करना, महाभारत, शंकराचार्य और बुद्ध के समय की असली तिथि पता करना, इंटरनेट का भरपूर उपयोग कर के पुराणों का प्रचार-प्रसार करना, रामसेतु के निर्माण को रामायण के अनुसार साबित करना. 1985 में इन्होने क्रिसमस का रिप्लेसमेंट पंच गणपति दे दिया. ये 5 दिनों का बिलकुल क्रिसमस वैसा हिन्दू त्यौहार है. क्रिसमस को तुलसी दिवस के रूप में मनवाना चाहते हैं. 

1998 में वाजपयी कार्यकाल शुरू होते ही संस्कृत रिवाइवल की कोशिशें शुरू की गई हैं. इसी के चलते उत्तराखंड और हिमांचल प्रदेश में संस्कृत दुसरे नंबर की भाषा बना दी गई. अब भले ही 99% हिन्दुत्ववादियों को ख़ुद संस्कृत न आये लेकिन ये संस्कृत को वापस मैनस्ट्रीम में लाना चाहते हैं.

धर्मान्तरण, जातिवाद और ब्राहमण-बनिया वर्चस्व- धर्मांतरण हिन्दुत्ववादियों के सबसे प्रमुख मुद्दों में से एक है. 2004 तक वीएचपी क़रीब 13000 लोगों को वापस हिन्दू बना चुकी है.1939 में शंकराचार्य ने इसका कड़ा विरोध किया था क्योंकि मुस्लिमों और ईसाईयों को शुद्धि का पाठ पढ़ा कर हिन्दुओं में कन्वर्ट किया जा रहा था. लेकिन कट्टरपंथी लोजिक की बात सुनते कहाँ हैं. 2015 हरियाणा के एक चर्च में तोड़फोड़ को वीएचपी ने 1857 की लड़ाई जैसा बताया था. इनके धर्मांतरण का उद्देश्य लोगों को मानवतावादी नैतिकता के पाठ पर चलाना नहीं बल्कि जिन लोगों को हिंदूइस्म के जातिगत भेदभाव, छुआछूत, अन्धविश्वासी रवैये, अवैज्ञानिकता और दकियानूसीपन से दिक्कत है उन्हें दुसरे धर्म में जाने से रोकना है.

भारत में आरक्षण आज भी उस ढंग से लागू नहीं हो पाया जैसा संविधान में लिखा गया है. जातिवाद भेदभाव के चलते एससी, एसटी और ओबीसी की समाज में स्थिति वैसी की वैसी है. आज भी ब्राहमण ब्राह्मणों या ज़्यादा से ज़्यादा बनिया जातियों में शादियाँ करते हैं. इसका बड़ा कारण एक तो उनका सम्मान है और दूसरा उन्हें बाक़ी जातियों में दहेज़ न मिलना भी है. हिन्दुत्ववादियों की पूरी कोशिश है कि आरक्षण खत्म कर दिया जाए ताकि जो स्थिति थोड़ी बहुत बेहतर हुई है वो वापस पहले से बेहतर हो जाये और किसी भी डिसीज़न लेने वाले पद पर ओबीसी, एसटी और एससी के लोग न बैठ पायें. दबाई गई जातियां इसीलिए सिक्ख, बौद्ध, ईसाई या इस्लाम में अपना धर्म परिवर्तन कर लेती हैं लेकिन इससे उनके आसपास का समाज उन्हें स्वीकार नहीं करता. और ग़लती से ख़बर हिन्दुत्ववादियों को लग  गई तो फिर तो उनकी खैर ही नहीं. हिन्दुत्ववादियों को एक हिस्से में दंगा फ़ैलाने का बड़ा कारण मिल जाता है.     

अब आप सोचिये इनमें से एक भी मुद्दे से आपका या मेरा भला जुड़ा है? क्या इससे आपकी आय बढ़ेगी या आपका बेटा-बेटी वैज्ञानिक बनेंगे?

ये लड़ाई कितनी बड़ी है- ज़रा एक बार इस लड़ाई का साइज़ देखिये. भारत वासियों और आज के विपक्ष का मुक़ाबला किससे है. मज़दूरों को भड़काने इन्होने मज़दूर संघ बना रखा है कश्मीरी हिन्दुओं को भड़काने जम्मू-कश्मीर प्रजा परिषद् बना रखी है. किसानों के लिए अपना किसान संघ बना रखा है. इनका खुद का एक वकील संघ है. डॉक्टरों का अलग संघ है, रिटायर्ड आर्मी अफ़सरों का अलग संघ है. विज्ञान के नाम पर विज़न भारती नाम से इनका एक साइंस फ़ोरम है. हिस्ट्री डिफ़ोर्म करने खुद की इतिहास संकलन योजना है. इसी संस्था के लोगों को मोदीजी ने आईसीएचआर में अलग अलग पदों पर बैठा दिया है.

केरल में हिन्दू कट्टरपंथ फ़ैलाने हिन्दू मुन्नानी और एक्य वेदी नाम के संघठन हैं. स्कूलों के लिए इनका टीचर संघ है, विद्यार्थी संघ है, शिशु मंदिर, विद्या मंदिर, एकल विद्यालय हैं. औरतों को बरगलाने राष्ट्रीय सेविका समिति, दुर्गा वाहिनी, शिक्षा भारती जैसी संस्थाएं हैं. स्वदेशी के नाम पर आपको भड़काने के लिए स्वदेशी जागरण मंच है. आदिवासियों को भड़काने ट्राइबल सोसाइटी और वनवासी कल्याण आश्रम है. सिक्खों को भड़काने सिक्ख संगत बना रखी है.  

इंडिया में हिंदुत्व फ़ैलाव की नीतियां बनाने इंडिया फाउंडेशन, इंडिया पोलिसी फाउंडेशन और वेवेकानंद केंद्र है.विदेशों में हिंदुत्व की फंडिंग के लिए अमेरिका में आईडीआरएफ़,  ब्रिटेन में एनएचएसएफ़ में और हिन्दू स्वयंसेवक संघ है. ब्रिटेन में इनके 320 से ज़्यादा ग्रुप्स हैं जो हिन्दू फ़ोरम ऑफ़ ब्रिटेन से जुड़े हैं. बाकी इलेक्ट्रोरल बांड के कारण अब हिंदुत्व की फंडिंग का कोई अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता.  अम्बानी, अडानी, टाटा, पतंजलि खुले तौर पर हिंदुत्व की फंडिंग में शामिल हैं. साथ ही साथ अब फ़ेसबुक और गूगल भी अम्बानी से जुड़ चुके हैं. इसलिए भारत के लिए ये दशक इन्हीं केपेटलिस्ट ताक़तों से लड़ते हुए बीतने वाला है.

बेन ऑन हिंदुत्व- अकाली दल ने आरएसएस पर बेन की मांग फिर से तेज़ कर दी है. ये कोई पहली बार नहीं है. आज़ादी के पहले भी अंग्रेज़ों ने इस संस्था पर बेन लगाया था. आज़ादी के बाद 1948, 1975 और 1992 में इस संस्था पर बेन लग चुका है. 1952 में इसीलिए इन्हें अभिनव भारत संस्था बंद करनी पड़ी थी.

बांग्लादेश में इस्कोन पर बेन की बात शुरू हो चुकी है. सिंगापुर में मुस्लिम अतिवादियों ने हिंदुत्व के इस ख़तरे को भांप लिया और कई सारे इस्कोन संस्थाओं पर विश्व के अलग अलग देशों जैसे बांग्लादेश, ब्राज़ील, कज़ाकिस्तान, रसिया में हमले हुए हैं. 2018 में सीआईए वैश्विक भगवाकरण की साजिश का अंदाज़ा लगा चुकी है इसलिए उसने वीएचपी और बजरंग दल पर बेन लगा दिया है.

ये कहाँ आ गये हैं हम-  वर्तमान में हिन्दू धर्म जिस रूप में हैं उसका मतलब ब्राह्मण-बनियों का देश की ज़्यादातर संपत्तियों और संस्थाओं पर कब्ज़ा है. पर भारत में क़रीब 70% लोग ओबीसी, एससी और एसटी जाति से हैं. इन 70% लोगों को भारत के 30% ब्राह्मण, क्षत्रिय और बनिया अपने बराबर रखने से साफ़ इनकार करते हैं और रहेंगे. ये 70% लोग अपने सम्मान की लड़ाई अब कैसे लड़ेंगे,  ये उनका ख़ुद का कठिन चुनाव है. शिवाजी के नाम पर हिन्दू भावनाओं को भड़काने वाले लोग शिवाजी को क्षत्रिय का स्टेट्स देने के पक्ष में नहीं हैं. शिवाजी मरते दम तक क्षत्रिय नहीं हो पाए. इसलिए हिंदुत्व सरकार से ओप्रेस्ड जातियों के भले की कोई उम्मीद करना बेमानी है.

बाक़ी ज़्यादातर पढ़े लिखे लोग लेफ्ट कम्युनिटी की सोच अपना कर नास्तिकता और अधार्मिकता की ओर भी बढ़ रहे हैं. भारत में शांतिप्रिय लोगों का झुकाव लेफ़्ट की तरफ़, बौद्धिस्म, सिक्खिस्म या क्रिस्चियनिटी की तरफ़ बढ़ रहा है. अगर साउथ एशिया की बात की जाए तो यहाँ लिट्रसी रेट बहुत कम है इसलिए इस्लामीकरण और  भगवाकरण के नाम पर राजनीति करना आसान है. इससे लोग ज़रूरी मुद्दों से दूर हो कर भावनाओं से जुड़े मुद्दों में फंस जाते हैं.

बिजली, पेट्रोल, प्रोपर्टी, पानी, और खाने के दाम जितने होने चाहिए उससे कई गुना हैं इसलिए साउथ एशिया में ग़रीबी ज़्यादा है. जैसा कि कहा जाता है ‘साउथ एशिया तो अमीर है लेकिन यहाँ के लोग ग़रीब है’. कन्स्युमरिस्म के चलते लोग यहाँ मोनोपॉली करने वाली कम्पनियों के गुलाम बन चुके हैं. आज के समय में किसी भी धर्म का ताल्लुक़ आत्मिक शांति और ईश्वर की ख़ोज जैसे सिधान्तों से नहीं बल्कि उसके राजनीतिक और केपेटलिस्टिक उपयोग पर है. विज्ञान रेसिस्म विचारधारा खत्म करने में लगा है लेकिन विज्ञान का दी हुई इंटरनेट टेक्नोलोजी का उपयोग आपके रेसिस्म को बढ़ाने में हो रहा है.

साउथ एशिया वो गन्ना बन चुका है जिसे वैज्ञानिक दौर की केपेटलिस्म से बनी कट्टर हिंदुत्व और कट्टर इस्लाम की मशीन में डाल कर इसका रस कुछ गिने चुने लोग पिए जा रहे हैं बाक़ी का कचरा साउथ एशिया के हवाले किया जा रहा है. इस मशीन का तोड़ अभी तक किसी के पास नहीं, सिर्फ़ रिवोल्यूशनरी के एक लम्बे इंतज़ार के पास है.             

(PS.यह मात्र एक लेख नहीं बल्कि अगले 4-5 सालों में भारत और साउथ एशियाईदेशों के सामने आने वाली समस्याओं की जड़ का खाका है)

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