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एक राष्ट्रपति जिसने अश्वेतों के मानवाधिकारों के लिए अमेरिका के द्वार खोले

आज कल अमेरिका की सत्ता पर चर्चाएं काफी गर्म रहती हैं और अमेरिका के कई राष्ट्रपतियों के काम का ज़िक्र भी होता है। ऐसे ही एक राष्ट्रपति थे जिनके कार्यों ने आज के अमेरिका की नींव रखी, जिनका नाम था श्रीमान लिंडन बैंस जॉनसन वह अमेरिका के 36वें राष्ट्रपति और अमेरिकी डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता थे। इतिहास में कई लोग लिंडन को वियतनाम युद्ध का जनक भी मानते हैं। जिसमें अमेरिका के हज़ारों सैनिक मारे गए थे।

आईये जानते हैं अमेरिकी राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन को

लिंडन जॉनसन वो राष्ट्रपति थे जिन्होंने आज के अमेरिका की नींव रखी। इस बात का प्रमाण अमेरिका के अफ़्रीकन -अमेरिकन समुदाय के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बराक ओबामा की उस स्पीच से मिलता है। जो उन्होंने LBJ लाइब्रेरी में दी थी।

जिसमें उन्होंने यह कहा था कि आज मैं राष्ट्रपति हूँ उसकी वजह लिंडन जॉनसन ही हैं, क्योंकि लिंडन जॉनसन ने ही सिविल राइट्स 1964 का कानून पास करवाया था। जिसकी वजह से अश्वेतों को गर्व से जीने का अधिकार मिला। इसके अलावा 1965 में वोटिंग राइट्स एक्ट जिसकी वजह से अश्वेतों को वोटिंग के अधिकार मिले।

एक और कमाल की बात यह है कि लिंडन जॉनसन अमेरिका के उन 4 राष्ट्रपतियों में से एक थे।  जिन्होंने न सिर्फ उपराष्ट्रपति (3 साल) बल्कि अमेरिकी सीनेटर (11 साल) और यूएस हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव (12 साल) की जिम्मेदारी भी संभाली थी। लिंडन जॉनसन का जन्म स्टोनवाल टेक्सास के राजनीतिक परिवार में हुआ था। इनके पिता सैमुएल जॉनसन जूनियर टेक्सास की विधानसभा के सदस्य थे।

एक कमाल की बात ये भी है कि इनके दादा सैमुअल सीनियर कंफेड्रेड आर्मी के सिपाही रह चुके थे। जिसने 1860 में अमेरिका के दक्षिणी राज्यो में रंगभेद जारी रखने और उन्हें अमेरिका से अलग रखने के लिए गृह युद्ध किया था, लेकिन अब्राहम लिंकन ने इनको लोहे के चने चबवा दिए थे।

युवावस्था से ही था सियासत की ओर खिंचाव

लिंडन अपनी युवावस्था में बी.एससी करने के बाद एक विद्यालय में टीचर के पद पर स्थापित हुए लेकिन जल्द ही सियासत ने इनको अपनी ओर खींच लिया। लिंडन पहली बार 1937 में अमेरिकी संसद के निचले सदन यूएस हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव में सांसद बने और इसी बीच  द्वितीय विश्व युद्ध में अमेरिकी नेवी सेना में भी अफसर रहे।

1949 मे अमेरिकी संसद के ऊपरी सदन यूएस सीनेट के मेंबर बने। इसी बीच 1953 में सीनेट माइनॉरिटी लीडर और फिर 1955 में सीनेट में डेमोक्रेटिक लीडरों की गिनती बढ़ी तो सीनेट मेजॉरिटी लीडर भी बने। जिसके बाद वो सब से ताकतवर डेमिक्रेटिक नेता थे।

ऐसा कहा जाता है कि लिंडन को संसद से कानून पास करवाने में महारत हासिल थी। कोई कितना भी विरोध कर ले लिंडन जिस भी कानून को पास करवाना चाहते थे उसे पास करवाकर ही दम लेते थे। फिर आया 1960 का समय जब अचानक ही लिंडन जॉनसन ने तय किया कि वह राष्ट्रपति का चुनाव लड़ेंगे और इसके लिए उन्होंने  अपनी दावेदारी भी आगे कर दी, पर अफसोस उनके प्रतिद्वंदी जॉन फिटजजेरॉल्ड कैनेडी ने उनको चुनाव में हरा दिया।

बने एक पावर लेस उपराष्ट्रपति

राष्ट्रपति का चुनाव जीतने के अगले दिन ही जॉन कैनेडी ने जॉनसन को  उपराष्ट्रपति बनने का प्रस्ताव दिया हालांकि जॉनसन के सारे नज़दीकियों ने उन्हें इस प्रस्ताव  को मना करने के लिए कहा था, क्योंकि उपराष्ट्रपति की कुर्सी में कोई ज़्यादा अधिकार नही थे और उपराष्ट्रपति का पद काफी कमजोर और उस पर बैठने वाला सिर्फ राष्ट्रपति के हुक्म का गुलाम माना जाता था पर फिर भी लिंडन ने प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और चुनाव जीत कर उपराष्ट्रपति बन गए।

जॉनसन को एक कमज़ोर पद के साथ 3 साल गुज़ारने पड़े। जहाँ वह अपनी मर्ज़ी से न तो किसी कमेटी का निर्माण कर सकते थे न ही कोई ओहदा किसी को दे सकते थे। वह वही काम कर सकते थे जो राष्ट्रपति जॉन कैनेडी उनसे करवाने चाहते थे। हालांकि जॉन कैनेडी ने उन्हें प्रेसिडेंट  कमिटी ऑन इक्वल एम्पलएमेन्ट का अध्यक्ष बनाया।

इसके अलावा उन्हें नेशनल एरोनॉटिक्स और स्पेस अथॉरिटी और राष्ट्र सुरक्षा से जुड़ी हुई कई कमेटियों की कमान दी  गयी लेकिन जो ताकत लिंडन के पास मेजोरिटी लीडर के तौर पर थी वो अब गायब हो चुकी थी। हालांकि इस पद पर लिंडन की सबसे बड़ी सफलता यह थी कि उन्होंने अपने सीनेटर दोस्त रिचर्ड रसाल को मजबूर कर दिया था कि वह अपने जॉर्जिया के प्लांट में 50% अफ्रीकन- अमेरिकन समुदाय के लोगों को नौकरी दें, जहां पर पर अश्वेतों को नौकरी देना भी मना था।

उनकी पोजीशन कमजोर होने की एक वजह राष्ट्रपति के भाई और अमेरिका के उस समय के अटॉर्नी जनरल रॉबर्ट फ्रांसिस कैनेडी भी थे। जो लिंडन को काफी नापसंद करते थे और लिंडन उन्हें, और 1963 आते-आते ऐसी खबरें तेज़ थीं कि जॉन कैनेडी जॉनसन को 1964 के इलेक्शन में बतौर उपराष्ट्रपति का चुनाव लड़ने से रोक देंगे। जिसकी वजह जॉनसन पर एक भ्रष्टाचार का आरोप था पर खुद जॉन कैनेडी ने इन बातों को अफवाह बताया और कहा कि लिंडन ही उनके साथ चुनाव लड़ेंगे।

कैसे एक गोली ने लिंडन को बदल दिया

तारीख थी 22 नवंबर साल 1963 और जगह थी अमेरिका के टेक्सास राज्य का शहर डलास। राष्ट्रपति जॉन कैनेडी अपनी बीवी जैकलिन कैनेडी और उप राष्ट्रपति जॉनसन अपनी बीवी लेडी बर्ड जॉनसन के साथ डलास शहर में थे। गाड़ियों का काफिला पूरे शहर का सफर कर रहा था। तभी अचानक गोलियों की आवाज़ आयी और अचानक ही गाड़िया तेज़ चलने लगीं और लिंडन जॉनसन को भी बचा कर ले जाया गया। पता चला कि राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी  और टेक्सास के गवर्नर करेंनली साहब को किसी ने गोली मार दी है हालांकि इस दुर्घटना में गवर्नर करेंनली साहब बच गए पर अफसोस राष्ट्रपति कैनेडी की मृत्यु हो गयी।

वह इंसान जो अमेरिका को नई राह दिखाने की हिम्मत रखता था। अब वह दुनिया से जा चुका था। अब सवाल यह  था कि कौन कैनेडी साहब के काम को आगे बढ़ाएगा ? ज़वाब ज़ल्द ही मिलने वाला था। संविधान के तहत उप राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन को राष्ट्रपति बना दिया गया। एक तरफ उन्हें जॉन कैनेडी के सपनों को पूरा करना था। दूसरी तरफ उन्हें अपने राजनैतिक जीवन को बचाना था।

जॉन कैनेडी की मौत ने लिंडन जॉनसन को पूरा बदल दिया। अब उनका मकसद था जॉन कैनेडी के सपनो को पूरा करना जिसकी झलक उनके उस भाषण में दिखाई दी थी। जो उन्होंने राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिकी संसद में दिया था। जिसमें उन्होंने सिविल राइट्स बिल को लाने की बात कही थी।

अश्वेत लोगों के लिए खोले अमेरिका के द्वार 

कई लोगों के लिए यह हैरानगी वाली बात थी क्योंकि 14 साल पहले 1949 में इन्हीं जॉनसन ने बतौर सीनेटर सिविल राइट्स बिल के खिलाफ बयान दिया था। जब इस बिल को हैरी  ट्रूमैन लाना चाहते थे फिर प्रेजिडेंट आइजनहावर को भी रोका और बतौर उप राष्ट्रपति भी वो बिल को लाने के खिलाफ थे।

हालांकि वो नस्लभेदी बिल्कुल नही थे पर उन्हें ये डर था कि वो सुधारवादियों और उनके साथी दक्षिण नेताओ के बीच में फंस जाएंगे और आगे कुआं और पीछे खाई वाली नौबत खड़ी हो जाएगी। लेकिन लिंडन अब सब दांव लगाने को तैयार थे। जिसमें उनका राजनीतिक कैरियर भी शामिल था।

उनकी मशहूर एक लाइन थी। जब किसी ने उनसे कहा था कि बड़े सपनों के लिए सब कुछ दांव पर नही लगा सकते तो लिंडन ने कहा “Then What the hell Presidency is for” इसके बाद पहले सिविल राइट्स फिर बोटिंग राइट्स और फिर 5 साल के अंदर 1000 लेगीसलेशन्स ले कर शिक्षा, स्वास्थ्य, गरीबी हटाओ आदि इन सब मुद्दों पर लिंडन ने जम कर काम किया। 

इसका परिणाम  यह हुआ कि 1963 अमेरिका में जो  22% लोग गरीब थे। 1968 में उनमें से  सिर्फ 13% ग़रीब रह गए। इस दौरान देश की इकोनॉमी भी स्वस्थ अवस्था में थी। लिंडन ने एक अच्छे राष्ट्रपति के रूप में अपने सारे फर्ज़ निभाए । इसके परिणाम स्वरूप 1964 के चुनावों में लिंडन ने अमेरिका के 51 में से 44 राज्य जीते और 51% वोट प्राप्त किये जो कि पिछले 140 सालों में सबसे ज़्यादा प्राप्त मतानुपात था।

हालांकि हर व्यक्ति से अपनी ज़िन्दगी में कोई ना कोई गलतियाँ जरूर होती हैं। ऐसी ही एक बड़ी गलती लिंडन से भी हुई।  वह गलती थी अमेरिका का वियतनाम युद्ध में कूदना । जो किआगे चलकर  लिंडन की जिंदगी की सबसे बड़ी भूल साबित हुई। जिसमें अमेरिका न सिर्फ बुरी तरह से हारा बल्कि इस युद्ध  में उसके 56000 अमेरिकी सैनिक भी मारे गए।

लिंडन की इस वजह से पूरे देश में उनकी इतनी बदनामी हुई कि उनकी स्वयं की अपनी ही पार्टी में उनके ख़िलाफ़ प्रतिद्वंदी खड़े हो गए। जिनमें एक रिचर्ड कैनेडी भी थे। जो अटॉर्नी जनरल की कुर्सी से इस्तीफा दे कर अमेरिकी सीनेट के सीनेटर बन चुके थे।

1968 में न्यूयॉर्क से उन्होंने दोबारा चुनाव न लड़ने का एलान किया और रिपब्लिकन पार्टी के नेता रिचर्ड निक्सन उनके उप राष्ट्रपति ह्यूबर्ट हिम्प्रेय को हरा कर राष्ट्रपति बन गए और रिटायरमेंट के बाद जॉनसन वापिस अपने शहर चले गए। जहां 5 साल बाद, 22 जनवरी 1973 को उनकी मृत्यु हो गयी। लेकिन उनकी प्रेसिडेंसी आज के अमेरिका की नींव बनी और यही लिंडन की विरासत है जो आज भी उनके नाम से जुड़ी है।

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