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संवैधानिक मूल्यों की वर्षगांठ- गणतंत्र दिवस

गणतंत्र दिवस

एक नवजात का शरीर माँ क गर्भ से अवतरण के बाद इस दुनिया में आता है, परन्तु उसको सही मायनों में मानवीय मूल्यों की दीक्षा ही समाज में प्रतिष्ठित व सम्मानीय सदस्य बनाती है। लगभग दो सौ वर्षों के बिट्रिश शासन के बाद भारत को आज़ादी 15 अगस्त 1947 को मिली थी लेकिन सही मायनों में अखण्ड भारत की रूपरेखा व आत्मा का अवतरण 26 जनवरी 1950 को हुआ था, उस पावन दिन को हम गणतंत्र दिवस के रूप में मनाते हैं।

1929 में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन के दौरान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने ‘ पूर्ण स्वराज ‘ का घोषणा-पत्र तैयार किया तथा 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस मनाने की घोषणा की थी, यही कारण है की संविधान 26 नवम्बर 1949 को बनकर तैयार हुआ था परन्तु 26 जनवरी 1950 को आधिकारिक रूप से भारत गणराज्य की घोषणा हुई।

संप्रभुता, समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र, गणतंत्रीय चरित्र, न्याय, स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व, मानवीय गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता जैसे मूल्य जो संविधान द्वारा इस देश के प्रत्येक नागरिक को प्रदान किये गए हैं, हम सभी भारतीयों का यह कर्त्तव्य है कि हम उन मूल्यों को अपने जीवन में संजोयें।

2013 की गणतंत्र दिवस की संध्या, 26 जनवरी को देश के महामहिम राष्ट्रपति प्रणब मुख़र्जी ने कहा था ‘ अंग्रेजी हुकूमत से आज़ादी पाकर हमने लिंग, जाति, समुदाय में पारंपरिक असमानता जैसी समस्याओं को दूर किया जिन्होंने हमें बहुत लंबे समय तक गुलामी की जंजीरों में बांध रखा था, उन सब से परे हम एवं हमारे संविधान ने एक दूसरी मुक्ति का प्रतिनिधित्व किया है। भारत के लोगों को सही मायनों में आज़ादी, इन अमानवीय रूढ़िवादी सोच और रिवाज़ों से आगे बढ़कर, लोगों को सामाजिक और आर्थिक न्याय देकर मिल सकती है।

राष्ट्र की प्रगति की जिम्मेदारी सिर्फ चुनी हुई सरकारों की ही नहीं है अपितु देश के प्रत्येक नागरिक की भी है, इसलिए उसे ईमानदारी से अपने कर्तव्यों का निर्वहन करना चाहिए। किसी भी राष्ट्र के निर्माण एवं विकास के पथ पर अग्रसर होने में वहां के नागरिकों का बहुत बड़ा अमूल्य योगदान होता है। देश के महामहिम राष्ट्रपति जी का सन्देश आज भी दोहराना उतना ही ज़रूरी है शायद जितना 72 वर्ष पूर्व आजादी की संध्या को था।

नागरिकों की बढ़ती निराशा और टूटता मनोबल

ऐसे तो कई मानकों पर देश ने व्यापक उन्नति की है, परन्तु आज भी देश के कई हिस्सों में बुनियादी सुविधाओं की ज्वाला नहीं जल सकी है, कई सरकारें आयी और गयीं किन्तु जनता को भुखमरी, बेरोजगारी के साथ साथ झूठे वादों का तोहफा और उस तोहफे में मात्र आश्वासन मिला है, लेकिन सिर्फ सरकार की कमियां गिनाना ही काफी नहीं है साथ में जनता को भी अपनी ज़िम्मेदारियों का निर्वहन करना पड़ेगा।

जात-पात, गरीबों का शोषण व भ्रष्टाचार जैसी कई समस्याओं से सामना करने के लिए सरकार के साथ-साथ, समाज के हर एक व्यक्ति को भी कंधे से कंधा मिलकर चलना होगा । राष्ट्र के लिए कई वीरों ने अपनी जान की कुर्बानी देकर देश को संविधान रूपी अनमोल तोहफा देने में अपना अहम योगदान दिया है।

गणतंत्र दिवस का महत्त्व केवल तिरंगा फहराना मात्र ही नहीं बल्कि उन संवैधानिक मानवीय मूल्यों का अपने जीवन में अंतर्निविष्ट करना भी है जो हमारे संविधान एवं महान राष्ट्र के आधारशिला हैं। आशा के साथ पूर्ण विशवास भी है जिस आज़ाद भारत का सपना महात्मा गाँधी, डॉ भीमराव अम्बेडकर जैसे युग पुरुषों ने देखा था, युवा पीढ़ी उस सपने की ओर अग्रसर होगी व राष्ट्रोन्नति में अपनी सहभगिता निभाएगी।

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