जैसा कि मेरे दोस्त जानते हैं कि अक्सर मेरा स्टैटस लगा रहता है, “ख्वाहिश नहीं है मशहूर होने की, आप जानते हो इतना ही काफी है।” अब आप कुछ जान जाओ, इसके लिए मुझे कुछ तो बताना पड़ेगा।
काफी कुछ तो अपनी किताब की भूमिका में बता ही चुका हूं। बाकी बचा हुआ, आप जान लीजिए कि मेरा नाम रवि है। मेरा जन्म अमृतसर में हुआ है और मैंने एम.बी.ए. की डिग्री प्राप्त की है।
जोकर और मुझमें समानता
बिना बात पर हंसता रहता हूं और कभी-कभी कोई बात दिल पर लग जाए तो रो भी लेता हूं। बच्चे मुझे जोकर कहकर खुश होते हैं और मैं जोकर सुनकर खुश होता हूं। मैं ज़िंदगी काटना नहीं बल्कि जीना चाहता हूं, वह भी बिना शर्त के या केवल अपनी शर्तों पर। वैसे तो कम सोचता हूं लेकिन अगर सुई कहीं अटक गई, तो बस अटक गई। जैसे- एक दिन मैंने पढ़ा कि बाबा फरीद जी जब किसी को दुआ देते थे, तो बोलते थे कि जा तुझे इश्क हो जाए। अब सुई अटक गई कि यह दुआ है या श्राप।
मैंने बस गहराई से सोचना शुरू किया, जिसमें यह समझ आया कि बाबा फरीद जी जिस इश्क की दुआ देते थे, उसमें वह शायद रूहानियत की बात करते थे या किसी अंत की। हम लोग जिसे इश्क समझते हैं, वह इश्क तो दूर प्यार भी नहीं है और जिसे प्यार समझते हैं, वह तो सिर्फ ज़रूरत है।
क्या होता है इश्क?
शायद इश्क तो वह होता है, जिसमें बस कुछ कर गुज़रने की इच्छा हो। ना जीतने की तमन्ना हो, ना हारने का गम, ना कुछ पाने की इच्छा और ना कुछ खोने का डर। अगर कुछ होता है, तो वह है एक जनून।
शायद इश्क के बारे में यही समझ पाया हूं कि यह कभी-भी, किसी से भी हो सकता है। आपको अपने काम से इश्क हो सकता है, आप किताबों से इश्क कर सकते हैं, आपको प्रकृति से इश्क हो सकता है या किसी इंसान से मगर जब भी होगा आप अंत तक जाओगे।
मैंने भी इश्क किया
एक दिन मैंने भी सोचा, चलो आज हम भी इश्क कर लें। अपनी ‘ख्यालों की माही की सुंदरता से।’ इसके बाद बस ख्यालों में ही उसकी सुंदरता को सोच-सोचकर एक कविता लिख दी।
‘‘देखो मेरी माही चांद को जलाए।” वह एहसास इतना अद्भुत था कि मेरे पास उसकी सुंदरता बयान करते-करते शब्दों का अंत हो गया। मेरी सोच ऐसी ही है, शायद पहली मुलाकात में इतना कुछ काफी है।