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पत्नी को नाम से पुकारना अगर प्यार है, तो पति को नाम से पुकारना अपराध क्यों?

हमारे देश में अगर कोई औरत मेरे ‘ये’ या फिर मेरे ‘वो’ कहकर किसी के बारे में बात कर रही है तो आपको समझने में बिल्कुल तकलीफ नहीं होगी कि वह किसके बारे में बात कर रही है। अवश्य ही वह अपने ‘परम पूज्यनीय पति परमेश्वर’ की बात कर रही है।

यह मसला कोई बड़ा सामाजिक मुद्दा भी नहीं है पर सोचा जाए तो हमारी पितृसत्तात्मक सोच का एक जीता जागता नमूना है, जो हर घर में मौजूद है। अपने पति को नाम से बुलाने वाली महिला तेज़, शातिर और असंस्कारी समझी जाती है। हमारी नानी, दादी, बुआ, मौसी, ताई, माँ, भाभी, बहन सारे रिश्ते इसे एक नियम की तरह फॉलो करते हैं। तो आइये आपको बताते हैं कि इसके पीछे का लॉजिक क्या है?

फोटो प्रतीकात्मक है। सोर्स- Youtube

फैक्ट  हिसाब से देखे तो पहले की शादियों में यह एक नियम था कि लड़का, लड़की से बड़ा ही होना चाहिए, इसलिए जैसे सारे बड़ों को हम नाम से नहीं बुलाते तो यही नियम इस रिश्ते में भी लागू होता है।

अब दिक्कत हुई कि पुकारना हो तो कैसे पुकारे? तो सबने अपने-अपने तरीके निकाल लिए, जिसमें ज़्यादातर लोगों को चिंटू या पिंटू के पापा वाला स्टाइल ही अच्छा लगा। तो कुछ लोग बच्चों के नाम से ही बुलाने लगे, कुछ लोग बच्चों के नाम की जगह ‘ए जी’, ‘ओ जी’ से ही काम चलाने लगे।

यह एक कटु सत्य है कि हमारी युवा पीढ़ी भी इसे उतनी ही श्रद्धा से फॉलो कर रही है। कुछ युवा महिलाओं से जब मैंने इस मुद्दे पर बात करनी चाही तो उनकी प्रतिक्रियाएं कुछ ऐसी थीं-

अगर कोई महिला समूह बैठा है तो शायद ही आपको उसमें कोई महिला मिलेगी जो अपने पति का नाम लेकर उसके बारे में बात करेगी। जैसे अगर किसी महिला को कहना हो कि मेरे पति खाना खा रहे थे, तो वह बोलेगी ‘यह’ खाना खा रहे थे।

मैं पुरानी हर परम्परा को खत्म करना चाहती हूं, जो विशेषकर महिलाओं के लिए बनायी गई हैं। मैं यह नहीं कह रही कि किसी को सम्मान देना या आप कहकर बुलाना गलत है पर अगर नाम से भी बुला रहे हैं तो वह भी गलत नहीं। आप अपने पति का नाम लेंगी, तो उससे उसकी उम्र कतई कम नहीं होगी। विश्वास करिए और पुरानी परम्पराओं को छोड़िये, अपने लिए ना सही अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए। आज थोड़ी बुरी ही बन जाइये।

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