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क्यों असफल हो रहे हैं ग्राम पंचायत

संवैधानिक तौर पर वर्ष 1993 के बाद पंचायतों को सरकार का दर्जा देने का उद्देश्य यही था कि हम सभी को ज़्यादातर सेवाएं हमारे नज़दीक ही मिले, समय पर मिले, साथ ही स्थानीय स्तर पर लोगों का सशक्तिकरण हो। लेकिन अभी भी कितने लोग हैं, जो वाकई में जानते हैं कि पंचायतों की हमारे जीवन में असल भूमिका क्या है? या फिर सरकार ने जो योजनाएं चलाई हैं, वे क्या हैं, उनका असली मकसद क्या है?

कैसे काम करता है ग्राम पंचायत

बैठक की सभी गतिविधियों को दस्तावेज़ करने का नियम

फोटो प्रतीकात्मक है। फोटो सोर्स- Getty

पंचायती राज अधिनियम के मुताबिक जिस दिन ग्राम सभा की बैठक होती है, उस दिन बैठक में जो भी गतिविधियां होती हैं, उन सभी को पंचायत प्रधान तथा पंचायत सचिव द्वारा लोगों के सामने दस्तावेज़ किया जाना चाहिए। ऐसा ना होने की स्थिति में आपका हक बनता है कि आप उनसे सवाल पूछे और उन्हें, सभी के सामने कार्यवाही रजिस्टर भरने को कहें।

इसके अलावा इसमें यह भी प्रावधान है कि कार्यवाही रजिस्टर में गतिविधियां/प्रस्ताव डालने के उपरान्त प्रधान एवं सचिव द्वारा उसे स्टाम्प और हस्ताक्षर करके समापन किया जाए। इन सबके बाद पंचायत सचिव को उस दिन की पूरी कार्यवाही को ग्राम सभा के सामने पढ़कर सुनाना होता है।

ग्राम पंचायत के संबंध में क्या हमें अपने अधिकारों के बारे में पता है?

आपकी जानकारी में ऐसे भी लोग होंगे, जो कहते होंगे कि पंचायत में उनके कोई काम नहीं होते या फिर पंचायत उनकी बात नहीं सुनती है लेकिन इसके क्या कारण हो सकते हैं? क्या हमें मालूम है कि हमारे अधिकार क्या हैं?

उदाहरण के तौर पर

अक्सर देखने को मिलता है कि जब ग्राम सभा की बैठक होती है तब ज़्यादातर लोग बैठक में तो आते हैं लेकिन ज़्यादा समय ना होने की वजह से रजिस्टर में अपने हस्ताक्षर करके चले जाते हैं। तो कहने का अर्थ यही है कि जब हम-आप ही अपने अधिकारों के प्रति जागरूक नहीं हैं या फिर हमारे पास उन कार्यों के लिए समय ही नहीं है, तो फिर ऐसे में किसी से अपेक्षा भी क्यों करें।

सूचना बोर्ड की जानकारी कई बार स्थानीय लोगों की समझ से परे होती है

इसके अलावा पिछले वर्ष पंचायती राज मंत्रालय और ग्रामीण विकास मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा पारदर्शिता तथा जवाबदेही को बढ़ावा देने के उद्देश्य से पूरे भारतवर्ष की हर ग्राम पंचायत में ‘सार्वजनिक सूचना बोर्ड’ लगाने के निर्देश दिए गए। इसका उद्देश्य है कि ग्राम पंचायत अपनी ‘ग्राम पंचायत विकास योजना’ का ब्यौरा बोर्ड के माध्यम से लोगों के सामने रखे। इससे आम लोग भी यह जान सकेंगे कि उनकी ग्राम पंचायत में एक वित्तीय वर्ष में कौन से मद में कितने पैसाे आए तथा किन गतिविधियों पर खर्च हुए।

सोच तो बहुत बेहतरीन है लेकिन इसमें कुछ समस्याएं हैं। समस्या यह है कि एक ही राज्य के भीतर ही काफी विभिन्नता देखने को मिलती है। उदाहरण के तौर पर अगर हिमाचल प्रदेश की बात करूं तो कुछ पंचायतों ने यह बोर्ड हिंदी भाषा में बनाए हैं, तो कुछ पंचायतों ने अंग्रेज़ी भाषा में। आपके साथ एक पंचायत द्वारा लगाए गए बोर्ड का फोटो शेयर कर रहा हूं।

क्या आम ग्रामवासी इस बोर्ड को समझ पायेगा? जैसे ‘14th FC, VMJSY, DCP 5%, RAY, MMAY CRF’ इत्यादि  योजनाओं से संबंधित जानकारी है लेकिन वह आम भाषा और सरल शब्दों में नहीं है। 4-5 पंचायत के प्रतिनिधियों एवं पंचायत सचिवों से बात करके मालूम चला कि इस बोर्ड पर अनुमानित लागत 30 हज़ार से 50 हज़ार रुपये तक की थी। तो ऐसे में यह सवाल भी लाज़मी है कि आखिर यह जानकारी कैसे पहुंचाई जाएगी?

लेकिन इन सबके पीछे कहीं-ना-कहीं लोगों में भी तो कमी है। लोग क्यों अपनी आवाज़ नहीं उठाते हैं? क्यों अपने अधिकारों के प्रति जागरूक नहीं होते हैं? ऐसा पाया गया है कि जब लोग अपनी आव़ाज उठाते हैं, तब सरकार भी बेहतर प्रदर्शन करने का प्रयास करती है। स्थानीय प्रशासन द्वारा प्रयास सिक्के का एक ही पहलू है।

इस छोटे से उदाहरण के जैसे कितने ही ऐसे वाक्या होंगे। सोचना यह भी पड़ेगा कि क्यों अपने अधिकारों के प्रति नागरिक जागरूक नहीं हैं और अगर हैं तो आसपास होने वाली ऐसी गतिविधियों पर आवाज़ क्यों नहीं उठाते हैं। आप भी नज़र रखें, खुद को सशक्त बनाएं और ज़रूरत पड़ने पर अपनी सह-भागिता निभाएं।

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नोट- यह लेख पहले accountabilityindia की वेबसाइट पर प्रकाशित हो चुका है।

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