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करुणा स्वस्थ समाज का निर्माण करती है: कैलाश सत्यार्थी

सत्यार्थी जी द्वारा मगाई गयी जैकेट को पहनकर, उनसे मिलता हुआ प्रदीप कुमार । फोटो साभार;कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फ़ाउंडेशन।

करुणा मनुष्य का आभूषण है। करुणा के कारण ही किसी अन्य की पीड़ा को महसूस करके उसकी सहायता करने का मन करता है। नोबेल शांति पुरस्‍कार से सम्‍मानित श्री कैलाश सत्यार्थी न केवल लोगों के दिलों में करुणा पैदा करने की बात करते हैं, बल्कि खुद उसे जीते हैं।

यही कारण है कि वे “करुणा का वैश्‍वीकरण” करना चाहते हैं। लोगों के दिलों में करुणा का संचार कर बच्चों के बचपन को खुशहाल बनाने के महती कार्य के लिए उन्‍होंने पूरी दुनिया के नोबेल पुरस्‍कार विजेताओं और वैश्विक नेताओं को एकजुट कर एक प्रभावी वैश्विक मंच का गठन  किया है।

इस मंच का नाम ‘‘लॉरियेट्स एंड लीडर्स फॉर चिल्ड्रेन’’ है। यह एक ऐसा नैतिक मंच है जो बच्‍चों की आवाज बनता है। दूसरे शब्‍दों में इसे हम इस तरह कह सकते हैं कि यह बच्‍चों की आत्‍मा की पुकार सुनता है। आजाद बचपन की हिमायत करता है और बाल अधिकारों के संरक्षण के लिए काम करता है।

दुनिया के दुःख को अपना समझना ही करुणा है

प्रदीप कुमार को अपना मफ़लर पहनाते हुये, सत्यार्थी जी। फ़ोटो साभार; कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फ़ाउंडेशन।

कैलाश सत्यार्थी के नेतृत्‍व में अब तक तीन लॉरियेट्स एंड लीडर्स समिट फॉर चिल्ड्रेन का आयोजन किया जा चुका है। सत्यार्थी का मानना है कि किसी का दुःख दया या कृपा के भाव से दूर नहीं करना चाहिए और दुःख को दूर करने के एवज में किसी भी तरह के लाभ की  अपेक्षा नहीं करनी चाहिए।

दुखिया के दुःख को अपना महसूस करके दूर करना ही करुणा है। यही कारण है कि किसी का भी दुःख उनसे देखा नहीं जाता। उनका मन द्रवित हो जाता है और वे उसकी सहायता करने को तत्पर हो उठते हैं। वैसे तो उनके जीवन में इसके अनेक प्रमाण मिल जाएंगे। लेकिन यहां केवल एक प्रसंग की चर्चा मैं करना चाहूंगा जो इस तरह है।

बात पिछली सर्दियों की है। श्री सत्यार्थी अपने कार्यालय के सहयोगियों से मिलकर उनके हाल-चाल पूछने निकल पड़े थे। तभी उनकी नजर एक किशोर पर पड़ी जिसका नाम प्रदीप कुमार है। प्रदीप सर्दी के मौसम में हल्‍के कपड़े पहने हुआ था, जिससे वह कांप रहा था। श्री सत्‍यार्थी तुरंत अपना मफ़लर व जैकेट उतारकर प्रदीप को पहना दिए।

उनके कार्यालय के कर्मचारियों ने प्रदीप कुमार के प्रति दर्शायी गई उनकी करुणा को देखकर कोई आश्चर्य व्यक्त नहीं किया क्योंकि वे लोग इस तरह की घटनाओं को देखने के अभ्‍यस्‍त हो चुके हैं। लेकिन मेरे लिए वह बिल्कुल नई बात थी। मैंने पहले कभी नहीं देखा था कि कोई व्यक्ति अपने कार्यकर्ता के लिए इस तरह से अपने गरम जैकेट और मफ़लर दे दे और खुद ठंड सहन करे।

बाल मज़दूर को मुक्त कराकर सुखद अनुभूति होती है

सत्यार्थी जी की जैकेट को पहने हुये प्रदीप प्रसन्न मुद्रा में। फोटो साभार; कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फ़ाउंडेशन।

श्री सत्यार्थी यहीं नहीं रुके। उन्‍होंने अपने कर्मचारियों को आदेश दिया कि प्रदीप के लिए तुरंत गरम जर्सी खरीदकर लाओ। प्रदीप श्री सत्यार्थी से मफ़लर व जैकेट नहीं ले रहा था। उसको संकोच हो रहा था। मैंने देखा कि श्री सत्यार्थी ने अपना मफ़लर व जैकेट प्रदीप के लाख कहने पर भी वापस नहीं लिए। श्री सत्यार्थी ने कहा कि पहले तुम मेरे कार्यालय कर्मचारियों के साथ बाजार जाओ और जर्सी लेकर आओ। मैं तभी अपना जैकेट व मफ़लर वापस लूंगा।

उन्‍होंने यह भी कहा कि जब तक प्रदीप के लिए नई जर्सी नहीं आएगी तब तक प्रदीप मेरी गरम जैकेट पहने रहेगा। कार्यालय के कर्मचारी तुरंत हरकत में आ गए और प्रदीप कुमार को साथ लेकर बाज़ार चले गए एवं उसको नई जर्सी खरीदकर पहनाई। जब श्री सत्यार्थी ने प्रदीप को नई गरम जर्सी पहने देखा तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। यहां श्री सत्‍यार्थी की कही हुई वह बात याद आती है, जिसमें वे कहते हैं कि जब मैं किसी बाल मजदूर को मुक्‍त करता हूं, तब मुझे लगता है कि मैंने खुद को मुक्‍त किया है। मुक्‍त बाल मजदूर से ज्‍यादा खुशी मैं महसूस करता हूं।

मैंने देखा कि श्री सत्यार्थी के चहरे पर संतोष के भाव हैं और आत्‍मविश्‍वास से वे दमक रहे हैं। प्रदीप कुमार ने श्री सत्यार्थी को उनके जैकेट और मफ़लर वापस कर दिए और उनका धन्यवाद किया। पिछले दिनों एक अवसर पर प्रदीप से मेरी बातचीत हो रही थी, तो उस घटना को याद करके वह बहुत रोमांचित हो रहा था।

प्रदीप श्री सत्यार्थी द्वारा दिलाई गई जर्सी को विशेष अवसरों पर पहनता है। वह कहता है कि यह जर्सी मेरे लिए अनमोल है।  मैं उस दिन संयोग से श्री सत्यार्थी के कार्यालय में ही था। जब मैंने वह नज़ारा देखा तो उसका मेरे मन पर गहरा असर हुआ। मैं सोचता हूं कि श्री सत्यार्थी की तरह यदि सभी लोग बच्चों पर यही करुणा दिखाएं, तो बच्चे सुरक्षित और खुशहाल हो जाएं।

प्रदीप कुमार नई जर्सी पहनकर, सत्यार्थी जी की जैकेट को लौटाते हुये। फ़ोटो साभार; कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फ़ाउंडेशन।

प्रदीप बाल आश्रम का अभिन्‍न हिस्‍सा रहा है। बाल आश्रम श्री सत्यार्थी द्वारा स्थापित मुक्‍त बाल बंधुआ मजदूरों का दीर्घकालीन पुनर्वास केंद्र है। यह राजस्‍थान के जयपुर जिले के विराटनगर में स्थित है। श्री सत्यार्थी की पत्‍नी श्रीमती सुमेधा कैलाश  बाल आश्रम का संचालन करती हैं।

यहां मुक्‍त बाल मजदूरों को अनौपचारिक शिक्षा के साथ-साथ बाल आश्रम के आस-पास स्थित सरकारी स्कूल-कॉलेजों में भर्ती कराकर आगे की शिक्षा ग्रहण कराई जाती है। बाल आश्रम में रहकर कई पूर्व बाल-बंधुआ मजदूर वकील, इंजीनियर, समाज-सेवी बने हैं। इसी बाल आश्रम में उसकी शिक्षा-दीक्षा हुई। वह एक बाल मजदूर था, जो अपने माता-पिता के साथ अलवर के एक ईंट-भट्टे पर काम करता था।

उसे बचपन बचाओ आंदोलन (बीबीए) के एक कार्यकर्ता ने बाल मजदूरी से मुक्‍त कराकर बाल आश्रम में भर्ती किया। प्रदीप कुमार ने बाल आश्रम में रहकर सिलाई की अनौपचारिक शिक्षा प्राप्त की। आश्रम के वातावरण में रहकर प्रदीप कुमार पर वहां की शिक्षा का गहरा असर हुआ। उसने बाल मजदूरी, बाल शोषण, बाल विवाह आदि बुराईयों का विरोध करने का निर्णय लिया।

जब अपने घर गया तो उसने देखा कि उसके माता-पिता उसकी नाबालिग बहन का विवाह कर रहे हैं। उसने निश्चय किया कि वह अपने माता-पिता के निर्णय का विरोध करेगा। उसने हिम्मत करके अपनी बहन के बाल विवाह का न केवल विरोध किया बल्कि उसको रुकवाया। प्रदीप की सोच में यह एक क्रांतिकारी परिवर्तन है। अब प्रदीप श्री सत्यार्थी के मिशन से जुड़कर बाल मजदूरी को खत्‍म करने के लिए काम कर रहा है।

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