जब से इस धरती पर जीवन की उत्पत्ति हुई है, तब से किसान खेती करके खाद्य-सामग्री उत्पादित कर रहे हैं। यानी किसान ही सारी दुनिया के लिए भोजन हेतु खाद्यान्न, फल, सब्ज़ियां और चारे का उत्पादन करते आ रहे हैं।
इन धरती पुत्र किसानों को अन्नदाता भी कहा जाता है लेकिन मैं इन्हें दूसरा जीवनदाता कहता हूं। यदि किसान खेती-किसानी नहीं करेंगे, तो खाद्यान्नों का उत्पादन नहीं होगा और जब खाद्यान्नों का उत्पादन नहीं होगा, तब हमारे भोजन की भी व्यवस्था नहीं होगी। बिना भोजन के हमारा जीवित रहना असंभव ही नहीं, बल्कि नामुमकिन है। यदि हम भोजन नहीं करेंगे तो भूखे मर जाएंगे और कुछ भी नहीं कर पाएंगे।
कभी अकाल की मार तो कभी प्रलयकारी बाढ़
आज हमारे देश भारत में ही नहीं, बल्कि सारी दुनिया में सबसे ज़्यादा दुर्दशा किसानों की ही है। किसान सबके लिए तो अन्न उगा रहे हैं लेकिन खुद भूखे मरने के लिए विवश हैं। किसान अपनी फसलों से इतना नहीं कमा पाते हैं कि वे अपने परिवार के लिए ठीक-ठाक कपड़ों और शिक्षा का प्रबंध कर सकें।
किसान दिन-रात एक करके अन्न उपजाते हैं, वे ना जेठ मास की तमतमाती धूप देखते हैं और ना ही माव-फूस की कड़ाके की ठंड। किसान जितना परिश्रमी और धैर्यवान कोई नहीं है फिर भी किसान सुखी नहीं है।
कभी वह भयानक अकाल की मार से मारा जाता है तो कभी प्रलयकारी बाढ़ से। इन आपदाओं से ज़्यादा तो किसान कर्ज़ के बोझ से आत्महत्या करने के लिए मजबूर होते हैं।
किसान विरोधी सरकार
अब तक की अधिकतर सरकारें किसान विरोधी रही हैं। सरकारों ने कभी किसानों का भला नहीं करना चाहा है और शायद इसलिए देश अब तक पीछे है। सरकारी और प्रशासनिक व्यवस्था किसान को ही हमेशा हर प्रकार से लूटती रही है और दमनकारी रवैया चलाती रही है लेकिन अब से ऐसा नहीं होगा। अब मेरे जैसे किसानों के बेटे जागरूक हो गए हैं और किसान भी एकजुट हो गए हैं। वे अपने अधिकारों की आर-पार की लड़ाई लड़ने के लिए तैयार हो गए हैं।
बाज़ारवाद के इस दौर में किसान अपनी फसलों के चार-पांच गुणा मूल्य पाने के लिए परिवर्तनवादी आंदोलन कर रहे हैं और अपनी हालात बेहतर करके विश्व कल्याण में अहम भूमिका अदा कर रहे हैं। इन किसानों की विचारधारा परिवर्तनवाद का नारा है कि दुनियाभर के किसानों एक हो।
किसानों को अब समाज, साहित्य, राजनीति और सिनेमा में अगल से सम्मानीय दर्ज़ा दिया जाए। दुनिया के हर स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय की हर कक्षा के पाठ्यक्रमों में किसान-साहित्य और किसान-विमर्श को अनिवार्यता के साथ शामिल किया जाए, क्योंकि किसानों के बिना यह दुनिया नहीं चल सकती इसलिए किसानों की हर मांग को पूरा किया जाए।
किसान-साहित्य की परिभाषा
मेरे अनुसार किसान-साहित्य की परिभाषा इस प्रकार है- “किसान के जीवन पर लिखा गया अनुभूतिपरक एवं स्वानुभूतिपरक साहित्य ही किसान-साहित्य है और ऐसा विमर्श जिसमें किसानों की हर मनोदशा, भावना और अधिकारों की अभिव्यक्ति हुई हो, वह किसान-विमर्श है।”
तथाकथितों द्वारा ऐसा माना जा रहा है कि नरेन्द्र मोदी के शासनकाल में भारत, विकसित भारत बनकर उभरा और देश में विकास की गंगा बही लेकिन हकीकत यह है कि इस दौर में किसानों की आत्महत्याएं और बलात्कार के मामले हद से ज़्यादा सामने आए।
किसानों की आत्महत्या और बेरोज़गार युवा
महाराष्ट्र में सन् 2015 से 2018 के बीच तकरीबन 12 हज़ार से ज़्यादा किसानों ने आत्महत्याएं की। सारी दुनिया की भूख मिटाने वाले धरती पुत्र को दो वक्त की रोटी भी ठीक से नसीब नहीं हो रही है। यत्र-तत्र किसान आंदोलन हुए लेकिन तानाशाही सरकार से किसान अपना हक पाने में नाकामयाब रहे।
मज़दूरों की हालात भी बहुत बुरी रही। सूखे की मार से ग्रसित बुंदेलखंड हमेशा उपेक्षित रहा। किसानों और मज़दूरों के बच्चों को अच्छी शिक्षा नहीं मिल पाई, क्योंकि कुछ को छोड़कर ज़्यादातर सरकारी स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों की शिक्षा व्यवस्था अस्त-व्यस्त रही।
प्राईवेट शिक्षण संस्थानों और कॉन्वेंट स्कूलों का हाल और बुरा रहा। छात्र-छात्राओं को उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बावजूद रोज़गार और नौकरी के लिए दर-दर की ठोकरें खानी पड़ रही हैं। भारत में शिक्षित बेरोज़गार युवाओं की भरमार हो गई है, युवाओं को सरकार सिर्फ जुमले दे रही हैं।
भारत के लिए घातक आरक्षण
भारत के लिए आरक्षण घातक सिद्ध हो रहा है, आरक्षित लोग ही नौकरी पाने में सफल हो रहे हैं। इसमें वे लोग अधिक हैं, जो कुछ हद तक सम्पन्न हैं लेकिन आज भी गरीब किसान, मज़दूर और आदिवासियों के बच्चे आरक्षण नहीं पा रहे हैं क्योंकि देश में जागरूकता का अभाव है।
अब भारत के हालात बहुत ठीक हो चुके हैं और अब समय आ गया है कि आरक्षण को खत्म किया जाए। मोदी सरकार ने सन् 2018-19 में 10% सवर्णों के लिए भी आरक्षण की व्यवस्था की थी लेकिन आरक्षण देना अब भारत के लिए अच्छा नहीं है क्योंकि विश्व गुरू भारत के निवासी वैसे ही प्रतिभाशाली होते हैं और आज के युवा तो 21वीं सदी के हैं, जो बहुत ज़्यादा प्रतिभाशाली हैं।
हमारा देश भारत प्रमुख कृषि प्रधान देश है और यहां लगभग 70% आबादी कृषि कार्य पर निर्भर है इसलिए मैं अपने देश को किसानों का देश कहता हूं। आजकल देश में किसानों की हालात बहुत बदत्तर हो गई है। प्रकृति की मार और अतिवृष्टि ने किसानों की फसलों को चौपट कर दिया है। तेज़ वर्षा के साथ ओलों के गिरने से फसलें सर्वनाश हो गई हैं। किसानों को अपना पेट भरने के लिए भी अन्न उत्पादन करना मुश्किल हो गया है।
सरकार को उठाने चाहिए कदम
आज बुंदेलखंड क्षेत्र में किसान अपनी फसल को चौपट देखकर आत्महत्या कर रहे हैं मगर सरकार इस घटना की ओर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दे रही है।
- सरकार को पीड़ित किसान को आर्थिक सहायता के रूप में फसल-सर्वेक्षण के आधार पर अधिक से अधिक मुआवज़ा देना चाहिए। इसके साथ ही सरकार को किसानों का बिजली बिल और बैंक ऋण माफ करना चाहिए।
- भारत सरकार को किसानों की इस स्थिति पर ध्यान देना चाहिए, क्योंकि किसान ही देश की शान हैं। किसान ही खाद्यान्न, फल और सब्ज़ियों आदि खाद्य-पदार्थों का उत्पादन करता है और सरकार इन खाद्य-पदार्थों का निर्यात विदेशों में करती है, जिससे काफी विदेशी मुद्रा भारत आता है एवं आर्थिक कोष में बढ़ोत्तरी होती है।
- किसान ही देश की जनता की भूख मिटाते हैं इसलिए सरकार को किसानों के विकास की अनेक कल्याणकारी योजनाएं बनानी चाहिए। जैसे- मुफ्त सिंचाई योजना और मुफ्त खाद योजना आदि। सरकार को देश में अनेक कृषि विद्यालय और विश्वविद्यालय खुलवाने चाहिए और किसानों को वैज्ञानिक तकनीक के ज़रिये खेती कराने में मदद करनी चाहिए।
- सरकार और राजनेताओं को रुपये किसानों के विकास में खर्च करना चाहिए। सरकार को महंगाई कम करनी चाहिए।
आज की तरह ही यदि किसान आत्महत्याएं करते रहे तो हमें अन्न कौन देगा? देश की अर्थव्यवस्था कैसे मज़बूत होगी? भारत कैसे विकसित देश बनेगा? ऐसे हज़ारों प्रश्न उठते हैं।
ऐसे प्रश्नों का जवाब सिर्फ और सिर्फ किसानों का विकास करना है और उन्हें किसी भी हालात में दुःखी नहीं होने देना है। इसलिए तो मैं कहता हूं, “किसान बचाओ-देश बचाओ।” किसान रहेंगे तो कृषि होगी और कृषि होगी तो अन्न होगा, अन्न होगा तो हम होंगे।
किसानों पर स्वरचित पंक्तियां आपसे साझा कर रहा हूं
‘किसान’
बारहों महीने जो खेतों में करता है काम
सच्चा किसान है उसका नाम।
खेतों को जोतता, बीज बोता
बीज उगकर जब तैयार हो जाता,
तो फसल को सिंचित करता।
खाद और दवाइयां देता
आदि करता है काम।
सच्चा किसान है उसका नाम।
किसान-विमर्श पर मेरी विकासवादी कविता: सब समान हो इस प्रकार है-
चाहे हो दिव्यांगजन
चाहे हो अछूत,
कोई ना रहे वंचित
सबको मिले शिक्षा
कोई ना मांगे भिक्षा।
दुनिया की भूख मिटाने वाला
किसान कभी ना करे आत्महत्या,
किसी पर कर्ज़ का ना बोझ हो
सबके चेहरे पर नई उमंग और ओज हो।
ना कोई ऊंचा
ना कोई नीचा,
सब जीव समान हो
हम सब भी समान हों।
ना कोई बनिया नाजायज़ ब्याज ले
ना कोई कन्यादान के संग दहेज ले,
कोई बहू-बेटी पर्दे में ना रहे
सबको दुनिया की असलीयत दिखती रहे।
कोई ना स्त्री को हीन माने
वह साहस की ज्वाला है।
अब तक वह चुप रही
तो हुआ यह,
सिर्फ मानवता की हीनता
और हैवानियत का चरमोत्कर्ष।
अब सब कुरीतियों-असमानताओं को मिटाना है
मानवता और विश्व शांति लाना है।