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“शौचालय नहीं था तो घंटों तक पीरियड्स में यूरीन कंट्रोल करना पड़ा”

भारत ने जल्द ही आधिकारिक तौर पर खुले में शौच मुक्त देश का दर्ज़ा हासिल कर लिया है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150वीं पुण्यतिथि यानी इस साल 2 अक्टूबर को सरकार ने देश को ‘खुले में शौच मुक्त’ घोषित किया।

बता दें कि इसका मतलब यह हुआ कि देश के हर एक घर के सदस्य की पहुंच शौचालय तक हो गई है यानी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का “हर घर में शौचालय” का मिशन पूरा हो गया है।

भारत सरकार के पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय के ‘स्वच्छ भारत मिशन’ की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार 2 अक्तूबर 2014 से लेकर अब तक देश में 10,07, 62 , 869 (10 करोड़ से ज़्यादा) टॉयलेट बनाए गए हैं, जिसके आधार पर भारत को 100 प्रतिशत ‘ओडीएफ’ घोषित किया गया है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, फोटो साभार- फेसबुक पेज

खुले में शौच कम हुआ खत्म नहीं

ओडीएफ़ यानी एक ऐसा देश जहां हर घर में शौचालय हैं और लोग खुले में शौच नहीं कर रहे हैं। इन सब बातों को सुन कर आपको यही लग रहा होगा कि अब हर घर मे शौचलय हैं और हम अब खुले में शौच से मुक्त हैं पर मुझे नहीं लगता। हां, खुले में शौच करना कम ज़रूर हो गया है, पर पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है।

बहुत से ऐसे गाँव और शहर हैं, जहां खुले में शौच बिल्कुल ही बंद हो गया हैं लेकिन आप कुछ शहरों और गाँवो को देख कर नहीं बोल सकते कि हम खुले में शौच से मुक्त हो गए हैं। हम खुले से शौच मुक्त तब होंगे जब हर एक गाँव और शहर इससे मुक्त हो जाएंगे और हर जगह शौचलय होंगे और सबसे अहम सब लोग उसका इस्तमाल भी करेंगे।

मैं आपको बता दूं कि मैंने खुद देखा है बल्कि रोज़ देखती हूं कि कितने लोग आज भी खुले में टॉयलेट करते हैं। थोड़ा वीरान जगह जाएं तो आप पाएंगे कि आज भी लोग खुले में शौच करते हैं। आप सोच रहें होंगे कि मैं कहां की बात कर रही हूं तो मैं आप सब को बता दूं कि मैं रांची शहर की बात कर रही हूं, जहां आज भी कितने लोग यहां तक की यात्री भी खुले में टॉयलेट करते हैं।

मैं बात कर रही हूं रांची रेलवे स्टेशन के पास स्थित ओवर ब्रिज की जहां हज़ारों की संख्या में आते-जाते लोगों के बीच कुछ लोग खुले में टॉयलेट करते हैं। 24 घंटे लोग ब्रिज से नीचे उतरते हैं और चढ़ते है फिर भी वहां का हाल वैसा ही है। यही नहीं वहां के हालात इतने खराब हैं कि आप बिना नाक बंद किए ब्रिज से उतर- चढ़ नही सकते।

प्रतीकात्मक तस्वीर, फोटो-Uplash

सबसे बड़ी बात तो यह है कि एक लड़की, बुज़ुर्ग महिला सब आ जा रहे हैं, पर उन लोगों को शर्म नहीं है, वे वहां बेशर्मो की तरह खड़े होकर टॉयलेट करते हैं। ज़रा सोचिए जब किसी राज्य की राजधानी की हालात ऐसी है जहां इतने पढ़े- लिखे लोग रहते हैं, तो गाँव की तो हम कल्पना भी नहीं कर सकते हैं।

महिलाओं के लिए पीरियड्स के दौरान और समस्या

शौचालयों की कमी और सुविधा ना होने की वजह से महिलाओं को पीरियड्स के समय होने वाली दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। इसी तरह की एक स्थिति मैंने भी झेली है।

हाल ही में मैं किसी काम से अपनी दोस्त के साथ उसके कॉलेज गई थी। तभी मुझे महसूस हुआ किन मेरे पीरियड्स आ गए हैं। फिर मैंने उसे बताया और उसके बाद हम दोनों शौचालय गए। अंदर जाने पर पता चला ना तो शौचालय में एक बूंद पानी था और ना ही वह साफ किया हुआ था। इतना गंदा था कि मैं आपको बता भी नहीं सकती। जैसे-तैसे मैंने अपना उस शौचालय का उपयोग किया और हम शौचालय से बाहर आ गए।

ऐसे ही हाल ज़्यादातर शौचालयों के हैं जिसकी वजह से आज महिलाओं को बाहर निकलने से पहले सोचना पड़ता है।

पब्लिक शौचालयों की बात करें तो उसका भी हाल यही है। पानी आता भी है तो एक- एक बूंद और कहीं-कहीं तो आता ही नहीं है। फिर भी मजबूरी में महिलाएं जाती हैं। बिना पानी के ही उपयोग करती हैं जिसके कारण इंफेक्शन होता है और तरह -तरह की बीमारियों का सामना करना पड़ता है।

फोटो क्रेडिट- सोशल मीडिया

बहुत सारी जगहों पर तो शौचालय होता ही नहीं है जिसके कारण पीरियड्स में महिलाओं को टॉयलट तक को कंट्रोल करना पड़ता है।

ऐसा मैंने खुद किया है। मैं अकसर रांची से मोतिहारी बस से आती -जाती रहती हूं। कई बार ऐसा हुआ है कि मुझे पीरियड्स में टॉयलेट कंट्रोल करना पड़ा है क्योंकि कई जगहों पर शौचालय होता ही नहीं है। अगर होता भी है तो वह इतना गंदा होता है कि आप बिना नाक बंद किए जा ही नही सकते। मैंने कितनी बार बुज़ुर्ग महिलाओं को सफर के दौरान खुले में टॉयलेट करते देखा है,  जब उनसे कंट्रोल नही हो पाता तो वो कही भी खुले में कर लेती हैं।

मैं मानती हूं कि हमारे यहां खुले में शौच करना बहुत कम हो गया है, पर खत्म नहीं हुआ है। अभी भी हालत बहुत अच्छी नहीं है। यही नहीं अगर हम बात करें सुलभ शौचालयों की तो उसका भी हाल बेहाल है। साथ ही हर जगह पर सुलभ शौचालय उपस्थित भी नहीं है।

यह मैं इसलिए बोल रही हूं क्योंकि मैंने कितनी बार यात्रा के दौरान इन सब का सामना किया है। मैं बता दूं कि जब भी मैंने इन शौचालयों का यूज़ किया है ज़्यादातर मुझे गंदे ही मिले हैं। साथ ही बहुत सी जगह पर शौचालय होते ही नहीं है।

कचरा आज भी एक चुनौती

यही नहीं अगर हम बात करें रोड साइड कचरा फेंकने की तो अभी भी शहरों में ऐसी बहुत सी जगह हैं, जहां आपको रोड पर कचरा पड़ा हुआ मिल जाएगा। ऐसी भी जगह मिल जाएंगी जहां डस्टबिन तो है, पर अगर ज़रूरत 4 की है तो मौजूद 2 हैं जिसके कारण कचरा पूरी रोड पर गिरा बिखरा रहता है।

ऐसे भी जगह मिल जाएंगी जहां एक भी डस्टबिन नहीं मिलेगा। सारा कचरा रोड पर पड़ा रहता है। फिर कैसे कह सकते हैं कि हमारे स्वच्छ भारत अभियान का मिशन सफल हो गया है या हमारा देश पूरी तरह से स्वच्छ हो गया है। सरकार को एक बार इन सब पर भी विचार करना चाहिए।

सरकार के साथ-साथ लोगों की सोच की भी कमी है क्योंकि आज भी ऐसे बहुत से लोग है जिनका कहना है कि घर मे शौचलय बनवाने का मतलब घर को गंदा करना होता है। उनके हिसाब से खुले में शौच जाने के कई फायदे हैं। जैसे, सुबह घूमने का बहाना हो जाता है और घर पर गंदगी नहीं होती।

कई लोगों का तो कहना है कि घर का टॉयलट अगर पूरे दिन इस्तेमाल करेंगे तो वह भर जाएगा इसलिए वे दिन में खुले में जाते हैं और रात को शौचालय इस्तेमाल करते हैं। इसलिए मेरा मानना है कि सरकार के साथ- साथ लोगों को भी अपनी सोच बदलनी चाहिए ताकि हमारा देश सच मे खुले से शौच मुक्त हो जाए ,क्योकि जब हम बदलेंगे तभी देश बदलेगा।

साथ ही मैं यह भी कहना चाहूंगी कि यह देश हम सब का है इसलिए इसकी साफ-सफाई की ज़िम्मेदारी भी हम सब की है ना कि सिर्फ सरकार की इसलिए हमें मिल जुलकर, एक साथ होकर अपने देश के लिए कुछ करना चाहिए और इसे वास्तव में खुले से शौच मुक्त करना चाहिए।

मेरा मानना है “हमारा देश हमारी जिम्मेदारी” इसलिए हमें अपनी ज़िम्मेदारी अपने देश के प्रति पूरी करनी चाहिये और इसे स्वच्छ बनाए रखना चाहिए।

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