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बन्धुता दुनियाभर में फैले नफरत और असमानता से लड़ने का सबसे मजबूत आधार है

“दुई जगदीश कहां ते आये कह कोने भरमाया

अल्लाह,राम,रहीम,केशव,हरी,हजरत नाम धराया

वही महादेव, वही मोहम्मद, ब्रम्हा, आदम कहिये

कोई हिंदू, कोई तुर्क कहावे एक ज़मी पर रहिये

वेद किताब पढ़े वे खुतबा वे मौलाना वे पांडे

विगत-विगत ते नाम धराया एक मिटटी ते हांडे”

कबीरदास की ये पंक्तियां आज के समय में भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी जब उन्होंने पन्द्रहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में इसे लिखा था। इन पंक्तियों से कबीरदास कटुता को मिटाकर भाईचारे और बन्धुता का प्रसार करना चाहते थे। उन्होंने जोरदार शब्दों में यह घोषणा की कि राम और रहीम में जरा भी अंतर नहीं है। जिस भाईचारे और बन्धुता की बात कबीरदास ने तब पन्द्रहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में की थी उसी बन्धुता की आज के समय में बहुत ही ज़्यादा ज़रूरत है।

बन्धुता दुनिया में फैले अन्याय, नफरत और असमानताओं से लड़ने के लिए एक आवश्यक आधार है

बन्धुता सिर्फ एक शब्द ही नहीं बल्कि भावना है जो लोगों को एक दूसरे से जोड़ने का काम करती है। बन्धुता का अस्तित्व हमारे बीच बहुत पहले से है यह 450 ईसा पूर्व गौतम बुद्ध और 15वीं सदी में गुरु नानक देव के शिक्षा में दिखता है। रहीमदास, कबीरदास, रविदास, अमीर खुसरो, रूमी, बुल्ले शाह के रचनाओं में दिखता है।

महिला संतो में आठवीं सदी की तमिल संत आंडाल, कर्नाटक की 12 वीं सदी की संत अक्का महादेवी, कश्मीर की 14वीं सदी की संत ललदेद, 13वीं सदी की मराठी संत जनाबाई और बहुत सी ऐसी महिला संत हुई जो 10वीं-11वीं शताब्दी या उससे पहले से ही प्रेम और बन्धुता का संदेश देती आयी हैं।

यह हमारे समय का सबसे मौलिक और महत्वपूर्ण विचार है जो दुनिया में फैले अन्याय, नफरत और असमानताओं से लड़ने के लिए एक आवश्यक आधार है। यह भाईचारे की भावना और अपने लोगों के बीच देश के साथ जुड़े रहने की भावना को दर्शाता है तथा यह मनोवैज्ञानिक के साथ-साथ राष्ट्रीय एकता के क्षेत्रीय आयामों की भी बात करता है। यह क्षेत्रवाद, सांप्रदायिकता, जातिवाद जो राज्य की एकता में बाधा उत्पन्न करते हैं उनसब के लिए कोई भी जगह नहीं छोड़ता है। यह एक सुंदर, इंद्रधनुषी शब्द है, जो संस्कृत से लिया गया है जो इस विचार को दर्शाता है कि हम सभी लोग एक दूसरे के साथ बंधे हुए हैं।

बन्धुता की भावना खोने से असमानता और पूर्वाग्रह जैसी चीज़ों को बल मिला है

संविधान बन्धुता को “व्यक्ति की गरिमा” और “राष्ट्र की एकता और अखंडता” के एक महत्वपूर्ण स्रोत के रूप में देखता है। व्यक्ति की गरिमा को, हमारे विविध धार्मिक मान्यताओं, जाति, भाषा, संस्कृति, वर्ग, लिंग, लैंगिकता के सभी मतभेदों के बावजूद आपसी सम्मान के माध्यम से और व्यक्तियों की नैतिक समानता को मान्यता देकर पूरा किया जाता है।

बन्धुता से उत्पन्न होने वाली राष्ट्र की एकता का विचार बहुत ही महत्वपूर्ण और आज के समय में बहुत ही ज़रूरी भी है। परन्तु यह सोचने वाली बात है कि संविधान में स्पष्ट जगह मिलने के बावजूद बन्धुता पर सबसे कम चर्चा हुई है और इसके बढ़ोतरी के लिए बहुत ही कम प्रयास किए गए हैं। यह ना तो सिर्फ उनके द्वारा भुला दिये गया है जिनको संविधान को बनाये रखने के लिये चुना जाता है, बल्कि यह हमारे सार्वजनिक जीवन और समाज से भी खो गया है। यह स्थिति हमारे समाज, घरों और हमारे दिलों में असमानता और पूर्वाग्रह की भावना को प्रबल करता है।

नरसी मेहता और कबीर दास की की पंक्तियों में दिखती है समानुभूति

वैष्णव जन तो तेने कहिये जे पीड़ पराई जाणे रे

15वीं शताब्दी के संत नरसी मेहता का यह भजन जो महात्मा गाँधी को अति प्रिय था, यह भजन दूसरों के पीड़ा की अनुभूति करने की बात करता है। दूसरे की पीड़ा को समझ पाएंगे तभी हम खुद को उसके स्थान पर रख कर उसकी स्थिति का आकलन कर पाएंगे।

कबीर दास ने भी पर पीड़ा को समझने के महत्व को बताते हुए कहा था कि

कबीर सोई पीर है, जो जानै पर पीर जो पर पीर न जानिया, सो काफिर बेपीर

कबीर दास जी कहते हैं कि जो इंसान दूसरे की पीड़ा और दुःख को समझता है, वही सही मायनों में इंसान है और जो दूसरे की पीड़ा ही ना समझ सके ऐसे इंसान होने से क्या फायदा?

दूसरे की पीड़ा कि अनुभूति यानी समानुभूति और बन्धुता परस्पर जुड़ी हुई है। समानुभूति का भाव जितना गहरा रहता है आपसी भाईचारा उतना ही बढ़ता जाता है। समानुभूति मतलब समान अनुभूति। यह तब उत्पन्न होती है जब हम दूसरों की भावनाओं की अनुभूति बखूबी कर पाते हैं। जब हम यह समझना सीख जाते हैं कि किसी परिस्थिति में दूसरा क्या महसूस करता होगा, जब उसके दुख, दर्द, तकलीफ, अपमान की अनुभूति हम इस तरह करते हैं कि मानो वह खुद अपनी ही हो।

समानुभूति दिल और दिमाग दोनों को जोड़ता है। इसका भाव और प्रबलता से आता है जब हम पीड़ित व्यक्ति के परिस्थितियों को अपनी परिस्थितियों से जोड़ कर देखते हैं। तभी हम उसकी तकलीफ को बखूबी समझ पाते हैं कि वह किस तरह से महसूस करता होगा, वास्तव में समानुभूति प्रेम और करुणा की भावना से आगे की स्थिति है।

समानुभूति तब क्षीण पड़ने लगती है जब हम दूसरों की परिस्थितियों को अलग देखने लगते हैं, जब हम अपने को, अपने परिवार को, अपने समुदाय को, अपने धर्म को, अपनी जाति को, अपने लिंग को और यहां तक कि अपनी यौनिक प्राथमिकताओं को सर्वश्रेष्ठ समझना शुरू कर देते हैं।

विविधताओं में आपसी प्रेम का महत्व

भारत विविधताओं का देश है। यह न सिर्फ भौगोलिक रूप से विविधताओं भरा है बल्कि इस देश में रहन-सहन, खान-पान, पहनावा, भाषा, संस्कृति, धर्म, जाति, आस्था, रीति रिवाज व विश्वास में भी व्यापक विविधता है। इतनी विविधता होने के बाद एक प्रेम ही है जो लोगों को एकता और अखंडता के सूत्र में बांध सकता है। बन्धुता और प्रेम एक दूसरे के पूरक हैं। प्रेम के अस्तित्व पर ही बन्धुता का अस्तित्व टिका है ।

संत रहीम जी ने प्रेम का महत्व बताते हुए कहा था कि

रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय
टूटे से फिर ना जुड़े, जुरे गाँठ परी जाय

आपस में प्रेम का नाता बहुत नाजुक होता है। एक बार टूट जाने पर दुबारा जुड़ने के बाद भी भाईचारे की भावना कम हो जाती है।

कबीरदास ने प्रेम के इस ढाई अक्षर को बड़ा ही जादुई बताते हुये कहा

पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया ना कोय
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय

कि बड़ी-बड़ी पुस्तकें जो काम नहीं कर सकती वह काम ये ढाई अक्षर का प्रेम कर सकता है, जो इसको जान गया वही सही मायनों में पंडित है।

बाबा बुल्ले शाह ने प्रेम को भाईचारे से जोड़ते हुए कहा

“ऐसा जगिया ज्ञान पलीता

ना हम हिन्दू ना तुर्क

ज़रूरी नाम इश्क़ दी मंजूरी

आशक ने वर जीता ऐसा जगिया ज्ञान पलीता”

कि सच्चे प्रेम से वह ज्ञान पैदा होता है जिसके प्रकाश से अन्धकार दूर हो जाता है। हिन्दू और मुसलमान का भेदभाव समाप्त हो जाता है और आपसी एकता बढ़ती है। केवल प्रेम का महत्व रह जाता है।

संविधान एकता और अखंडता से पहले मानव गरिमा को सुनिश्चित करने का आश्वासन देता है

भारतीय संविधान की अंतरात्मा न्याय, समता, स्वतंत्रता और बन्धुता के आसव से अभिसिंचित है। संविधान की प्रस्तावना में निहित आदर्शों का निर्माण प्रस्तावना के लक्ष्य और उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए किया गया है। भारत के संविधान की प्रस्तावना/उद्देशिका यह प्रकट करती है कि संविधान जनता के हित के लिए है और जनता ही आखिर सम्प्रभु है। यह संविधान के उद्देश्य और लक्ष्य को दिखाती है।

बन्धुता का समावेश एक उपयोगी उदाहरण है कि कैसे प्रस्तावना लोगों की ज़रूरतों को दर्शाता है? बन्धुता उद्देश्य संकल्प में नहीं था परन्तु बाद में इसे देश में सामंजस्य और सद्भावना को बढ़ावा देने के साधन के रूप में शामिल किया गया।

बन्धुता के संवैधानिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए मानव गरिमा को सुनिश्चित करना और देश की एकता और अखण्डता को बनाये रखना आवश्यक है। यहां पर यह देखना अहम है कि हमारा संविधान देश की एकता और अखण्डता के आश्वासन से पहले मानव गरिमा को सुनिश्चित करने का आश्वासन देता है। इसका अर्थ यह हुआ कि जब मानव गरिमा सुनिश्चित रहेगी तभी सही मायनों में देश की एकता और अखण्डता सुरक्षित रहेगी।

जातिगत विभाजन इंसान को खत्म कर देता है, मगर जाति खत्म नहीं होती

बन्धुता के आदर्शों का उल्लंघन हमेशा से ही किया जाता रहा है। लोग जाति, वर्ण, धर्म, वर्ग, लिंग, लैंगिकता में बंटे हुए हैं। खुद को श्रेष्ठ मानने वाला वर्ग हमेशा से ही अपना वर्चस्व स्थापित करने की फिराक में रहा है। जो लोगों को बांटने का काम करता है, भाईचारे की भावना को खत्म करता है और लोगों में अलगाव का कारण बनता है।

जाति-जाति में जाति है, जौं केलन के पात
रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात

इस पंक्ति से संत रविदास समझाना चाहते हैं कि जिस प्रकार केले के तने को छीला तो पत्ते के नीचे पत्ता, फिर पत्ते के नीचे पत्ता और अंत में कुछ नहीं निकलता। पूरा पेड़ खत्म हो जाता है। ठीक उसी तरह इंसानों को भी जातियों में बांट दिया गया है। जातियों के विभाजन से इंसान तो अलग-अलग बंट ही जाते हैं, अंत में इंसान भी खत्म हो जाते हैं लेकिन यह जाति खत्म नहीं होती।

बाबा साहेब ने जातियों के अस्तित्व पर क्या कहा था?

जातियां किस तरह से बन्धुता के मार्ग में अवरोध का काम करती है यह बात डॉ.अम्बेडकर की इस बात से भी स्पष्ट होता है। संविधान सभा के आखिरी बैठक के दौरान भाषण में डॉ.अम्बेडकर ने कहा था कि “मैं इस मत का हूं कि यह विश्वास करना कि हम एक राष्ट्र हैं हम एक महान भ्रम पालने जा रहे हैं। कई हजार जातियों में विभाजित एक राष्ट्र भला एक कैसे हो सकता है?

जितना जल्दी हम यह एहसास कर लें कि दुनिया के सामाजिक और मनोवैज्ञानिक भावना के रूप में हम अभी तक राष्ट्र नहीं हैं, यही हमारे लिये बेहतर होगा। उसके बाद हम गंभीरता से भारत को एक राष्ट्र बनाने की आवश्यकता महसूस करेंगे। इस लक्ष्य को साकार करने के तरीकों और साधन के बारे में सोचेंगे। इस लक्ष्य को प्राप्त करना बेहद कठिन कार्य है। यह संयुक्त राज्य अमेरिका की तुलना में कहीं ज्यादा कठिन है। संयुक्त राज्य अमेरिका में जाति की कोई समस्या नहीं है।

भारत में जातियां हैं। जातियां राष्ट्र विरोधी हैं। प्रथमतः यह सामाजिक जीवन में अलगाव लाती हैं। यह राष्ट्र विरोधी इसलिए भी है क्योंकि ये जाति और जातियों के बीच ईर्ष्या और घृणा उत्पन्न करती है। इसलिए यदि हम एक राष्ट्र बनना चाहते हैं तो हमें जातियों को खत्म करना होगा। बन्धुता की भावना के बिना समानता और स्वतंत्रता रंग के एक परत से जज़्यादा गहरी नहीं होगी”।

बाबा साहब द्वारा 71 साल पहले दिया गया यह भाषण आज के समय में भी उतना ही सटीक है। क्या हम ऐसे राष्ट्र का निर्माण कर पाए हैं जो समस्त भेदभाव से दूर हो? क्या एक बन्धुता पूर्ण समता मूलक राष्ट्र जिसका ज़िक्र बाबा साहब ने किया था उस लक्ष्य की तरफ बढ़ पाए हैं?

दुनिया भर में लोग बढ़ती नफरत और असमानता के कारण गहरे संकट के दौर से गुज़र रहे हैं

भारत के लोग ही नहीं वास्तव में दुनिया के अधिकांश लोग बढ़ती नफरत और असमानता के कारण गहरे संकट के दौर से गुज़र रहे हैं। दुनिया भर के देशों में एक नया नेतृत्व देश में ताकत और चुनावी समर्थन हासिल कर रहा है। यह नेतृत्व ऐसा है जो सत्तावादी, विभाजनकारी और ध्रुवीकरण करने वाला है, जो कई तरह के अल्पसंख्यकों को निशाना बनाते हुए बड़े पैमाने पर अपने पूर्वाग्रहों को दर्शाता है। यह स्थिति संविधान में वर्णित संवैधानिक मूल्यों न्याय, स्वतंत्रता, समता और बन्धुता के विपरीत है।

संविधान का एक उद्देश्य सभी के बीच बन्धुता की भावना को बढ़ावा देना है लेकिन संविधान को अपनाने के बाद से लेकर आज तक समाज में बन्धुता की भावना को विकसित करने की लिए क्रमिक सरकारों द्वारा अपनाई गयी कोई भी विशेष नीति नहीं दिखती है।

हमारे देश में संवैधानिक लक्ष्यों की बातें लोग बहुत ही कम करते हैं। आम नागरिक देश की एकता और अखंडता को देश की भौगोलिक सीमाओं, आतंकवाद, क्षेत्रवाद, नक्सलवाद या सांप्रदायिकता के खतरे से जोड़ कर देखता है जबकि हमारा संविधान इसे मानव गरिमा और बन्धुता से जोड़ कर देखता है। इस समय हमें ज़रूरत है बन्धुता के लिए एक समग्र दृष्टिकोण विकसित करने की ताकि अगर बन्धुता को मापने का कोई मानक आए तो भारत का स्थान अन्य मानव सूचकांक की तुलना में सबसे ऊपर रहे।

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