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“अनुशासन से लबरेज़ किसान इस आंदोलन को जीत चुके हैं, फासीवादी सत्ता बुरी तरह हार चुकी है”

दिल्ली के बॉर्डर से बहादुरगढ़ बाईपास तक बीस किलोमीटर में फैला आंदोलनकारी किसानों का काफिला। काफिले में आए हुए अलग-अलग गाँव के किसान, जिन्होंने अपने लाव-लश्कर सत्ता की सड़क पर डाले हुए हैं।

किसान, जो गरीब भारत का हिस्सा हैं, जो मेहनत करके पूरे मुल्क का पेट भरते हैं। किसान और मिट्टी, जो पर्यायवाची शब्द हैं, वो लुटेरी दिल्ली की सत्ता से खुद को व अपनी मिट्टी को बचाने के लिए युद्ध के मैदान में आ डटे हैं।

किसान दिल्ली की सत्ता को ललकार रहे हैं, उनका साफ ऐलान है सत्ता को कि वे सत्ता के शिकारी दांतों और पंजों को तोड़े बिना वापस नहीं जाएंगे। 

यहां किसान आन्दोलन कर नहीं रहे हैं, बल्कि आन्दोलन को जी रहे हैं। किसानों के टेंट बहादुरगढ़ बाईपास से पहले से ही शुरू हो जाते हैं। आज की शुरुआत हरियाणा के भिवानी ज़िले के मिताथल गाँव के टेंट में भोजन के साथ हुई। ठेठ हरियाणवी खाना, साथ में लस्सी, खाने के बाद हरियाणा के किसानों की शान हुक्का मिल जाए तो सोने पर सुहागा।

बड़े ही प्यार से मिताथल गाँव के किसानों ने हमको खाना खिलाया। उनके भोजन और प्यार का जितना धन्यवाद किया जाए शायद कम ही होगा। मेरे पड़ोसी गाँव कुम्भा वालों का भी टेंट पास में ही था। वे ताश खेलने में मशगूल थे। खाने के बाद आगे बढ़े तो चौक पर मेडिकल कैम्प व लंगर चलता मिला।

थोड़ा ओर आगे बढ़े तो चाय पकौड़े की सेवा चल रही थी। उसके बाद आगे गर्म-गर्म जलेबी थुराना (हांसी) वालों ने बड़े प्यार से खिलाई। जलेबी खा ही रहे थे कि एक पिकअप गाड़ी वाला ताज़ा मेथी व धनिया बांट रहा था। गाड़ी वाला जो अपने खेत से मेथी-धनिया किसानो के लिए लेकर आया था, उसको भी गर्म-गर्म जलेबी खिलाई गई।

आगे एक गाड़ी वाला गोभी बांट रहा था तो एक ट्रेक्टर वाला मूली बांट रहा था। लस्सी-दूध बांटने वाली गाड़ियां भी सुबह-सुबह अपना काम कर जाती हैं। सब्ज़ी, दूध, लकड़ी, लस्सी बांटने वाले ये सभी किसान दिल्ली के साथ लगते गाँवों से आते हैं, जो इस आन्दोलन में अपनी सेवा दे रहे हैं।

ऐसे ही प्रत्येक आधा किलोमीटर पर किसी ना किसी ने कुछ खाने की सेवा लगाई हुई थी। कोई चाय-पकौड़ा खिला रहा था तो कोई गर्म जलेबिया खिला रहा था। वैसे पकौड़े वाला रोज़गार नौजवानों को मोदी साहब ने ही तो दिया था। अब मोदी के दरवाज़े पर आकर पकौड़ो का डेमो नौजवान देने आए हुए हैं, तो साहब डरकर बिल में छुपे हुए हैं।

हरियाणा और पंजाब का आपसी प्यार अगर देखना है तो इस आन्दोलन से अच्छी कोई जगह नही हो सकती है। इंसान को इंसान देखकर हरा (खुश) हो रहा है। पेटवाड़ (हांसी) के किसान तो गाड़ी के आगे ही खड़े हो गए बोले जलेबी खाओगे तो ही आगे जाने देंगे। राखी खास के डॉक्टर टीम ने मेडिकल कैम्प लगाया हुआ था। ऐसे ही बणी (सिरसा) के डॉक्टर भी अपनी टीम के साथ मेडिकल कैम्प लगाए हुए थे। संगरूर (पंजाब) के नौजवानों ने लाइब्रेरी स्थापित की हुई थी। लाइब्रेरी के साथी ही ज़रूरतमंद आंदोलनकारियों को जूते और जुराब भी दे रहे थे।

एक जगह गर्म कम्बल बांटे जा रहे थे। एक गाड़ी वाला बुज़ुर्गों को जुराबें बांट रहा था। कुछ लोग गोंद और मावा से बनी मिठाई, जो बाज़ार में 500 से 600 रुपये किलो मिलती है, वो बांट रहे थे। उन्होंने उनके लड्डू बनाए हुए थे। उन्होंने हमको बताया कि 2500 किलो गोंद के लड्डू हमने बनवाए हैं।

20 किलोमीटर के काफिले में सैकड़ो स्टॉल चाय, पकौड़े, जलेबी, बिस्कुट, नमकीन भुजिया, भोजन की मिली। यह सेवा बिल्कुल फ्री थी, जो किसानों ने आपसी सहयोग से चलाई हुई थी।

पूरे काफिले में कहीं भी निराशा नहीं देखने को मिली। किसान पूरे जोश में मज़बूती से जंग-ए-मैदान में खुटा गाड़े हुए हैं। लाखों लोग होने के बावजूद सफाई का विशेष ध्यान आंदोलनकारियों ने रखा हुआ है। झाड़ू निकालने से लेकर सब्ज़ी काटने, लहसुन छिलने, प्याज़ काटने का काम, सब्ज़ी-रोटी बनाने काम आंदोलनकारी खुशी-खुशी कर रहे हैं। 

सुबह उठते ही सबने अपना काम बांटा हुआ है। चाय बनाने से लेकर गर्म पानी करना, सब्ज़ी काटना, लहसुन छीलना, आटा गूंथना, रोटी बनाना और सफाई करना ये सब काम आन्दोलन में शामिल सभी खुशी-खुशी कर रहे हैं। 

हरियाणा के तम्बुओं में ताश खेलते और हुक्का गुड़गुड़ाते किसानों को देखकर उनके हरियाणवी ठाठ-बाठ का अंदाज़ा बेहतर लगाया जा सकता है। 

शाम होते-होते नौजवान अलग-अलग टोलियों में पैदल भी व ट्रैक्टरों से भी नारे लगाते हुए रोष मार्च निकाल रहे हैं। टिकरी बॉर्डर के नज़दीक, पंडित श्री राम शर्मा मेट्रो स्टेशन के पास आंदोलनकारी किसानों ने एक बहुत बड़ा पांडाल लगाया हुआ है, जिसमे सिनेमा की तर्ज़ पर प्रोजेक्टर से फिल्म दिखाई जाती है। जिस रोज़ मैं वहां गया था उस रोज़ गुरु गोबिंद सिंह के जीवन पर फिल्म दिखाई जा रही थी।

हरियाणा किसान मंच का लंगर मेट्रो पिलर 786 पर लगातार चला हुआ है। मंच ने ही हरियाणा के सिरसा से पक्के मोर्चे की शुरुआत की थी। लंगर में हज़ारों किसानों का खाना दोनों समय बनाया जा रहा है। मंच के राज्य नेता प्रल्हाद सिंह भारूखेड़ा, जो इस आन्दोलन की बागडोर संभाले हुए हैं। उनकी मेहनत और जोश काबिल-ए-तारीफ है। 

छात्र एकता मंच और प्रोग्रेसिव स्टूडेंट फ्रंट की छात्र टीम लगातार अपने क्रांतिकारी गीतों व पर्चो से किसानों को सत्ता की जन-विरोधी नीतियों से अवगत करा रही है। इस बॉर्डर पर सबसे बड़ा किसानो का काफिला भारतीय किसान यूनियन (उग्राहा) का है।

इससे अलग भी किसान संघठन मज़बूती से डंटे हुए हैं। पंजाब के किसानों में महिला किसानों की संख्या भी बहुत है। काबिल-ए-तारीफ बात यह भी है कि किसानो में ना आपस में कोई झगड़ा है, ना कोई बहस इस मुद्दे पर कि किसका संगठन बेहतर है। बहुमत किसान छोटी जोत का किसान हमको यहां देखने को मिला, जो अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ने यहां आया हुआ है।

सत्ता ने पंजाब और हरियाणा के किसानों को जाट और गैर जाट के नाम पर आपस में लड़ाने की जितनी कोशिश की, सत्ता हाशिये पर जाती गई। सत्ता ने किसानों को अलगावादी, खालिस्तानी, माओवादी, पाकिस्तान प्रायॉजित कहा, सत्ता के ये शब्द किसी भी आन्दोलनों को बदनाम करने के अचूक हथियार रहे हैं।

इसके पहले के सभी आन्दोलनों पर ये हथियार कामयाबी हासिल कर चुके थे लेकिन इस बार इन सभी हथियारों को किसानों व मुल्क की जनता ने नकारा ही नहीं दिया, बल्कि उल्टा सत्ता के मुंह पर दे मारा है। सत्ता के नफरती वायरस को नकारते हुए नफरत बढ़ने की बजाए किसानों में एक अटूट मोहब्बत एक-दूसरे किसान के प्रति बढ़ती गई। 

इस किसान आन्दोलन ने राजनीतिक कैदियों की रिहाई की मांग करके भी मुल्क को जल-जंगल-ज़मीन बचाने की लड़ाई लड़ने का संदेश दिया है। लाखों की तादात में अनुशासन से लबरेज़ किसान इस आन्दोलन को जीत चुके हैं। फासीवादी सत्ता बुरी तरह हार चुकी है।

तानशाह मोदी व संघ परिवार, जिन्हें लगता था कि इस मुल्क की खेती को लुटेरे पुंजिपतियो के हाथों में बेच देंगे, उनका यह बेचने-खरीदने वाला एजेंडा किसानों ने दफना दिया है। यह लड़ाई इतिहास के स्वर्ण अक्षरों में लिखी जा चुकी है।

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