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“संघर्ष अभी अधूरा है”

जो भी मिला वह ना पूरा है

संघर्ष अभी अधूरा है।

 

प्राण हथेली पर रख दे

आहुति रक्त की तू दे

मंज़िल दूर खड़ी है

देख चट्टानों सी बड़ी है।

 

कर सिंघनाद

की थर्राए ये धरती

जो कहे तू मूर्ख है

दिखा उसको अपनी शक्ति।

 

चिर दे भुजबल उस पर्वत का

जो बन जाए रोड़ा

भूल मत अभी सपना

नहीं हुआ है पूरा।

 

चला कलम रच इतिहास

गर कुछ भी ना हो तेरे पास

लक्ष्य भेदी बन अर्जुन सा

जो मिले ना गुरु

एकलव्य बन जा।

 

कर अर्पण कवच कुण्डल

जो मांगे आहुति शीर्ष कमल

उठ…

बैठा क्यों है?

बस एक हथौड़ा बाकी है।

 

जो भी मिला वो ना पूरा है

संघर्ष अभी अधूरा है।

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