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क्या आप मालूम है ब्लैक डेथ से कोरोना तक क्या रहा महामारियों का इतिहास?  

महामारी हमारे लिये एक नई  बात थी हां! सुना तो था इतिहास में बहुत सी महामारी आईं, जिसने हमारे समाज, हमारी व्यवस्था को बदल कर रख दिया मगर यह सब हमने किताबों में ही पढ़ा था लेकिन कहते है ना,

जो देखा हो, महसूस किया हो, वो ज़्यादा एहसास देता है। ठीक ऐसे ही कोविड-19 हमारे लिये एक चुनौतीपूर्ण बात थी, जिसको हमे आपातकालीन स्थिति के रूप मे झेलना था और हुआ भी ऐसा ही, जल्दी ही कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया में हाहाकार मचा दिया।

एक महामारी जिसने सब बदल दिया

इस वायरस, इसके संक्रमण को रोकने के लिए दुनिया भर की एक बड़ी आबादी इन दिनों अपने घरों में कैद रही।  इसके बाद जागरूकता फैलाने का दौर शुरू हुआ।  कुछ अफवाएं तथा कुछ तथ्य आधारित चीज़ें भी सामने निकल आईं।

जिसका मुख्य कारण था हमारी चिंता, इंसान एकलौती ऐसी जाति है, जो कि बिना जाने अपने हाथों से चेहरे छूने के लिए जानी जाती है। हमारी यही आदत नए कोरोना वायरस (कोविड-19) जैसी बीमारियों को फैलने में मदद करती है।

बहुत सारे विकल्प समय-समय पर हमारे सामने आए,  जिनको मानना हमारी मजबूरी हो गया था, जिसमें सबसे अधिक कारगर विकल्प सही ढंग से हाथ धोना हमारे सामने था और इसके साथ-साथ दो गज़ दूरी और मास्क अधिक कारगर विकल्प निकला।

कोरोना महामारी के वैज्ञानिक पहलू

विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक टेड्रोस एडहोम गेब्येयियस ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, “हमें टीकों और चिकित्सा विज्ञान के लिए इंतज़ार करने की ज़रूरत नहीं है, इन चीज़ों की मदद से हर व्यक्ति ख़ुद की और दूसरों की सुरक्षा कर सकता है।”

जहां एक ओर दुनिया भर के वैज्ञानिक इसका इलाज ढूंढने में लगे हुए हैं मगर एक आम आदमी के लिए ऐसी कौन-कौन सी चीजें है, जिनको जानना जरूरी है ताकि हम मौजूदा दौर की गहराइयों को समझ पाएं, उस पर अपनी एक स्वस्थ राय दे पाएं जैसे, महामारी का इतिहास, किसी भी महामारी के बाद होने वाले संभावित परिवर्तन तथा इसके कुछ वैज्ञानिक पहलू शुरुआत से अब तक।

इंसान होने के नाते हमारे लिये किसी भी चीज़ के सभी पहलुओं को जानना ज़रूरी है, ताकि हम खुद कुछ बारीकियों के विषय में सोच सकें तथा उस पर बिना किसी पूर्वाग्रह के अपनी राय दे पाएं । इसी के तहत अभी तक जो समझ मेरी बन पाई है, उसको आपके  साथ साझा कर रहा हूं।

14 महामारीयों से जूझ चुका है भारत

इतिहास विषय का स्टूडेंट होने के नाते एक इच्छा मेरे मन मे हुई कि क्यों न महामारी के इतिहास को जाना जाए?  हालांकि इससे पहले पढ़ा था बहुत सारी बीमारियों के बारे में जैसे ब्लैक डैथ, स्पेनिश फ्लू, हैजा, चेचक इत्यादि लेकिन पहले सिर्फ पढ़ा था,कभी सोचा नहीं था कि इस प्रकार से हमें इसको अनुभव करने का भी मौका मिलेगा।

कुछ चीज़ें जो एक आम आदमी के लिए जानना बहुत ज़रूरी है, वो यह  कि महामारी इस धरती पर समय-समय पर आती ही रही है।  होता यह है कि उस समय कोई भी वायरस या बैक्टीरिया हमारे लिये नया होता है, जिसको समझने मे हमें थोड़ा वक्त लग जाता है।

इसकी शुरुआत कब से मानी जाए! इस सवाल का जवाब मैंने भी ढूंढना शुरू किया। आप ये जानकर हैरान होगें कि सिर्फ भारत ही 14 से भी ज़्यादा महामारियों के प्रकोप से गुज़र चुका है।

वायरस और बैक्टीरिया यानि क्या?

हमें यह समझना होगा कि महामारियां वायरस (विषाणु) के कारण भी फैलती हैं और बैक्टीरिया (जीवाणु) के कारण भी। वायरस अपने आप में एक सूक्ष्म अकोशिकीय जीव होता है, जो कई हज़ार सालों तक सुसुप्तावस्था में रह सकता है, इसका व्यवहार एक बीज की तरह होता है। जब बीज को मिटटी,नमी,पानी,हवा,सूरज की रौशनी मिलती है, तब बीज अंकुरित होता है।

उसी तरह वायरस भी किसी जीवित कोशिका (जैसे मानव शरीर में प्रवेश) के संपर्क में आकर सक्रिय हो जाता है। कोरोना का उदाहरण बताता है कि यह वायरस मानव की लार, खून या आंसू के संपर्क में आकर सक्रिय हो जाता है और अपना वंश बढाने लगता है। ये जिस कोशिका से जुड़ते हैं, उसे संक्रमित कर देते हैं। वायरस लैटिन शब्द है, जिसका अर्थ होता है लसलसा तरह का  या ज़हरीला।

जबकि बैक्टीरिया का मतलब है जीवाणु यानि जीवित अणु या कोशिकीय जीव; ये शरीर के भीतर भी रहते हैं और बाहर भी। हमारे पाचन तंत्र में करोड़ों बैक्टीरिया होते हैं, जो पाचन में मदद भी करते हैं। ज़्यादातर  बैक्टीरिया अच्छे होते हैं

लेकिन कुछ बैक्टीरिया मानव के लिए घातक भी होते है। मसलन प्लेग की बीमारी बैक्टीरिया से फैलती है, इसका मतलब है कि जब-जब संतुलन बिगड़ा और मानव ने अपनी सीमाओं का अतिक्रमण किया, तब-तब महामारी फैली है।

‘ब्लैक डेथ’ जैसी जानलेवा महामारियों का इतिहास

महामारियों का अपना एक अनूठा इतिहास रहा है। वर्तमान में कोरोना जनित विश्वव्यापी महामारी ने मानव इतिहास की कुछ भयावह महामारियों पर फिर से चर्चा की शुरुआत कर दी है। इनमें से जिस महामारी पर सबसे अधिक चर्चा हो रही है वह है चौदहवीं शताब्दी में यूरोप में फैले प्लेग महामारी की, जिसे ‘ब्लैक डेथ‘ के नाम से भी जाना जाता है ।

कई इतिहासकारों के अनुसार सामंतवाद से पूंजीवाद की तरफ संक्रमण बढ़ने में ‘ब्लैक डेथ‘ की एक बड़ी भूमिका थी। ‘ब्लैक डेथ‘ के चलते यूरोप की तकरीबन आधी जनसंख्या का सफाया हो गया था, जिससे वहां खेतों में काम करने वाले ‘सर्फ‘ अथवा बंधुआ मजदूरों की अत्यधिक कमी हो गई।

ऐसे में यूरोप में सामंतवादी व्यवस्था का बने रहना लगभग असंभव हो गया। परिणामतः वहां पूंजीवादी उत्पादन व्यवस्था की नींव पड़ी। यह स्वतंत्र किसानों एवं कृषक मजदूरों पर आधारित व्यवस्था थी।

सौ वर्ष पहले क्या थी महामारियों की स्थिति?

एक महामारी की पृष्ठभूमि में जन्मी इस पूंजीवादी व्यवस्था ने कालांतर में उपनिवेशवाद को भी जन्म दिया। जैसा कि लेनिन का मानना था उपनिवेशवाद पूंजीवाद का ही चरम स्वरुप था।

पूंजीवाद जनित उपनिवेशवाद ने जहां एक तरफ विश्व के आर्थिक, राजनीतिक एवं सामाजिक ताने-बाने पर गहरी छाप छोड़ी, वहीं दूसरी तरफ इसने महामारियों के पूरे स्वरुप को भी बदल कर रख दिया।

अब सोचिए क्या हालात रहें होंगे तब, जब संचार के साधन तो सीमित थे ही, हम भी इस स्थिति मे नहीं थे कि तुरंत इस बीमारी का इलाज ढूंढ पाएं। आज हम देखते है संचार के साधन तथा चिकित्सा विज्ञान हमें कितनी जल्दी कोई भी जानकारी दे सकता है।

पूरे देश में कही की भी खबर हमारे पास टीवी अथवा फोन के माध्यम से पहुंच जाती है, साथ ही हम उपचार के तरीके भी जल्दी ही निकाल लेते हैं मगर आज से 100 साल पहले क्या ये संभव था?

महामारियों को समझना ज़रूरी है

हमने बहुत सारी क्रांतियों, आंदोलनो, सत्याग्रह के बारे में पढ़ा है। आप सोचिये जरा उस काल मे भी बहुत सारी बीमारियां, आकाल आए लेकिन उनको हमारे इतिहासकारों ने इतनी वरीयता नहीं दी।

इसके अलावा हमारी पाठ्य पुस्तकों में भी तो हमें महामारियों के बारे मे न के बराबर ही पढ़ाया जाता है मगर मुझे लगता है आने वाले समय में महामारियों का इतिहास अथवा उससे पढ़ने वाले प्रभाव को, बच्चों को ज़रूर पढ़ाना चाहिए। ये महामारियां उनकी पाठ्यपुस्तकों का हिस्सा होना ही चाहिए। हमें तथा हमारी आने वाली पीढ़ी को यह समझना होगा-

इसका शायद कोई न कोई इलाज़ खोज ही लिया जाएगा लेकिन इससे संकट खत्म नहीं होगा। हमारा बस इतना प्रयास होना चाहिए कि हम सभ्य समाज के रूप में, ऐसे कार्य करना अब बंद करें, जो इन वायरसों और बैक्टीरिया को महामारी फैलाने के लिए मजबूर करते हैं।

इसके बाद हम विश्व की कुछ प्रमुख महामारियों के बारे मे जानने का प्रयास करेंगे ताकि लेख के अंत तक हमारे अंदर कुछ और पढ़ने की लालसा जागृत हो सके। हमारे अंदर महामारियों के बारे मे अधिक से अधिक जानने की लालसा जागृत हो। कुछ महामारियां जो कई लाखों जानें ले गईं

ब्लेक डेथ (वर्ष 1346-1353) 

वर्ष 1346 से 1353 के बीच में फैले ब्युबोनिक प्लेग ने यूरोप, अफ्रीका और एशिया को लगभग तबाह कर दिया था। माना जाता है कि इसके कारण 7. 50 करोड़ से 20 करोड़ लोगों की मृत्यु हुई थी।  यह प्लेग अक्टूबर 1347 में यूरोप पहुंचा, जब “ब्लेक सी” (काले सागर) के तट पर मेस्सिना के सिसिलियन बंदरगाह पर 12 जहाज़ आकर रुके,

जो लोग बंदरगाह पर मौजूद थे, वे जहाज़ का दृश्य देख कर भौंचक रह गए। जहाज पर यात्रा कर रहे ज़्यादातर सैलानी मरे हुए थे और जो जीवित थे, उनके शरीर काले फफोलों से भरे हुए थे, जिनमें से खून और मवाद रिस रहा था।

सिसिलियन के अधिकारियों ने तत्काल इन जहाज़ों को बंदरगाह छोड़ने का आदेश दिया, किन्तु तब तक देर हो चुकी थी।

यूरोप की एक तिहाई (2 करोड़) जनसंख्या की मौत

प्लेग का बैक्टीरिया अपना स्थान बना चुका था और अगले पांच सालों में इसने यूरोप की एक तिहाई जनसंख्या यानि लगभग 2 करोड़ लोगों की जान ले ली। चूहों के साथ सफर करते हुए संक्रमित पिस्सुओं ने अपना प्रभाव इस जहाज पर दिखाया था। चूहों के मरने के बाद वे इंसानों पर आक्रमण करने लगे थे।

बहरहाल इन जहाज़ों के आने से पहले ही यूरोपीय समुदाय ने इस संक्रमित महामारी के बारे में सुन रखा था, जो व्यापार मार्ग के ज़रिये दुनिया के दूसरे हिस्सों में अपनी पहुंच बढ़ा रहा था।

इस प्लेग का वायरस 2,000 साल पहले एशिया में पाया गया और व्यापारिक परिवहन के ज़रिये फैलता गया। हालांकि अध्ययन यह भी बता रहे हैं कि प्लेग का रोग पैदा करने वाले बैक्टीरिया यूरोप में 3000 साल पहले विद्धमान रहे हैं।

दो तिहाई लोगों ने छोड़ा था लंदन

वर्ष 1664-65 में लन्दन में ये महामारी फैली थी। उस वक्त लन्दन की 4 लाख की आबादी में से दो-तिहाई आबादी ने लन्दन छोड़ दिया था और बचे हुए लोगों में से 69 हज़ार लोगों की मृत्यु हो गई थी। महामारी ने 1894 में हांगकांग में कहर बरपाया, 1896 में इसने रूस को अपने शिकंजे में लिया।

प्लेग की तीसरी महामारी वर्ष 1855 में फैली। इसकी शुरुआत चीन के युन्नान प्रांत से हुई और पूरे महाद्वीप में फ़ैल गयी। तब भारत और चीन में 1.2 करोड़ लोगों की मृत्यु हुई थी। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक यह बैक्टीरिया वर्ष 1960 तक सक्रिय था।

हैजा (1852-60)

हैजे से सात महामारियां फैली हैं, जिनमें से तीसरी सबसे भयावह मानी जाती है। इसने 10 लाख लोगों का जीवन छीन लिया है। पहली और दूसरी हैजा महामारी की तरह ही तीसरी भी भारत में ही पैदा हुई थी।

गंगा नदी के डेल्टा से उभर कर यह एशिया के अन्य भागों यूरोप, उत्तरी अमेरिका और अफ्रीका तक पहुंची। ब्रिटिश चिकित्सक जान स्नो ने लन्दन की गरीब बस्तियों में अध्ययन करते हुए यह पाया कि हैजा दूषित पानी के कारण फैलता है।

उसी साल  (1854) ब्रिटेन में यह महामारी फैली और 23 हज़ार लोगों की मृत्यु हो गई। हैजे की छठी महामारी ने वर्ष 1910-11 में भारत में 8 लाख से ज़्यादा लोगों की जान ली थी, जिसके बाद यह मध्य-पूर्व, उत्तर अफ्रीका, पूर्वी यूरोप और रूस तक फैला।

स्पेनिश फ्लू

इन्फ़्ल्युएन्ज़ा एक वायरस (एच1 एन1, 2, 3) के कारण पैदा होने वाली स्वास्थ्य स्थिति है। फ्लू की महामारी 1889-90 में फैली थी तब, इसे एशियाटिक या रसियन फ्लू भी कहा गया था। इसके मामले दुनिया में एक साथ तीन जगहों पर मिले थे बुखारा (तुर्केस्तान), अथाबास्का (उत्तर-पश्चिम कनाडा) और ग्रीन लैंड।

जनसंख्या की सघनता ने इसके फैलने में मदद की इसके कारण 10 लाख लोगों की मृत्यु हुई। वर्ष 1918-20 की महामारी को स्पेनिश फ्लू की महामारी के नाम से भी जाना जाता है। तीन सालों में इसने 50 करोड़ लोगों को संक्रमित किया था। अनुमान लगाया जाता है कि इसके कारण 2 -10 करोड़ तक लोगों की मौत हुई थी।

भारत में ही 1.2 करोड़ जानें लीं

चूंकि वह पहले विश्व युद्ध का दौर था इसलिए महामारी की ख़बरें सार्वजनिक करने पर रोक थी । केवल स्पेन ने महामारी के बारे में जानकारियां देने की पहल की। आम तौर पर इन्फ्लूएंज़ा  के कारण बच्चों और बुज़ुर्गों की मृत्यु ज़्यादा होती रही है, किन्तु स्पेनिश फ्लू ने युवाओं की मृत्यु दर को बढ़ा दिया था।

वर्ष 2007 में हुए अध्ययनों के आधार पर बताया गया कि इन्फ्लूएंज़ा का संक्रमण इतना घातक नहीं था, किन्तु स्वास्थ्य सेवाओं की कमी, कुपोषण, बस्तियों के सघन होने के कारण यह महामारी घातक हो गई थी।

यह उल्लेखनीय है कि इसके संक्रमण ने लम्बे समय तक व्यक्तियों को बीमार बनाए रखा और मृत्यु का बड़ा कारण साबित हुआ। इसने भारत में भी 1.2 करोड़ लोगों की जान ले ली थी। मतलब महामारी कोई भी हो, उसने विश्व को अनेक प्रकार के परिवर्तनों से गुज़रने पर मजबूर किया है।

महामारी के बाद सवाल जो खुद से अपेक्षित हैं

नीचे कुछ प्रश्न हैं, जो हमें यह सोचने पर मजबूर करते हैं कि आखिर किसी  प्रकार की महामारियां हमारे बीच क्या परिवर्तन लाती हैं।  ये कुछ सवाल हैं, जो हमें महामारियों के बाद हुए परिवर्तनों  पर सोचने के लिये मज़बूर करेंगे

  1. आखिर क्यों यूरोप के देशों को अपनी सीमाएं तोड़कर बाहर निकलना पड़ा?
  2. कैसे समुद्री मार्गों की खोज ने दुनिया को जलवायु, अलग-अलग संस्कृतियों, रहन-सहन, खान-पान इत्यादि से रूबरू कराया होगा?
  3. किन परिस्थितियों ने औपनिवेशीकरण की प्रक्रिया या होड़ को जन्म दिया?
  4. आज हमारे पास बहुत सारी जानकारियां उपलब्ध हैं मगर यह सोचने की बात है कि शुरुआत में कैंसे अनुभवों के आधार पर इन जानकारियों को पुख्ता किया गया होगा?
  5. क्या यूरोप के अटलांटिक किनारे पर नए राष्ट्र, अब विदेशी व्यापार और साहस की तलाश करने के लिए तैयार थे?
  6. दूसरे देशों के लोगो के आने से क्या स्थानिय लोगो का पलयान हुआ होगा?
  7. किसी भी देश मे मृत्यु दर अचानक बढ़ जाने से क्या-क्या संभावित परिवर्तन हो सकते है?
  8. क्या महामारियों ने हमारे एक दूसरे के प्रति व्यवहार मे परिवर्तन किया होगा?
  9. क्या महामारियों ने हमारी वायरस और बैक्टीरिया की अभी तक की जानकारी में परिवर्तन किया होगा?
  10. क्या महामारियों ने हमारी आदतों में भी परिवर्तन लाया होगा खासकर खाने-पीने या रहने के ढंग में परिवर्तन?
  11. क्या महामारियों ने तत्कालीन राजनीतिक परिदृश्य में भी परिवर्तन किया होगा?
  12. धर्म के प्रति हमारे रवैये में क्या परिवर्तन आया होगा?
  13. किन नई तकनीकों की खोज हुई होगी?
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